अथर्व प्रताप सिंह : बांसुरी की मधुर धुन से अंतरराष्ट्रीय मंच पर गूँजी भारतीय संस्कृति

अंतरराष्ट्रीय मंच पर सफलता की गूंज

परिवार और संस्कारों से गढ़ी नई पहचान

दैनिक इंडिया न्यूज़, लखनऊ । भारतीय संगीत और संस्कृति सदियों से पूरी दुनिया के लिए आकर्षण और प्रेरणा का स्रोत रहे हैं। शास्त्रीय रागों से लेकर लोकधुनों तक, भारत की मिट्टी में बसी यह परंपरा आज भी उतनी ही प्रासंगिक है जितनी हजारों वर्ष पहले थी। इसी विरासत को आगे बढ़ाते हुए सिटी मोंटेसरी स्कूल, अलीगंज शाखा के कक्षा 9 के छात्र अथर्व प्रताप सिंह ने अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारतीय वाद्ययंत्र बांसुरी बजाकर प्रथम पुरस्कार हासिल किया। यह उपलब्धि न केवल उनके व्यक्तिगत परिश्रम का परिणाम है, बल्कि भारतीय संगीत की वैश्विक स्वीकार्यता का भी प्रतीक है।

राष्ट्रीय सनातन महासंघ के राष्ट्रीय प्रवक्ता कृष्णाचार्य ने अथर्व को बधाई देते हुए कहा, “यह सफलता अथर्व के कठोर परिश्रम, माता-पिता के अथक प्रयास और भगवान की कृपा का अद्भुत संगम है। उनकी बांसुरी वादन की धुनें इतनी मोहक हैं कि सुनने वाला स्वयं को मंत्रमुग्ध पाता है। ऐसा लगता है जैसे आत्मा को स्वयं परमात्मा पुकार रहे हों।”

संघर्ष, साधना और संकल्प की कहानी

अथर्व प्रताप सिंह की सफलता इस बात का सशक्त उदाहरण है कि उम्र लक्ष्य प्राप्ति में बाधा नहीं है। छोटी उम्र में ही उन्होंने अपने अथक अभ्यास, अनुशासन और समर्पण से यह सिद्ध कर दिया कि यदि मन में लगन और संकल्प हो तो बड़े से बड़ा मंच भी आपके सामने झुक जाता है। बांसुरी जैसे शास्त्रीय वाद्ययंत्र को साधना आसान नहीं होता। इसके लिए लंबे अभ्यास और धैर्य की आवश्यकता होती है। अथर्व की यही साधना उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सम्मान दिलाने में सहायक बनी।

आज के समय में जब अधिकांश बच्चे डिजिटल दुनिया और तकनीक की ओर तेजी से आकर्षित हो रहे हैं, वहीं अथर्व ने भारतीय शास्त्रीय संगीत को अपना साथी बनाकर नई राह चुनी। उनकी इस उपलब्धि से यह संदेश निकलता है कि परंपरा और आधुनिकता का संगम जीवन को संतुलित और सफल बनाता है।

परिवार की प्रेरक गाथा

किसी भी बच्चे की सफलता में उसके परिवार की भूमिका बेहद अहम होती है। अथर्व प्रताप सिंह का परिवार भी इस उपलब्धि की नींव है। उनके पिता लखीमपुर खीरी से भाजपा के वरिष्ठ कार्यकर्ता हैं, जो सामाजिक सेवा और क्षेत्रीय विकास के लिए हमेशा सक्रिय रहते हैं। उनके संघर्ष और समाजसेवा की भावना ने अथर्व को समर्पण और कर्तव्यनिष्ठा की प्रेरणा दी। इस परिवार को स्थानीय स्तर पर ईसानगर स्टेट के नाम से जाना जाता है, जो वर्षों से समाज की भलाई और सांस्कृतिक धरोहर के संरक्षण में योगदान देता आ रहा है।

