दैनिक इंडिया न्यूज़ नई दिल्ली । जगद्गुरु रामानुजाचार्य श्री शांति धाम दुर्गा शक्तिपीठाधीश्वर स्वामी अवधेश प्रवन्नाचार्य जी ने मीडिया से विशेष वार्ता में संकल्प मंत्र के बारे में व्याख्यान दिया है ।उन्होंने कहा सनातन धर्म की पूजा विधियों में संकल्प मंत्र का विशेष स्थान है। यह मंत्र हमें न केवल ब्रह्मांडीय समय के साथ जोड़ता है, बल्कि ब्राह्मण परंपरा और एकता का भी प्रतीक है। जब हम पूजा में संकल्प करते हैं, तो यह हमें उस ब्रह्मांडीय समय धारा का हिस्सा बनाता है और हमारे द्वारा की जा रही पूजा को ब्रह्मांड के साथ संरेखित करता है। इस लेख में हम संकल्प मंत्र को विस्तार से समझेंगे, युगों की आयु के साथ सृष्टि के प्रारंभ से अब तक का समय कितना बीत चुका है, इसे जानेंगे, और यह भी जानेंगे कि पूजा में संकल्प क्यों आवश्यक है।
संकल्प मंत्र का शाब्दिक अर्थ
“ॐ अस्य श्री विष्णोः आज्ञया प्रवर्तमानस्य ब्राहृणां द्वितीये परार्धे, श्री श्वेतवाराह कल्पे, वैवस्वतमन्वन्तरे, अष्टाविंशतितमे कलियुगे, कलि प्रथमचरणे, जम्बू द्वीपे, भरत खंडे, [देश का नाम], [स्थान का नाम], [वर्ष का नाम], [अयन], [ऋतु], [मास], [पक्ष], [तिथि], [वार], [समय], [कार्य का उद्देश्य]।”
1. ॐ (Om):
‘ॐ’ को अनाहत नाद या ब्रह्मांड की प्रारंभिक ध्वनि कहा जाता है। यह संपूर्ण ब्रह्मांड का सार है और हर धार्मिक क्रिया की शुरुआत ‘ॐ‘ से होती है। यह परमात्मा का प्रतीक है, जो हर एक क्रिया में मौजूद रहता है।
2. अस्य श्री विष्णोः आज्ञया (Asya Shri Vishnoh Aajñaya):
इसका अर्थ है कि यह संकल्प श्री विष्णु की आज्ञा से किया जा रहा है। यहां ‘श्री विष्णु’ को संपूर्ण सृष्टि के पालनकर्ता के रूप में माना गया है, जो ब्रह्मांड की सभी गतिविधियों को नियंत्रित करते हैं।
3. प्रवर्तमानस्य (Pravartamanasya):
इसका अर्थ है “जो वर्तमान में प्रवाहित हो रहा है।” यह शब्द उस समय को संदर्भित करता है जिसमें संकल्प लिया जा रहा है, जो संकल्पकर्ता के वर्तमान स्थिति को दर्शाता है।
4. ब्रह्मणां द्वितीये परार्धे (Brahmanam Dvitiye Parardhe):
यहां ‘ब्रह्मणां’ शब्द ब्रह्मा के लिए प्रयोग किया गया है, जो सृष्टि के निर्माता हैं। ‘द्वितीये परार्धे’ का अर्थ है ‘दूसरा अर्धभाग’। ब्रह्मा की आयु को दो भागों में बांटा गया है, और यह मंत्र ब्रह्मा के दूसरे अर्धभाग का संकेत देता है, जो वर्तमान सृष्टि का काल है।
5. श्री श्वेतवाराह कल्पे (Shri Shvetavaraha Kalpe):
‘श्वेतवाराह’ वह कल्प है जिसमें वर्तमान सृष्टि चल रही है। ‘कल्प’ ब्रह्मा का एक दिन होता है, जो 4.32 अरब वर्षों का होता है। श्वेतवाराह कल्प, उस समय को इंगित करता है जब भगवान विष्णु ने वाराह अवतार धारण करके पृथ्वी को बचाया था।
6. वैवस्वतमन्वन्तरे (Vaivasvata Manvantare):
‘वैवस्वत’ का अर्थ है ‘वैवस्वत मनु’ जो वर्तमान मन्वंतर के राजा हैं। ‘मन्वंतर’ एक समय की अवधि है, जो 71 चतुर्युगी (चार युगों का चक्र) के बराबर होती है। वैवस्वत मनु वर्तमान मन्वंतर के अधिपति हैं, और यह संकल्प उनके शासनकाल में लिया जा रहा है।
