
हरेंद्र सिंह दैनिक इंडिया न्यूज़ नई दिल्ली।हरिद्वार की पावन भूमि से लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला ने एक ऐसा संदेश दिया है, जिसकी प्रतिध्वनि केवल भारत में ही नहीं, बल्कि संपूर्ण विश्व में सुनी जाएगी। देव संस्कृति विश्वविद्यालय (शांतिकुंज) में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन “Faith and Future: Integrating AI with Spirituality” का उद्घाटन करते हुए उन्होंने कहा कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) को मानवता की सेवा का साधन बनना चाहिए, न कि मानव को नियंत्रित करने का औजार। यह कथन अपने आप में एक गहरी चेतावनी भी है और एक आशा भरा संदेश भी।

आज दुनिया एआई की क्रांति के मुहाने पर खड़ी है। स्वास्थ्य से लेकर शिक्षा, कृषि से लेकर शासन तक—हर क्षेत्र में एआई ने संभावनाओं के नए द्वार खोले हैं। लेकिन सवाल यह है कि यह शक्ति किस दिशा में जाएगी? केवल बाज़ार और शक्ति की राजनीति की ओर या फिर सेवा, करुणा और मानवीय मूल्यों की ओर? यही वह निर्णायक क्षण है, जहाँ भारत का अध्यात्म, हमारी प्राचीन ज्ञान परंपरा और शांतिकुंज जैसे संस्थान दुनिया को राह दिखा सकते हैं।

लोकसभा अध्यक्ष ने यह स्पष्ट किया कि तकनीक का वास्तविक उद्देश्य मानव जीवन को समृद्ध और ऊँचा उठाना है, उसे प्रतिस्थापित करना नहीं। यदि एआई के साथ आध्यात्मिकता और नैतिकता का समन्वय होगा, तभी यह साधन मानवता को नई ऊँचाइयों तक ले जाएगा। उन्होंने भारतीय आदर्शों—“वसुधैव कुटुम्बकम्” और “सर्वे भवन्तु सुखिनः”—का उल्लेख करते हुए कहा कि एआई का विकास समावेशी और न्यायपूर्ण होना चाहिए। यह दृष्टि भारत की विशेष देन है, क्योंकि यहाँ सदियों से विज्ञान और अध्यात्म का सहअस्तित्व रहा है।
इस संदर्भ में देव संस्कृति विश्वविद्यालय (शांतिकुंज) की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। युगऋषि पं. श्रीराम शर्मा आचार्य की दूरदृष्टि से स्थापित यह संस्थान वर्षों से विज्ञान और अध्यात्म के समन्वय का संदेश देता आया है। यहाँ केवल सैद्धांतिक शिक्षा नहीं, बल्कि जीवन निर्माण, राष्ट्र निर्माण और मानवता के उत्थान की साधना होती है। इस विश्वविद्यालय की छाया में पनपी संस्कृति ने यह सिद्ध कर दिया है कि आधुनिकता और परंपरा एक-दूसरे के विरोधी नहीं, बल्कि पूरक हैं।
आज जब दुनिया एआई की चुनौतियों से जूझ रही है, शांतिकुंज का यह सम्मेलन एक नए विमर्श की शुरुआत है। यह वह मंच है जहाँ तकनीकी विशेषज्ञ और आध्यात्मिक चिंतक साथ बैठकर भविष्य की दिशा तय कर रहे हैं। इससे बड़ा उदाहरण और क्या हो सकता है कि भारत ही वह धरती बने जहाँ एआई और अध्यात्म का संगम दिखाया जाए।
यह सम्मेलन केवल एक आयोजन नहीं, बल्कि एक प्रतीक है। यह उस विश्वास का प्रतीक है कि आधुनिक विज्ञान की दौड़ में भी भारत अपनी आत्मा को नहीं भूलेगा। और यह उस आशा का प्रतीक भी है कि एआई का भविष्य शोषण और नियंत्रण की जगह सेवा और करुणा का पर्याय बनेगा।
ओम बिड़ला के वक्तव्य और शांतिकुंज की पहल ने मिलकर यह संदेश दिया है कि मानवता का भविष्य केवल तकनीकी विकास पर नहीं, बल्कि मूल्य-आधारित दृष्टिकोण पर निर्भर करेगा। यदि एआई में करुणा, सहानुभूति और मानवीय मूल्य जोड़े गए, तो यह साधन विश्व को एक नए युग की ओर ले जाएगा। यदि ऐसा न हुआ, तो वही एआई मानवता के लिए संकट का कारण भी बन सकता है।
हरिद्वार से उठा यह स्वर, वास्तव में, वैश्विक चेतना का आह्वान है। यह भारत के अध्यात्म और आधुनिक तकनीक के बीच सामंजस्य का प्रतीक है। और इसमें कोई संदेह नहीं कि शांतिकुंज जैसे संस्थान ही इस सामंजस्य को वास्तविक धरातल पर उतारने में सक्षम हैं।