वहीं, अथर्व की माता उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी की उपाध्यक्ष (दर्जा प्राप्त राज्य मंत्री) हैं। भारतीय कला और संगीत को संवर्धन और संरक्षण देने की उनकी निरंतर कोशिशों ने घर का वातावरण ही सांस्कृतिक और कलात्मक बना दिया। यह कहना गलत नहीं होगा कि अथर्व ने अपनी प्रतिभा और संगीत की समझ अपने पारिवारिक वातावरण से ही पाई। यही कारण है कि उनका बांसुरी वादन केवल स्वर नहीं, बल्कि आत्मा की पुकार जैसा प्रतीत होता है।

यह परिवार केवल राजनीति या संगीत तक सीमित नहीं है, बल्कि भारतीय संस्कृति और प्राचीन सभ्यताओं की खोज और संरक्षण में भी सक्रिय रहता है। उनकी सोच है कि समाज की उन्नति केवल आधुनिक साधनों से नहीं, बल्कि अपनी जड़ों और परंपराओं को समझने से संभव है। इस दृष्टिकोण ने अथर्व को भारतीय संस्कृति का संवाहक बनने की प्रेरणा दी है।

संगीत : आत्मा से परमात्मा तक का सेतु

बांसुरी भारतीय शास्त्रीय संगीत का वह वाद्ययंत्र है जिसे भगवान श्रीकृष्ण की पहचान माना जाता है। इसके स्वर सीधे हृदय को छूते हैं और श्रोता को एक आध्यात्मिक यात्रा पर ले जाते हैं। अथर्व प्रताप सिंह ने इसी बांसुरी के माध्यम से यह दिखा दिया कि संगीत केवल मनोरंजन का साधन नहीं है, बल्कि यह आत्मा और परमात्मा को जोड़ने वाला सेतु है।

उनकी धुनें श्रोताओं के लिए केवल एक प्रस्तुति नहीं होतीं, बल्कि भीतर तक उतरने वाला अनुभव होती हैं। यही कारण है कि अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी उनके प्रदर्शन को सराहा गया और उन्हें प्रथम पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

आने वाली पीढ़ी के लिए प्रेरणा

अथर्व की सफलता आने वाली पीढ़ियों के लिए एक संदेश है – कि यदि आप किसी क्षेत्र को पूरी निष्ठा और समर्पण से चुनते हैं, तो उसकी गूंज पूरी दुनिया तक पहुँचती है। भारतीय शास्त्रीय संगीत, जिसे अक्सर युवा पीढ़ी कठिन मानकर दूर रहती है, अथर्व ने उसी को अपना हथियार बनाया और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाई।

आज वे न केवल अपने विद्यालय और परिवार, बल्कि पूरे देश के लिए प्रेरणा का स्रोत बन गए हैं। यह उपलब्धि यह भी दर्शाती है कि भारत की कला और संस्कृति आज भी विश्व पटल पर उतनी ही प्रासंगिक और सम्मानित है जितनी प्राचीन काल में थी।

नई सुबह की ओर

अथर्व प्रताप सिंह की कहानी केवल एक छात्र की उपलब्धि नहीं है, बल्कि यह एक परिवार की सोच, संस्कार और समर्पण की भी गाथा है। जिस तरह उनके पिता समाज सेवा में समर्पित हैं और माता कला-संस्कृति के संवर्धन के लिए निरंतर काम कर रही हैं, उसी तरह अथर्व ने भी संगीत के माध्यम से भारतीय संस्कृति को विश्व स्तर पर गूँजाने का संकल्प लिया है।

उनकी इस उपलब्धि से यह विश्वास और गहरा होता है कि यदि युवा पीढ़ी अपने भीतर छिपी प्रतिभा को पहचान ले और उसे निरंतर साधना से निखारे, तो भारत की धरोहरें दुनिया में नए आयाम स्थापित करती रहेंगी। अथर्व प्रताप सिंह आज केवल एक नाम नहीं, बल्कि भारतीय संगीत की नई पहचान बन गए हैं।

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