यूपी की राजधानी लखनऊ में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS)ने स्थापना दिवस के दिन ही मनाया विजय दशमी महा पर्व

आरएसएस के छ: प्रमुख पर्वों में विजयदशमी को प्रमुखता दिया जाता है

दैनिक इंडिया न्यूज़ लखनऊ :उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ विकास नगर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने स्थापना दिवस(RSS Foundation Day) के 98 साल पूरे हो चुके हैं।साल 1925 में विजयदशमी के दिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की स्थापना डॉ केशव बलिराम हेडगेवान ने की थी। लेकिन उस दिन इस संगठन का नाम तय नहीं किया गया था।राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का नाम उसे एक साल के बाद मिला।यही नहीं, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ आज भले ही स्वयंसेवकों की संख्या और शाखाओं की दृष्टि से दुनिया का सबसे बड़ा सामाजिक संगठन है, हर साल बड़े ही धूमधाम से विजयदशमी का महापर्व मनाया जाता है ।

विजयादशमी के दिन मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने आतंक, अन्याय एवं अधर्म के पर्याय रावण पर विजय प्राप्त की थी। विजयादशमी पूर्व संध्या से पहले शक्ति उपासना का उत्सव है। नवरात्रि के नौ दिन जगदम्बा की उपासना करके भक्तों में शक्ति का संचार होता है। भगवान श्रीराम के समय से यह दिन बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है। इसलिए संघ द्वारा विजयदशमी को प्रमुखता से अपने अपने स्तर पर कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं और शक्ति की पूजा करते हैं।

संघ का उद्देश्य है सबसे महत्वपूर्ण है-हनुमंत सिंह

अवध प्रान्त के सेवा प्रमुख देवेंद्र अस्थाना के व्याख्यान पर प्रकाश डालते हुए नगर कार्यवाहक हनुमंत सिंह बताया, इसकी सबसे बड़ी वजह इसका उद्देश्य, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना जनजागरण और एकजुटता के लिए की गई थी। किसी संगठन या व्यक्ति की पहचान उभारने के लिए नहीं। यही वजह है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉ केशव बलिराम हेडगेवार ने पहले ही कह दिया था कि हम आम संगठनों जैसे नहीं हैं जो सिर्फ अपने स्थापना दिवस पर कार्यक्रमों का आयोजन करे। बल्कि राष्ट्र और समाज के उत्थान में योगदान के लिए ही कार्यक्रमों का आयोजन करेंगे।

डॉ हेडगेवार में जीवनकाल में नहीं छपी कोई जीवनी

डॉ केशव बलिराम हेडगेवार ने शक्ति की उपासना पर खासा जोर दिया था।उन्होंने कहा था कि हम शक्ति की उपासना के लिए संघ की स्थापना कर रहे हैं. हम समाज के उत्थान के लिए काम कर रहे हैं. यही वजह है कि खुद डॉ केशव बलिराम हेडगेवार ने अपने भी नाम को उभारने से स्वयंसेवकों को मना किया था. सभी स्वयंसेवक जब बाहर होते हैं, तो संघ के बारे में बात करते हैं, न कि व्यक्ति विशेष के बारे में तभी तो, खुद उनके जीवन काल में उनकी कोई जीवनी नहीं छपी थी. उनकी जीवनी तक उनकी मृत्यु के एक साल बाद, वो भी पतली किताब के तौर पर छपी थी।

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