7. अष्टाविंशतितमे कलियुगे (Ashtavinsatitame Kaliyuge):
‘अष्टाविंशतितमे’ का अर्थ है ’28वां’, और ‘कलियुगे’ का अर्थ है ‘कलियुग’। वर्तमान में, हम कलियुग के 28वें चरण में हैं। यह वह युग है जो द्वापर युग के बाद आता है और इसे अधर्म का युग माना जाता है।
8. कलि प्रथमचरणे (Kali Prathamacharne):
इसका अर्थ है कि यह कलियुग का पहला चरण है। कलियुग को चार चरणों में विभाजित किया गया है, और हम वर्तमान में उसके पहले चरण में हैं। यह चरण मानवता के लिए कठिनाइयों और चुनौतियों का समय है।
9. जम्बू द्वीपे (Jambū Dvīpe):
‘जम्बू द्वीप’ वर्तमान विश्व को दर्शाता है। हिंदू मान्यता के अनुसार, जम्बू द्वीप पृथ्वी का एक प्रमुख द्वीप है, जो सप्तद्वीपों में सबसे बड़ा है।
10. भरत खंडे (Bharat Khande):
‘भरत खंड’ का अर्थ है भारत, जो जम्बू द्वीप का एक खंड है। यह वर्तमान भारतवर्ष का संदर्भ है, जिसे प्राचीन काल में भरत खंड के नाम से जाना जाता था।
11. [देश का नाम], [स्थान का नाम]:
इस स्थान पर संकल्पकर्ता अपने देश और स्थान का नाम लेते हैं, जिससे यह स्पष्ट होता है कि यह संकल्प किस विशेष स्थान पर किया जा रहा है।
12. [वर्ष का नाम], [अयन], [ऋतु]:
यह समय का विवरण है, जिसमें वर्ष का नाम (संवत्सर), अयन (उत्तरायण या दक्षिणायन), और ऋतु (वसंत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, हेमंत, शिशिर) शामिल होते हैं।
13. [मास], [पक्ष], [तिथि], [वार]:
इसमें मास, पक्ष (शुक्ल या कृष्ण), तिथि, और वार का वर्णन किया जाता है। यह समय की और भी अधिक सटीक गणना करता है।
14. [समय]:
यह वह समय होता है जब संकल्प लिया जा रहा है। यह समय की सटीकता को दर्शाता है।
15. [कार्य का उद्देश्य]:
यह अंतिम और सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है, जहां हम उस कार्य का उल्लेख करते हैं जिसे हम संकल्प के माध्यम से पूरा करना चाहते हैं। यह उद्देश्य किसी विशेष पूजा, अनुष्ठान या कर्मकांड के लिए हो सकता है।
युगों की आयु और ब्रह्मांडीय समय
सनातन धर्म में ब्रह्मांडीय समय को चार युगों में विभाजित किया गया है, जिन्हें चतुर्युगी कहा जाता है। यह चतुर्युगी चार युगों से मिलकर बनती है: सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग, और कलियुग। प्रत्येक युग की आयु इस प्रकार है:
- सतयुग (Krita Yuga): 17,28,000 वर्ष
- त्रेतायुग (Treta Yuga): 12,96,000 वर्ष
- द्वापरयुग (Dvapara Yuga): 8,64,000 वर्ष
- कलियुग (Kali Yuga): 4,32,000 वर्ष
चतुर्युगी का कुल समय: 43,20,000 वर्ष
एक मन्वंतर 71 चतुर्युगी का होता है। इस प्रकार एक मन्वंतर का समय 30,67,20,000 वर्ष होता है।
सृष्टि के बाद से अब तक का समय:
सृष्टि के प्रारंभ से लेकर अब तक का समय इस प्रकार गणना किया जाता है:
- सृष्टि का प्रारंभ: 1,97,29,49,120 वर्षों का समय बीत चुका है।
- श्वेतवाराह कल्प: वर्तमान सृष्टि इस कल्प में चल रही है, जो ब्रह्मा के एक दिन के बराबर है, यानी 4.32 अरब वर्षों का।
- वैवस्वत मन्वंतर: 7 मन्वंतर बीत चुके हैं, और वर्तमान में आठवां मन्वंतर चल रहा है।
