
गुरु चरणों की महिमा से आत्मज्ञान का मार्ग प्रशस्त होता है

हनुमान चालीसा में छिपे हैं वेद, गीता, रामायण और खगोलीय गणनाएं
दैनिक इंडिया न्यूज़ ,लखनऊ। राष्ट्रीय सनातन महासंघ के तत्वावधान में रविवार को भारत पीठाधीश्वर कृष्णाचार्य महाराज की अध्यक्षता में सामूहिक हनुमान चालीसा पाठ का आयोजन किया गया। यह आयोजन गुरु तत्व, राष्ट्र शांति और आध्यात्मिक जागरण को समर्पित रहा।
कृष्णाचार्य महाराज ने उपस्थित साधकों को संबोधित करते हुए कहा कि हनुमान चालीसा केवल भक्ति गीत नहीं, बल्कि यह वेद, गीता, रामायण और वेदांत का सार है। इसमें ज्योतिष, गणना, आत्मज्ञान और गुरु भक्ति – सभी का गूढ़ समावेश है।
उन्होंने चालीसा के आरंभिक दोहे —
“श्रीगुरु चरण सरोज रज, निज मन मुकुर सुधारि।
बरनऊं रघुवर बिमल जसु, जो दायक फल चारि॥”
— की व्याख्या करते हुए कहा कि यह दोहा आत्मज्ञान की कुंजी है। ‘गुरु चरण सरोज रज’ का अर्थ है गुरु के चरणों की पवित्र धूल, जो मन के विकारों को दूर कर आत्मा के दर्पण को स्वच्छ करती है। जब मन निर्मल होता है, तभी जीव राम के निर्मल यश को जान पाता है, जो धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष प्रदान करता है।
विज्ञान की दृष्टि से अद्भुत ग्रंथ
महाराज ने विशेष रूप से उस चौपाई का उल्लेख किया जिसमें पृथ्वी से सूर्य की दूरी की गणना की गई है —
“जुग सहस्त्र जोजन पर भानू, लील्यो ताहि मधुर फल जानू।”
इसमें 120,00,000 योजन = लगभग 96,000,000 मील की दूरी का उल्लेख है, जो आधुनिक वैज्ञानिक गणनाओं से मेल खाती है। यह प्रमाणित करता है कि प्राचीन भारत के ऋषि वेदों और ज्योतिष गणनाओं में पारंगत थे।
पाठ की शुद्धता पर बल
कृष्णाचार्य महाराज ने कहा कि हनुमान चालीसा का पाठ यदि सही उच्चारण और भाव से किया जाए, तो यह बंधनों से मुक्ति और मन की शांति का मार्ग प्रशस्त करता है। उन्होंने स्पष्ट किया कि कई जगहों पर पाठ में त्रुटियां आ जाती हैं, जैसे —
“जो सात बार पाठ कर कोई, छोटा ही बंदे मां सुख होई”
जबकि शुद्ध पाठ है —
“जो सत बार पाठ कर कोई, छूटहि बंदि महा सुख होई।”