दैनिक इंडिया न्यूज़, लखनऊ।जन सेवा कल्याण समिति के तत्वाधान में आयोजित नव दिवसीय श्री राम कथा के चौथे दिन कथा वाचक श्री रामजी शास्त्री जी ने भक्तों को शिव विवाह, माता पार्वती के संवाद और रामचरितमानस में वर्णित गणेश जन्म की कथा सुनाई। इन प्रसंगों ने भक्तों को धर्म, कर्तव्य और ब्रह्म के साकार और निराकार स्वरूप के गूढ़ रहस्यों से परिचित कराया।
शिव विवाह के बाद कैलाश पर्वत पर माता पार्वती ने अपने नए जीवन की शुरुआत की। अपने पूर्व जन्म में सती रूप में हुई त्रुटियों को स्मरण कर वे चिंतित थीं और शिवजी से एक गूढ़ प्रश्न किया। उन्होंने पूछा, “हे प्रभु, जिन श्री राम का आप दिन-रात मनन चिंतन करते हैं वे अपनी पत्नी के वियोग में दर-दर भटक रहे हैं। आप कहते हैं कि वे निराकार ब्रह्म हैं, तो फिर साकार रूप में क्यों हैं? और यदि वे सर्व शक्तिमान हैं, तो इस कष्ट में क्यों हैं?”
भगवान शिव ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया, “हे देवी, तुम्हारा यह प्रश्न सत्य की खोज का प्रतीक है। प्रभु श्री राम में साकार और निराकार ब्रह्म के दो स्वरूप हैं। निराकार ब्रह्म वह है, जिसमें से सभी आकार निर्गत होते हैं। वह अदृश्य, असीम और अनंत है। दूसरी ओर, साकार ब्रह्म मानवता को समझाने के लिए एक रूप धारण करता है।”
भोलेनाथ ने कहा, “श्री राम साकार ब्रह्म हैं, जिन्होंने मानव रूप में अवतार लिया ताकि धर्म और मर्यादा के आदर्श को स्थापित कर सकें। उनका अपनी पत्नी के वियोग में भटकना मानवता को मर्यादा सिखाने का संदेश है।प्रेम और कर्तव्य के प्रति समर्पण ही जीवन का सर्वोच्च उद्देश्य है।”
ब्यास जी ने रामचरितमानस में वर्णित भगवान गणेश के जन्म की कथा का वर्णन किया। उन्होंने बताया कि तुलसीदास जी ने रामचरितमानस की रचना से पहले भगवान गणेश का स्मरण करते हुए उनकी महिमा का वर्णन किया है।
कथा वाचक ने कहा कि एक बार माता पार्वती ने स्नान के समय अपने शरीर के उबटन से एक बालक का निर्माण किया और उसे जीवन देकर अपने द्वारपाल के रूप में नियुक्त किया। जब भगवान शिव कैलाश पर लौटे और भीतर जाने का प्रयास किया, तो उस बालक ने उन्हें रोक दिया। यह देख भगवान शिव ने क्रोध में आकर बालक का सिर काट दिया।
जब माता पार्वती को यह ज्ञात हुआ, तो वे अत्यंत दुखी हुईं। उन्होंने बालक को पुनर्जीवित करने की प्रार्थना की। भगवान शिव ने देवताओं को आदेश दिया कि किसी जीव का सिर लाकर बालक को पुनर्जीवित करें। एक हाथी के बच्चे का सिर लाया गया और उसे बालक के शरीर से जोड़ दिया गया। इस प्रकार भगवान गणेश का जन्म हुआ।
भगवान शिव ने गणेश जी को “प्रथम पूज्य” होने का आशीर्वाद दिया। उन्होंने घोषणा की कि किसी भी पूजा या धार्मिक अनुष्ठान में सबसे पहले गणेश जी की पूजा की जाएगी। रामचरितमानस में तुलसीदास जी ने लिखा है: “बंदउँ प्रथम महीस गणेशा। जगत जननि निज जासु ग्रेशा॥” इसमें गणेश जी को समस्त जगत की बाधाओं को हरने वाला बताया गया है।
कथा वाचक ने बताया कि भगवान गणेश बुद्धि, विवेक और बाधाओं को दूर करने वाले देवता हैं। उनके जन्म की कथा यह सिखाती है कि किसी भी कार्य में धैर्य, विवेक और समर्पण से सफलता पाई जा सकती है।
शिव और माता पार्वती के संवाद और गणेश जन्म की कथा सुनकर भक्त भावविभोर हो गए। उन्होंने महसूस किया कि भगवान गणेश की महिमा और रामचरितमानस की इस कथा का हर अंश जीवन को सकारात्मक दृष्टिकोण से देखने की प्रेरणा देता है।
कथा के अंत में सभी भक्तों ने भगवान गणेश और शिव-पार्वती की आराधना की और उनके आदर्शों को अपने जीवन में अपनाने का संकल्प लिया।
श्री राम कथा के इस भाग ने भक्तों को धर्म, कर्तव्य और सत्य के गूढ़ रहस्यों से परिचित कराया। शिव विवाह, माता पार्वती का संवाद और रामचरितमानस से गणेश जन्म की कथा ने यह संदेश दिया कि जीवन में हर बाधा को धैर्य और विवेक से पार किया जा सकता है। भक्तों ने कथा वाचक से प्रेरणा लेकर जीवन में ब्रह्म के साकार और निराकार स्वरूप के मर्म को समझने का प्रयास किया।
कार्यक्रम संयोजक जन सेवा कल्याण समिति के अध्यक्ष आचार्य सत्येंद्र कृष्ण शास्त्री जी ने इस कथा को सफलतापूर्वक आयोजित किया और सभी श्रद्धालुओं से पर्यावरण संरक्षण का संदेश दिया।