- कलियुग: वर्तमान में कलियुग का 28वां चरण चल रहा है, जिसमें हम कलियुग के पहले चरण में हैं।
संकल्प का महत्व:
संकल्प एक महत्वपूर्ण क्रिया है, जो पूजा और अन्य धार्मिक कार्यों को ब्रह्मांडीय समय और परंपरा के साथ जोड़ती है। यह न केवल हमारे कार्यों को सही दिशा में ले जाता है, बल्कि हमारे जीवन को ब्रह्मांड के साथ संरेखित करता है।
संकल्प के माध्यम से, हम अपने कार्यों की पवित्रता और उद्देश्य को स्पष्ट करते हैं, जिससे हमारे धार्मिक कार्य अधिक प्रभावी
होते हैं और उनकी पूर्णता सुनिश्चित होती है। संकल्प का यह विशेष महत्व हमें हमारे धार्मिक कर्मों के प्रति गंभीरता और समर्पण को दर्शाता है।
संकल्प और ब्राह्मण एकता
संकल्प मंत्र में ब्राह्मणों की एकता और उनकी भूमिका को भी स्पष्ट किया गया है। ब्राह्मण परंपरा के अनुसार, पूजा और धार्मिक कार्यों में संकल्प की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। ब्राह्मण अपने ज्ञान और विशेषज्ञता के माध्यम से पूजा के सही विधि और विधानों का पालन करते हैं, जिससे कि पूजा की पवित्रता और प्रभाव को सुनिश्चित किया जा सके।
संकल्प के माध्यम से, ब्राह्मण अपने ज्ञान और योग्यता को एकत्र करते हैं, जिससे कि पूजा और अनुष्ठान को ब्रह्मांडीय समय और परंपरा के साथ सही तरीके से जोड़ा जा सके। यह प्रक्रिया ब्राह्मण समुदाय की एकता और उनके योगदान को भी प्रकट करती है, जो धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर को सहेजने और बढ़ावा देने में सहायक होती है।
आधुनिक संदर्भ में संकल्प का महत्व
आज के समय में, जब हम तेजी से बदलती दुनिया में जी रहे हैं, संकल्प का महत्व और भी अधिक बढ़ गया है। संकल्प हमें हमारे धार्मिक और आध्यात्मिक कर्मों के प्रति जागरूक बनाता है और हमें यह याद दिलाता है कि हमारे कर्म ब्रह्मांडीय समय और परंपरा के साथ संगत होने चाहिए।
इसके अलावा, संकल्प हमें अपने जीवन की दिशा और उद्देश्य को स्पष्ट करने में भी मदद करता है। यह न केवल धार्मिक अनुष्ठानों के लिए आवश्यक है, बल्कि हमारे दैनिक जीवन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जहां हम अपने लक्ष्यों और आकांक्षाओं को सही दिशा में ले जाने के लिए संकल्प लेते हैं।
संकल्प मंत्र का अध्ययन और उसका पालन हमारे धार्मिक जीवन को एक नई दिशा और गहराई प्रदान करता है। यह न केवल पूजा और अनुष्ठानों की विधि को सही ढंग से पालन करने में मदद करता है, बल्कि यह हमें ब्रह्मांडीय समय और परंपरा के साथ जोड़ता है।
युगों की आयु की गणना और सृष्टि की विभिन्न अवधियों की जानकारी हमें यह समझने में मदद करती है कि हमारा स्थान और समय कितने महत्वपूर्ण हैं। इसके साथ ही, संकल्प का पालन हमें ब्राह्मण परंपरा और एकता की महत्वपूर्ण भूमिका को समझने में भी मदद करता है, जिससे हम अपनी धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर को सही तरीके से सहेज सकें।
इस प्रकार, संकल्प और युगों की आयु की जानकारी हमें हमारे धार्मिक और आध्यात्मिक जीवन को और भी समृद्ध और संगत बनाने में सहायता करती है।