
दैनिक इंडिया न्यूज़ नई दिल्ली , 26 जुलाई 2025।
हाल ही में भारत और ब्रिटेन के बीच सम्पन्न हुआ फ्री ट्रेड एग्रीमेंट (FTA) प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार की कूटनीतिक सूझबूझ और आर्थिक राष्ट्रवाद की एक बड़ी उपलब्धि के रूप में देखा जा रहा है। यह केवल एक द्विपक्षीय व्यापारिक समझौता नहीं, बल्कि वैश्विक आर्थिक धारा को प्रभावित करने वाली निर्णायक पहल है, जिससे भारत की आर्थिक और रणनीतिक शक्ति को नई ऊँचाइयाँ मिलेंगी।
2023-24 में भारत और ब्रिटेन के बीच महज़ 21.34 बिलियन डॉलर का व्यापार हुआ था, जो दोनों देशों की आर्थिक क्षमता की तुलना में बहुत कम है। इस समझौते से व्यापारिक लेनदेन 34 बिलियन डॉलर तक पहुँचने की संभावना है। दोनों देशों ने वर्ष 2050 तक इसे 120 बिलियन डॉलर तक ले जाने का लक्ष्य तय किया है। यह डील न केवल आर्थिक आँकड़ों को गति देगी, बल्कि भारत की औद्योगिक और निर्यात नीतियों को भी मज़बूत आधार प्रदान करेगी।
इस समझौते के तहत भारत से ब्रिटेन को भेजे जाने वाले 77% निर्यात पर शुल्क में राहत दी जाएगी, जिससे वस्त्र, चमड़ा, इलेक्ट्रॉनिक्स, फार्मा और अन्य विनिर्माण क्षेत्रों को भारी लाभ होगा। वहीं ब्रिटेन से आयातित वस्तुएँ भारत में अधिक सस्ती होंगी, जिससे उपभोक्ता और उद्योग दोनों को लाभ मिलेगा। यह पहल मेक इन इंडिया जैसी राष्ट्रीय योजनाओं को भी नई ऊर्जा प्रदान करेगी। भारत का मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर वर्तमान में GDP में लगभग 17% योगदान देता है, जिसे सरकार 25% तक पहुँचाना चाहती है। यह समझौता उस लक्ष्य की दिशा में एक बड़ा कदम है।
सेवा क्षेत्र भी इस समझौते से लाभान्वित होगा। शिक्षा, सूचना तकनीक, वित्तीय सेवाओं और स्वास्थ्य के क्षेत्रों में नए द्वार खुलेंगे, जिससे भारत वैश्विक सेवा निर्यातक के रूप में और अधिक सशक्त होगा।
अमेरिका के साथ व्यापारिक वार्ता कृषि और डेयरी उत्पादों को लेकर अटकी हुई है। अमेरिका इन क्षेत्रों में खुलापन चाहता है, जिसे भारत अपने किसानों और उपभोक्ताओं के हितों की दृष्टि से स्वीकार नहीं कर सकता। इसके विपरीत ब्रिटेन के साथ हुआ यह समझौता व्यावहारिक, संतुलित और द्विपक्षीय विश्वास पर आधारित है।
अमेरिका की नीति सदैव भारत को चीन के विरुद्ध खड़ा करने की रही है, लेकिन भारत अब किसी के अधीन नहीं, बल्कि स्वतंत्र और आत्मनिर्भर वैश्विक नीति पर चल रहा है। रूस जैसे पुराने साझेदार से तकनीकी सहयोग बनाए रखते हुए भारत पश्चिमी देशों के दबावों को अस्वीकार कर रहा है। भारत जानता है कि पश्चिमी देश ऐतिहासिक रूप से विकासशील देशों को आपसी संघर्ष में उलझाकर अपना प्रभुत्व स्थापित करते रहे हैं।
इज़राइल-फ़िलिस्तीन, रूस-यूक्रेन, भारत-पाकिस्तान और ताइवान-चीन जैसे मामलों में अमेरिका और यूरोप की भूमिका केवल सामरिक हितों से प्रेरित रही है। पाकिस्तान को भारत के खिलाफ भड़काना, अरब देशों को हथियार बेचना और एशिया को अस्थिर करना इनकी नीति का हिस्सा रहा है। भारत अब इन सबके बीच अपनी स्वतंत्र भूमिका में खड़ा है।
जहाँ अमेरिका आतंकवाद को पोषित करता है, वहीं चीन नक्सलवाद जैसे विघटनकारी विचारों को बढ़ावा देता है। भारत इन दोनों खतरों को पहचानता है और उनका सशक्त प्रतिकार कर रहा है। अब समय आ गया है कि भारत केवल एक उभरती शक्ति न रहकर एक निर्णायक वैश्विक शक्ति के रूप में सामने आए। इसके लिए आर्थिक मजबूती के साथ-साथ कूटनीतिक संतुलन और सैन्य आत्मनिर्भरता भी आवश्यक है।
भारत की “वसुधैव कुटुंबकम” पर आधारित नीति ही विश्व को शांति और संतुलन की ओर ले जाने में सक्षम है। भारत-ब्रिटेन मुक्त व्यापार समझौता इस दिशा में एक ठोस कदम है, जो यह दर्शाता है कि भारत अब वैश्विक मंच पर केवल अपनी बात नहीं रख रहा, बल्कि दिशा भी तय कर रहा है।
अंततः यह समझौता भारत की वैचारिक, रणनीतिक और कूटनीतिक आत्मनिर्भरता का प्रतीक है, जो आने वाले समय में भारत को दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनाने की ओर अग्रसर करेगा और अमेरिका-चीन जैसे महाशक्तियों की जनविरोधी नीतियों को प्रभावी चुनौती देगा।