उदयराज/डीडी इंडिया
लखनऊ – भारतीय नागरिक परिषद् के बैनर तले चन्द्रप्रभा हास्पिटल केवृद्धा सौजन्य से आश्रम सरोजिनी नगर लखनऊ मे मेडिकल कैम्प का आयोजन किया गया । दौरान वृद्धाश्रम प्रश्न विचार कि क्या कभी हमने इन बुजुर्गों की मानसिक वेदना का अनुभव किया है ? मन की गहराई तक झांकने की कोशिश की है ? उठे प्रश्न विचार के उत्तर मे उपस्थित प्रबुद्धजनो द्वारा विचार साझा करते हुए समझने का प्रयास किया गया । दौरान विचार व्यक्त करते हुए भारतीय नागरिक परिषद की महामंत्री रीना त्रिपाठी ने कहा कि भावनात्मक लगाव एक ऐसी जादू की झप्पी है जो शायद पीढ़ियो के गैप को कम कर सकती है एक परिवार मे छोटे बच्चो को उनके दादी और बाबा का प्यार मिल जाता है तथा जब वह छोटे बच्चे बड़े होते है तो कहानियो का एक नया संसार अपने पूर्वजो की कथाओ के रूप मे अनुभव करते है । आत्मीयता की दृष्टि अपनाते हुए उन्होने कहा कि जो अपनी संतान से दूर एकाकी निराशापूर्ण जीवन आत्म सुरक्षा हेतु या फिर अपने आत्म – सम्मान की रक्षा हेतु अथवा अपनी संतान पर आश्रित नही होना चाहते के मकसद से व्यतीत करते है ।
निसंदेह आज ये वृद्धाश्रम आधुनिक सुविधा संपन्न होते है तथा उन्हे सुरक्षा प्रदान करते है पर अपनी उम्र के इस पड़ाव पर हमारे वृद्धो को ये आश्रम क्या भावात्मक सुरक्षा , आत्मीयता स्नेह दे सकते है ? जो अपनी संतान से और पारिवारिक सदस्यो से प्राप्त हो सकता है यह चिंतनीय व विचारणीय बिंदु है । अब प्रश्न यह उठता है कि आज इन वृद्धाश्रमो की बढ़ती हुई संख्या भी क्या एक ऐसा घटक है जो हमारे जीवन मूल्यो को गिराने मे अपनी एक अहम् भूमिका अदा कर रहा है ? यदि विचार करे तो लगता है कि कही न कही हमारी भारतीय संस्कृति पाश्चात्य संस्कृति से प्रभावित हो रही है । इसके साथ ही संयुक्त परिवारो के विघटन और एकल परिवारो की बाहुल्यता से हमारी मानवीय संवेदनाएं कही न कही मृतप्राय सी हो गयी है । युवा पीढ़ी व वृद्ध पीढ़ी के विचारो मे सामंजस्य के लिए कोई स्थान ही नही रह गया है शायद इसलिए कि आज का युवा वर्ग कुछ अधिक ही योग्य और बुद्धिमान हो गया है । जेनरेशन गैप के कारण ही ये दूरियां बढ़ रही हो ( इस श्रेणी मे सब नही है कुछ इसके अपवाद भी है ) केवल स्वादिष्ट भोजन , अच्छे कपड़े और रहने की सुविधा देना और इन्हे वृद्धाश्रम मे रख कर ही अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ ली जाती है या विदेश मे रहने वाली संतान भी वृद्धाश्रमो मे रह रहे वृद्ध माता – पिता के लिए इन आश्रमो को अनुदान राशि भेजती रहती है जिससे उनके बुजुर्गो को पूर्णरूपेण सुरक्षा मिलती रहे और ये वृद्धाश्रम भी पलते बढ़ते रहे । बशर्ते कि बुजुर्ग भी अपनी इन नन्हे कपोलो को सहेजने का काम करे । आज बच्चो और परिवार को क्वालिटी टाइम दिया जाय ताकि कल वह भी अपने व्यस्ततम जिंदगी से कुछ समय निकालकर हमे दे सके । हमारा हाल चाल पूछे , बैठने बीमार होने पर हमारे सर पर हाथ रखे और अपने सुख – दुख को बाट सके । पैसे का अभाव या पैसे की उपलब्धता क्या बचपन मे क्रेच का परिणाम तो नही ? अर्थ के इस युग मे अर्थ के लिए भागमभाग भरी जिंदगी लोगो की भावनाओ मे आती कमी पर्यावरण प्रदूषण के कारण उपजीविका यह सब वृद्धा आश्रमो की वृद्धि में और भी चार चाँद लग रहे है । आवाहन करते हुए श्री त्रिपाठी ने कहा कि आइए मिलकर एक छोटा सा प्रयास करे और अपने व्यस्ततम जीवन से कुछ समय निकालकर इन्हे उनके रहने की जगह पर दे । इस दौरान डां मिथलेश सिंह एवं डां अनूप सिंह द्वारा लगभग 100 वृद्ध दादा – दादी का परीक्षण किया गया और आवश्यकता अनुसार दवा वितरित की गई ।
इस अवसर पर समाजसेविका नीता खन्ना, रीना त्रिपाठी , स्मिता देब , मेडिकल स्टाफ अंजली , पूनम सहित तमाम गणमान्य उपस्थित रहे ।