कारगिल विजय दिवस पर सुर्या स्मृतिका स्थल पर शहीदों को श्रद्धांजलि

जितेंद्र प्रताप सिंह के नेतृत्व में संस्कृतभारतीन्यास और वारियर्स डिफेंस एकेडमी का संयुक्त आयोजन

सेना अधिकारियों, छात्र-छात्राओं और नागरिकों ने किया राष्ट्र के वीरों को नमन

दैनिक इंडिया न्यूज़ ,26 जुलाई की सुबह थी। लखनऊ के कैंट क्षेत्र स्थित सुर्या स्मृतिका स्थल पर वातावरण कुछ अलग था — न कोई ढोल, न कोई मंचीय भाषण… केवल मौन श्रद्धा और आँखों में गर्व के आँसू। यही वो दिन है, जब भारत माँ के वीर सपूतों ने 1999 में कारगिल की बर्फीली चोटियों पर दुश्मन को पीछे धकेलते हुए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया था। और आज, उन्हीं अमर शहीदों की स्मृति में लखनऊ की धरती पर एक सजीव श्रद्धांजलि अर्पित की गई।

इस पावन अवसर पर संस्कृतभारतीन्यास के अध्यक्ष जितेंद्र प्रताप सिंह और वारियर्स डिफेंस एकेडमी के सैकड़ों छात्र-छात्राएँ, शिक्षक और सेनाधिकारी एकत्र हुए थे। न कोई मंच सजा था, न फूलों की सजावट — बस राष्ट्रप्रेम से सजी आंखें थीं और कर्तव्य की भावना से भीगा हृदय।

जितेंद्र प्रताप सिंह ने एक विशेष रूप से तैयार किया गया पुष्पगुच्छ अपने हाथों से वीर स्मृति स्थल पर अर्पित किया। यह कोई साधारण पुष्प नहीं था, यह उन जवानों के सम्मान का प्रतीक था जिन्होंने मातृभूमि के लिए प्राण न्यौछावर कर दिए। फूल तो मुरझा जाते हैं, लेकिन यह श्रद्धा — यह अमर है।

उनके चेहरे पर गंभीरता थी, और आँखों में अग्नि — उस अग्नि की जो एक सजग नागरिक को झकझोरती है, जो हर युवा को पूछती है, “क्या तुम तैयार हो?”
उन्होंने कहा —

“शहीदों की गाथा केवल किताबों में नहीं, हमारी साँसों में होनी चाहिए। उनकी स्मृति केवल समारोह में नहीं, हमारे चरित्र में जीवित रहनी चाहिए।”

वहाँ उपस्थित हर व्यक्ति कुछ क्षणों के लिए स्थिर हो गया। सेना के वर्दीधारी जवानों ने जब स्मृति स्थल पर श्रद्धांजलि दी, तो उनके कदमों की आवाज भी राष्ट्रगान सी प्रतीत हुई। युवा विद्यार्थियों ने जब ‘भारत माता की जय’ के नारे लगाए, तो प्रतीत हुआ मानो स्वयं हिमालय गूंज उठा हो।

कोई मंचीय भाषण नहीं था, फिर भी यह आयोजन एक सशक्त संवाद बन गया — आत्मा से आत्मा का, पीढ़ी से पीढ़ी का।
कारगिल युद्ध के शहीद न सिर्फ एक दुश्मन को हराकर लौटे थे, बल्कि उन्होंने पूरे देश को जगा दिया था कि भारत तब तक अमर रहेगा जब तक उसका हर नागरिक अपने भीतर एक सैनिक को जीवित रखेगा।

कार्यक्रम समाप्त हुआ, लेकिन किसी ने लौटते समय पीछे नहीं देखा — क्योंकि शहीदों की निगाहें सामने थीं, और कर्तव्य की राह कभी पीछे नहीं जाती।
इस आयोजन ने एक बात फिर से स्पष्ट कर दी —
देश के लिए मरने वाले अमर होते हैं, और जो उन्हें याद रखते हैं, वही सच्चे जीवित भारतवासी हैं।

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