
दैनिक इंडिया न्यूज़ लखनऊ ।आज गंगा दशहरा के पावन अवसर पर राष्ट्रीय सनातन महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री जितेंद्र प्रताप सिंह ने समस्त भारतवासियों को शुभकामनाएं प्रेषित करते हुए इसे आत्मशुद्धि और आध्यात्मिक उन्नति का पर्व बताया। उन्होंने कहा कि यह पर्व केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि भारत की सांस्कृतिक चेतना का प्रतिनिधित्व करता है। गंगा दशहरा हमें हमारे ऋषि परंपरा, वेदों और तप की महत्ता का स्मरण कराता है।

श्री सिंह ने गंगा दशहरा के ऐतिहासिक और आध्यात्मिक महत्त्व को स्पष्ट करते हुए कहा कि महाराज भागीरथ ने अपने पूर्वजों की मुक्ति हेतु कठिन तप और लम्बी गायत्री साधना की। उनके इस अद्वितीय तप से प्रसन्न होकर मां उमा गंगा ब्रह्मलोक से धरती पर अवतरित हुईं और मृत सगरपुत्रों को मोक्ष प्राप्त हुआ। यह अवतरण न केवल भागीरथ कुल के लिए, अपितु सम्पूर्ण मानवता के लिए कल्याणकारी सिद्ध हुआ।

उन्होंने बताया कि ‘दशहरा’ शब्द का तात्पर्य है दस प्रकार के पापों का नाश—कर्म, मन, वाणी और आत्मा से जुड़े वे दोष जो मानव को पतन की ओर ले जाते हैं। गंगा दशहरा के दिन गंगा जल में स्नान करने से इन पापों का क्षय होता है और व्यक्ति आत्मिक शुद्धि की ओर अग्रसर होता है।
श्री सिंह ने आगे कहा कि हमारे शास्त्रों में यह भी उल्लेख मिलता है कि यदि कोई श्रद्धालु गंगा स्नान से वंचित रह जाए, तो वह श्रद्धापूर्वक गायत्री मंत्र का जाप करके वही पुण्य फल प्राप्त कर सकता है। गायत्री महाविज्ञान में उल्लेख है कि “गंगा हमें बाह्य रूप से पवित्र करती है, जबकि गायत्री मंत्र हमारे अंतरमन को शुद्ध करता है।” यह द्वैत्य पवित्रता—भीतर और बाहर की—ही सनातन साधना की पूर्णता है।
उन्होंने इस बात पर भी बल दिया कि गायत्री, गंगा और भगवद्गीता — यह त्रयी भारतीय अध्यात्म की आधारशिला है। गायत्री से ज्ञान की प्राप्ति होती है, गंगा से शुद्धि और भगवद्गीता से जीवन का यथार्थ बोध होता है। इनका पौराणिक, दार्शनिक और व्यावहारिक महत्त्व अद्वितीय है, जो मानव जीवन को दिव्यता की ओर ले जाता है।
अंत में श्री जितेंद्र प्रताप सिंह ने देशवासियों से आह्वान किया कि वे इस गंगा दशहरा पर केवल अनुष्ठान तक सीमित न रहें, बल्कि मां गंगा के जीवनदायिनी स्वरूप को समझें, उन्हें प्रदूषण मुक्त रखने का संकल्प लें और भारतीय संस्कृति के उस आदर्श को आत्मसात करें जो भागीरथ से लेकर भगवान श्रीराम तक चला आया—जहां प्रकृति, परंपरा और पुरुषार्थ तीनों की समरसता विद्यमान है।
गंगा दशहरा केवल एक तिथि नहीं, यह वह दिव्य क्षण है जब पृथ्वी ने स्वर्ग को अंगीकार किया और गंगा ने मानवता को मोक्ष का अमृत प्रदान किया। गायत्री मंत्र की शक्ति, मां गंगा की धाराओं और भगवद्गीता के उपदेशों में वह सनातन प्रकाश है जो आत्मा को जाग्रत करता है और जीवन को पवित्र बनाता है।