दैनिक इंडिया न्यूज़, लखनऊ, 21 जून 2024 को, विश्व योग दिवस के अवसर पर, राष्ट्रीय सनातन महासंघ के प्रदेश अध्यक्ष दिल्ली प्रान्त जगतगुरु अवधेश प्रपन्नाचार्य ने सैकड़ों भक्तों के साथ श्री श्री 1008 कालिदास महाराज के नेतृत्व में योगाभ्यास किया और दुनिया को योग का महत्व बताते हुए अष्टांग योग के आठ अंगों पर विशेष जोर दिया। इस अवसर पर उन्होंने योग के विभिन्न अंगों की विस्तृत जानकारी दी और बताया कि कैसे ये हमारे जीवन को स्वस्थ, संतुलित और समृद्ध बना सकते हैं।
अष्टांग योग, जिसे ‘आठ अंगों का योग’ भी कहा जाता है, भारतीय योग परंपरा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह योग के आठ प्रमुख अंगों को सम्मिलित करता है, जो हमारे शारीरिक, मानसिक और आत्मिक विकास के लिए आवश्यक हैं।
जगद्गुरू ने इन आठ अंगों की जानकारी देते हुए कहा कि योग न केवल हमारे शारीरिक स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह मानसिक और आत्मिक शांति के लिए भी आवश्यक है।
1. यम (नैतिक अनुशासन):
यम का अर्थ है नैतिक अनुशासन और सामाजिक आचरण। इसमें अहिंसा (हिंसा न करना), सत्य (सत्य बोलना), अस्तेय (चोरी न करना), ब्रह्मचर्य (संयम) और अपरिग्रह (संपत्ति का संग्रह न करना) शामिल हैं। जितेंद्र प्रताप सिंह ने बताया कि यम हमारे आचरण और व्यवहार को सुधारने में मदद करता है, जिससे हम एक बेहतर समाज का निर्माण कर सकते हैं।
2. नियम (आत्म-अनुशासन):
नियम का अर्थ है आत्म-अनुशासन और व्यक्तिगत आचरण। इसमें शौच (स्वच्छता), संतोष (संतोषी रहना), तप (आत्म-संयम), स्वाध्याय (स्वयं का अध्ययन) और ईश्वर प्रणिधान (ईश्वर में समर्पण) शामिल हैं। ये नियम हमारे आंतरिक विकास के लिए महत्वपूर्ण हैं और हमें आत्म-साक्षात्कार की दिशा में ले जाते हैं।
3. आसन (शारीरिक स्थिति):
आसन का अर्थ है शारीरिक स्थिति और योग मुद्राएँ। योगासन हमारे शरीर को मजबूत और लचीला बनाते हैं और शारीरिक स्वास्थ्य को बनाए रखने में मदद करते हैं। जितेंद्र प्रताप सिंह ने बताया कि नियमित योगासन करने से शारीरिक बीमारियाँ दूर होती हैं और हम अधिक ऊर्जावान महसूस करते हैं।
4. प्राणायाम (श्वास नियंत्रण):
प्राणायाम का अर्थ है श्वास को नियंत्रित करना। यह हमारे श्वास को नियंत्रित करने की विधि है, जिससे हम अपनी ऊर्जा को संतुलित कर सकते हैं। प्राणायाम से मानसिक शांति और ध्यान केंद्रित करने की क्षमता बढ़ती है। गुरुदेव ने प्राणायाम के विभिन्न तकनीकों को प्रदर्शित करते हुए इसके लाभों के बारे में बताया।
5. प्रत्याहार (इंद्रियों का नियंत्रण):
प्रत्याहार का अर्थ है इंद्रियों का नियंत्रण। यह हमारे ध्यान को बाहरी वस्तुओं से हटाकर आंतरिक शांति की ओर ले जाने की विधि है। गुरुदेव ने बताया कि प्रत्याहार हमें अपने आंतरिक जगत को समझने में मदद करता है और मानसिक शांति प्रदान करता है।
6. धारणा (ध्यान की तैयारी):
धारणा का अर्थ है ध्यान की तैयारी। यह हमारी एकाग्रता को बढ़ाने की विधि है, जिससे हम ध्यान में स्थिरता प्राप्त कर सकते हैं। धारणा से हमारी मानसिक शक्ति बढ़ती है और हम अधिक स्पष्टता के साथ सोच सकते हैं।
7. ध्यान (मेडिटेशन):
ध्यान का अर्थ है मेडिटेशन या गहरी ध्यानावस्था। यह हमारी मानसिक शांति और आत्मिक जागरूकता को बढ़ाने की विधि है। ध्यान से हम अपने विचारों को शांत कर सकते हैं और आंतरिक शांति प्राप्त कर सकते हैं। गुरुवर ने ध्यान के लाभों के बारे में बताया और इसे अपने दैनिक जीवन में शामिल करने की सलाह दी।
8. समाधि (आध्यात्मिक एकता):
समाधि का अर्थ है आध्यात्मिक एकता और आत्म-साक्षात्कार। यह अष्टांग योग का अंतिम और सर्वोच्च अंग है, जिसमें हम आत्मा की पूर्ण जागरूकता और दिव्यता का अनुभव करते हैं। समाधि हमें आत्म-साक्षात्कार की ओर ले जाती है और हमारे जीवन को आध्यात्मिक रूप से समृद्ध बनाती है।
गुरुवर ने बताया कि अष्टांग योग के इन आठ अंगों को अपनाकर हम अपने जीवन को संपूर्णता की ओर ले जा सकते हैं। उन्होंने कहा कि योग हमारे शरीर, मन और आत्मा को संतुलित करता है और हमें एक स्वस्थ और सुखद जीवन जीने में मदद करता है। योग केवल शारीरिक व्यायाम नहीं है, बल्कि यह हमारे सम्पूर्ण विकास के लिए एक महत्वपूर्ण साधन है।
इस अवसर पर उन्होंने लोगों को नियमित योग अभ्यास करने की सलाह दी और बताया कि योग को अपने दैनिक जीवन का हिस्सा बनाकर हम न केवल शारीरिक रूप से स्वस्थ रह सकते हैं, बल्कि मानसिक और आत्मिक शांति भी प्राप्त कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि योग हमें आत्म-साक्षात्कार की दिशा में ले जाता है और हमें एक बेहतर इंसान बनने में मदद करता है।
जगद्गुरू के इस योगाभ्यास और उनके द्वारा दिए गए संदेश ने लोगों को योग के महत्व को समझने और इसे अपने जीवन में अपनाने के लिए प्रेरित किया। विश्व योग दिवस के इस अवसर पर उन्होंने योग के प्रति जागरूकता बढ़ाने और इसे एक विश्वव्यापी आंदोलन बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया।