भारतेंदु नाट्य अकादमी में संस्कृत नाट्य स्पर्धा का हुआ आयोजन

सात अलग-अलग नाट्य मण्डलियों ने सात संस्कृत नाटकों का किया अद्भुत मंचन, लोग हुए मंत्रमुग्ध

नाट्य मंच पर संस्कृत का प्राचीन काल से लोक कला के संबंध को किया गया प्रदर्शित

संस्कृत नाटिका के मंचन से बोधगम्य एवं रसप्रद हुए – हिंदी भाषी लोग

दैनिक इंडिया न्यूज लखनऊ। केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय लखनऊ परिसर द्वारा क्षेत्रीय रूपक महोत्सव के अन्तर्गत संस्कृत नाट्य स्पर्धा का आयोजन भारतेंदु नाट्य अकादमी में किया गया। राजधानी में आयोजित क्षेत्रीय रूपक महोत्सव 2023 में केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय भोपाल परिसर के छात्रों ने प्रथम स्थान हासिल किया, जो प्रतियोगिता में उत्कृष्ट प्रदर्शन का परिचय देता है। 12वीं शताब्दी में रचित हास्य नाटक “चूड़ामणि” का प्रदर्शन इस संस्कृत महोत्सव में प्रदर्शित किया गया, जिसमें कई राज्यों ने भाग लिया। विश्वविद्यालय के निदेशक प्रोफेसर रमाकांत पांडेय ने छात्रों को इस महत्वपूर्ण प्रतिस्पर्धा में पहला स्थान प्राप्त करने पर बधाई दी और उनके उज्जवल भविष्य की कामना की।

इसके साथ ही सात अलग-अलग नाट्य मण्डलियों ने सात संस्कृत नाटकों का मंचन किया। वृन्दावन से आयी नाट्यमण्डली ने पलाण्डुमण्डनम् रूपक प्रस्तुत किया। मैनपुरी उत्तर प्रदेश से आयी मण्डली अत्यन्त रोचकता के साथ धूर्त समागम नाटक प्रस्तुत किया। इसी तरह हरियाणा, जयपुर, भोपाल, लखनऊ द्वारा क्रमश: मत्तविलासप्रहसनम्, स्नुषाविजयम्, हास्यचूडामणि:, भगवदज्जुकीयम् कुल मिलाकर सात नाटक मंचित हुए। यहां से चयनित नाटकों को राष्ट्रीय स्तर पर मंचन करने का मौका मिलेगा। उद्घाटन समारोह में मुख्य अतिथि संस्कृतभारती-अवध प्रान्त के अध्यक्ष डा. जितेन्द्र प्रताप सिंह मौजूद थे।

उद्घाटन समारोह में मुख्य अतिथि संस्कृत भारती-अवध प्रान्त के अध्यक्ष डां. जितेन्द्र प्रताप सिंह, विशिष्ट अतिथि भारतेंदु नाट्य अकादमी अध्यक्ष डाॅ. विपिन कुमार तथा कार्यक्रम के अध्यक्ष केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय – लखनऊ परिसर के निदेशक प्रो. सर्वनारायण झा ने नाटक एवं रञ्गप्रयोग की समसामयिक भूमिका और महत्व पर प्रकाश डाला गया।

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय लखनऊ परिसर के निदेशक प्रो. सर्वनारायण झा नाटक एवं रंगप्रयोग की समसामयिक भूमिका और महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि संस्कृत मे नाट्य ग्रन्थों की अधिक संख्या यह दर्शाती है कि प्राचीनकाल मे संस्कृत का लोक के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध रहा है।

सभी नाटक संस्कृत मे मंचित होने पर भी हिन्दी भाषी लोगों के लिए भी बोधगम्य एवं रसप्रद रहे।

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