
हरेंद्र सिंह, दैनिक इंडिया न्यूज़ लखनऊ ।भारत और ब्रिटेन के बीच ऐतिहासिक मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) की अंतिम रूपरेखा ने वैश्विक व्यापार जगत में हलचल मचा दी है। यह केवल एक व्यापारिक करार नहीं, बल्कि भारत के आर्थिक भविष्य को नई दिशा देने वाला निर्णायक कदम है। इस समझौते से दोनों देशों की अर्थव्यवस्थाएं मजबूत होंगी और भारत की वैश्विक स्थिति और भी सुदृढ़ होगी।
बीते कुछ वर्षों में जिस तरह संरक्षणवाद बढ़ा है, उसमें ऐसे संतुलित और व्यवहारिक समझौते की अहमियत और बढ़ जाती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस समझौते के माध्यम से न केवल अमेरिका बल्कि अन्य वैश्विक शक्तियों को यह स्पष्ट कर दिया है कि भारत अब अपनी शर्तों पर वैश्विक व्यापार का नेतृत्व करने को तैयार है।
अमेरिका द्वारा शुल्कों के जरिए खड़े किए गए कृत्रिम संकटों के बीच भारत ने झुकने के बजाय नए रास्ते खोजे हैं। यह समझौता महज़ कागजी औपचारिकता नहीं, बल्कि विकसित भारत 2047 की संकल्पना को साकार करने की ठोस रणनीति का हिस्सा है।
यह एफटीए लगभग 90% वस्तुओं पर शुल्क को समाप्त करता है, जिससे वस्त्र, आभूषण, समुद्री उत्पाद, कृषि उत्पादों और एमएसएमई क्षेत्रों को नई वैश्विक उड़ान मिलेगी। इससे भारत के छोटे उद्योगों, किसानों और कारीगरों को अंतरराष्ट्रीय मंच पर पहचान मिलेगी। भारत के ग्रामीण अंचलों की हल्दी, दाल, अचार और मसाले अब सीधे ब्रिटिश बाज़ार में पहुँचेंगे।
मोदी सरकार के बीते एक दशक में पारदर्शिता, गुणवत्ता और प्रतिस्पर्धा पर ज़ोर का यह सीधा परिणाम है। वर्तमान में भारत-ब्रिटेन द्विपक्षीय व्यापार लगभग 21 अरब डॉलर है, जो इस समझौते के बाद 2030 तक 120 अरब डॉलर तक पहुँचने की संभावना रखता है। यह न केवल विदेशी निवेश को आकर्षित करेगा, बल्कि मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में भारत की हिस्सेदारी को 17% से 25% तक बढ़ाने में सहायक होगा।
यह करार सिद्ध करता है कि जब नियोजित दृष्टिकोण, वैश्विक प्रतिष्ठा और साहसिक निर्णय साथ आते हैं, तब भारत जैसा विकासशील राष्ट्र भी वैश्विक मंच पर निर्णायक शक्ति बन सकता है।
भारत ने समझदारी से अपने संवेदनशील क्षेत्रों को समझौते से बाहर रखकर आत्मनिर्भरता और खाद्य सुरक्षा की नीति को भी बनाए रखा है। इससे छोटे उत्पादक और किसान सुरक्षित रहेंगे।
ब्रिटेन से यह समझौता भारत को मैन्युफैक्चरिंग और कृषि क्षेत्र में नई ऊर्जा देगा। खासतौर पर टेक्सटाइल, लेदर और इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र को बड़ा लाभ होगा। वर्तमान में भारत की वैश्विक मैन्युफैक्चरिंग में हिस्सेदारी मात्र 3% है जबकि चीन की 28.8% है। सरकार इसे बढ़ाकर 10% से ऊपर ले जाना चाहती है।
इसी तरह जीडीपी में मैन्युफैक्चरिंग का योगदान 17% है जिसे 25-26% तक ले जाने का लक्ष्य है। यह समझौता उन लक्ष्यों की दिशा में मजबूत कदम है। कृषि क्षेत्र को भी इससे वैश्विक बाज़ार में प्रतिस्पर्धा का अवसर मिलेगा।
अमेरिका के साथ व्यापार वार्ता अभी कृषि और डेयरी उत्पादों को लेकर अटकी हुई है, जहाँ अमेरिका अधिक पहुंच चाहता है और भारत अपने किसानों के हितों की रक्षा कर रहा है। ब्रिटेन के साथ हुआ यह समझौता संतुलित और व्यावहारिक है।
मोदी सरकार ने मेड इन इंडिया अभियान को ध्यान में रखते हुए इस समझौते को इस तरह गढ़ा है कि 9% से अधिक भारतीय उत्पादों को ब्रिटिश बाज़ार में टैरिफ-मुक्त प्रवेश मिलेगा। वहीं ब्रिटेन से आने वाले उत्पाद भी भारत में सस्ते होंगे, जिससे उपभोक्ताओं को उच्च गुणवत्ता वाले उत्पाद सुलभ दरों पर मिल सकेंगे।
ब्रिटेन के साथ एफटीए के ज़रिए न केवल वस्तुओं और सेवाओं का आदान-प्रदान होगा, बल्कि सांस्कृतिक, सामाजिक और नागरिक हितों से जुड़े द्वार भी खुलेंगे। जैसे कि सामाजिक सुरक्षा समझौते के तहत भारतीय कर्मियों को ब्रिटेन में तीन वर्षों तक सामाजिक सुरक्षा अंशदान से छूट मिलेगी। इससे भारतीय सेवा प्रदाताओं की प्रतिस्पर्धात्मक क्षमता बढ़ेगी।
भारत अब तक मॉरिशस, यूएई, ऑस्ट्रेलिया और ईएफटीए (स्विट्ज़रलैंड, नॉर्वे, लिक्टेंस्टीन, आइसलैंड) के साथ भी मुक्त व्यापार समझौते कर चुका है। यूरोपीय संघ के साथ वार्ता अंतिम चरण में है। ये सभी प्रयास एक मजबूत, आत्मनिर्भर और विश्वसनीय भारत की ओर इंगित करते हैं।
ब्रिटेन के साथ यह करार केवल व्यापार नहीं, बल्कि भविष्य का निर्माण है—कृषि को समृद्धि, उद्योग को विस्तार, युवाओं को अवसर और भारत को विकसित राष्ट्र की ओर ले जाने वाली रणनीति का हिस्सा।
अब भारत केवल एक बाज़ार नहीं, बल्कि एक निर्णायक वैश्विक शक्ति के रूप में उभर रहा है, जो अपने हितों की रक्षा करते हुए विश्व से संवाद कर रहा है। यह समझौता भारत की उस आर्थिक नीति का प्रमाण है जो न तो दबाव में झुकती है, न ही अधूरी घोषणाओं में उलझती है—बल्कि ठोस परिणाम देने में विश्वास रखती है।