
दैनिक इंडिया न्यूज़,लखनऊ। राष्ट्रीय सनातन महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष जितेंद्र प्रताप सिंह ने होली की पूर्व संध्या पर समस्त राष्ट्र को होली और होलिका दहन की शुभकामनाएं प्रेषित करते हुए इसे केवल रंगों का उत्सव नहीं, बल्कि आध्यात्मिक जागरण और सामाजिक समरसता का पर्व बताया। उन्होंने कहा कि यह पर्व अधर्म पर धर्म की विजय, असत्य पर सत्य की स्थापना और नकारात्मकता के दहन का प्रतीक है।
जितेंद्र प्रताप सिंह न केवल राष्ट्रीय सनातन महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं, बल्कि संस्कृत भारती न्यास, अवध प्रांत के अध्यक्ष के रूप में भी अपनी भूमिका का निर्वहन कर रहे हैं। इसके अलावा, वे प्रचार प्रमुख का दायित्व भी निभा रहे हैं। सनातन संस्कृति की जड़ों को मजबूत करने और समस्त राष्ट्र के सनातनियों को एक मंच पर लाने के उनके सतत प्रयासों के कारण महासंघ के सदस्यों ने उन्हें राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद पर आसीन किया। उनका स्पष्ट विचार है— “पहले राष्ट्र, इसके बाद व्यक्तिगत जीवन।”
होलिका दहन का पौराणिक महत्व
भागवत पुराण के अनुसार, असुरराज हिरण्यकशिपु, जो भगवान विष्णु का विरोधी था, अपने पुत्र प्रह्लाद की भक्ति से असंतुष्ट था। उसने अपनी बहन सिंहिका और होलिका की सहायता से प्रह्लाद को समाप्त करने का प्रयास किया। सिंहिका को मायावी शक्तियां प्राप्त थीं और वह राक्षसी प्रवृत्ति की थी। उसने कई बार छल से प्रह्लाद को मारने की योजना बनाई, लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से वह हर बार असफल रही। अंततः, होलिका को आदेश दिया गया कि वह वरदानस्वरूप प्राप्त अपनी अग्निसहिष्णुता का उपयोग करते हुए प्रह्लाद को अग्नि में भस्म कर दे। लेकिन ईश्वर की लीला अपरंपार थी—होली की अग्नि में स्वयं होलिका जलकर भस्म हो गई और प्रह्लाद सुरक्षित रहे।
सनातन धर्म का गूढ़ संदेश
‘सनातन’ का अर्थ है शाश्वत, जो कभी नष्ट न हो, जो अनादि और अनंत हो। यह केवल धर्म ही नहीं, बल्कि जीवन जीने की सर्वोत्तम पद्धति है। श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है—
“सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज। अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः॥” (भगवद्गीता 18.66)
अर्थात, सभी कर्तव्यों को त्यागकर केवल मेरी शरण में आओ। मैं तुम्हें समस्त पापों से मुक्त कर मोक्ष प्रदान करूंगा, इसलिए चिंता मत करो। यह श्लोक दर्शाता है कि सनातन धर्म केवल पूजा-पद्धति तक सीमित नहीं, बल्कि यह प्रत्येक मानव के कल्याण का मार्गदर्शन करता है।
राष्ट्र निर्माण और सांस्कृतिक उत्थान
जितेंद्र प्रताप सिंह ने कहा कि होली केवल आनंद का पर्व नहीं, बल्कि यह सनातन संस्कृति की जीवंतता को दर्शाने वाला उत्सव है। इस अवसर पर हमें अपने भीतर की सकारात्मक ऊर्जा को जागृत कर राष्ट्र निर्माण में योगदान देना चाहिए। उन्होंने कहा कि होली का रंग केवल बाहरी नहीं, बल्कि यह हमारी आत्मा को भी आध्यात्मिक चेतना से ओतप्रोत करता है।
उन्होंने अंत में सभी सनातन अनुयायियों से आह्वान किया कि होलिका दहन के समय अपने भीतर की नकारात्मकता को त्यागें और सत्य, धर्म, कर्तव्यनिष्ठा एवं राष्ट्रसेवा का संकल्प लें। यही सनातन धर्म की सच्ची विजय है, और यही एक सशक्त भारत की दिशा में हमारा कदम होगा।