आषाढ़ गुप्त नवरात्रि- साधना का गुप्त पर्व, पुराणों में वर्णित महिमा और आध्यात्मिक रहस्य

दैनिक इंडिया न्यूज़, लखनऊ।सनातन परंपरा में नवरात्रि के नौ दिन साधना, आराधना और आत्मशुद्धि के पर्व माने जाते हैं। जहां चैत्र और शारदीय नवरात्रि में माँ दुर्गा के नव रूपों की सार्वजनिक पूजा होती है, वहीं गुप्त नवरात्रि रहस्य और तांत्रिक साधनाओं की दृष्टि से अत्यंत विशिष्ट मानी गई है। आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से आरंभ होने वाली गुप्त नवरात्रि इस वर्ष 26 जून, बुधवार से शुरू होकर 4 जुलाई, गुरुवार को सम्पन्न होगी।

गुप्त नवरात्रि का उल्लेख देवी भागवत पुराण, कालिका पुराण और तंत्रसार जैसे ग्रंथों में मिलता है। देवी भागवत महापुराण (11.3.23-26) में वर्णन है कि — “दुर्गायाः सप्तमे भागे तांत्रिकं नवरात्रं स्मृतम्। सिद्धिदं, कामदं, गुह्यं, दुर्लभं च सदा नरैः।” अर्थात, सप्तम स्कंध में वर्णित तांत्रिक नवरात्रि (गुप्त नवरात्रि) दुर्लभ, गोपनीय, कामनासिद्धि देने वाली और महान तपस्या का अवसर मानी गई है। कालिका पुराण में महाविद्याओं की साधना की विशेष महिमा बताई गई है — “दश महाविद्याः पराशक्तिः, तासां उपासना विशेष फलप्रदा भवति।” अर्थात: दस महाविद्याएं ही आदिशक्ति की स्वरूप हैं, जिनकी उपासना से साधक को अलौकिक सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं।

इस बार प्रतिपदा तिथि का आरंभ 26 जून को सूर्योदय से पूर्व होगा और समापन उसी दिन दोपहर 1:25 बजे तक रहेगा। दुर्गा अष्टमी 3 जुलाई को मनाई जाएगी और नवमी तिथि का समापन 4 जुलाई को शाम 4:32 बजे होगा। घट स्थापना के लिए ध्रुव योग और आर्द्रा नक्षत्र विशेष रूप से शुभ माने गए हैं।

गुप्त नवरात्रि विशेष रूप से तांत्रिकों, अघोरियों और साधकों के लिए आरक्षित होती है। इस दौरान वे माँ दुर्गा की दस महाविद्याओं की साधना करते हैं, जिनमें माता काली, तारा, षोडशी, भुवनेश्वरी, त्रिपुरा भैरवी, छिन्नमस्ता, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी और कमला देवी सम्मिलित हैं। इन महाविद्याओं की उपासना साधक को अद्भुत सिद्धियों, आत्मबल और भयमुक्ति प्रदान करती है।

गुप्त नवरात्रि के दौरान संयमित जीवन अत्यंत आवश्यक होता है। तामसिक भोजन जैसे मांस, प्याज, लहसुन और मदिरा का सेवन पूर्णतः वर्जित है। साधक को क्रोध, विवाद और आलस्य से बचना चाहिए। बाल और नाखून काटना, चमड़े से बनी वस्तुएं पहनना तथा दिन में सोना इन दिनों में वर्जित माने गए हैं। व्रती को भूमि पर शयन करना चाहिए, और ब्रह्मचर्य का पालन आवश्यक है।

गुप्त नवरात्रि का नाम ही इस बात की ओर संकेत करता है कि यह गोपनीय साधनाओं का काल है। इन दिनों में अधिकांश साधक तंत्र, मंत्र और यंत्र के माध्यम से सिद्धियाँ प्राप्त करते हैं। यही कारण है कि यह नवरात्रि आम जनमानस में उतनी प्रचारित नहीं है, परंतु इसकी आध्यात्मिक ऊर्जा अत्यंत प्रबल मानी गई है।

हालांकि यह नवरात्रि तांत्रिक साधकों की मानी जाती है, परंतु सामान्य श्रद्धालु भी मां दुर्गा के मन्त्रों, स्तोत्रों, दुर्गा सप्तशती, देवी कवच, अर्गला स्तोत्र आदि का पाठ कर पुण्य और मानसिक शांति प्राप्त कर सकते हैं। माता की उपासना से रोग, बाधा, भय और दुर्भाग्य का नाश होता है।

गुप्त नवरात्रि केवल तांत्रिक साधना की ही नहीं, अपितु आत्मशक्ति जागरण और दिव्य स्त्रियों के स्वरूपों की आराधना का पर्व है। इसके माध्यम से हम अपनी छिपी हुई शक्तियों को जाग्रत कर सकते हैं और जीवन को एक नई दिशा दे सकते हैं।

✍ हरेंद्र सिंह
राष्ट्रीय सनातन महासंघ, लखनऊ
स्रोत: देवी भागवत पुराण, कालिका पुराण, तंत्रसार, मार्कंडेय पुराण

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