
दैनिक इंडिया न्यूज़ ,लखनऊ। लखनऊ के पीएम श्री केन्द्रीय विद्यालय, गोमतीनगर में आयोजित मानसिक स्वास्थ्य और मनोवैज्ञानिक कल्याण पर शिक्षक प्रशिक्षण कार्यशाला केवल एक शैक्षिक आयोजन नहीं, बल्कि शिक्षा व्यवस्था की बदलती ज़रूरतों का स्पष्ट संकेत है। प्रधानाचार्य के मार्गदर्शन में सम्पन्न इस कार्यक्रम में संसाधन व्यक्ति के रूप में प्रसिद्ध मनोविज्ञान विशेषज्ञ डॉ. डी.के. वर्मा ने शिक्षकों को नई दिशा दी।
आज शिक्षा केवल ज्ञानार्जन तक सीमित नहीं रही। बदलती जीवनशैली, प्रतिस्पर्धा और पारिवारिक दबाव ने छात्रों के मन पर गहरा असर डाला है। तनाव, चिंता और व्यवहार संबंधी चुनौतियाँ अब सामान्य होती जा रही हैं। ऐसे में शिक्षकों की भूमिका केवल विषय पढ़ाने तक नहीं, बल्कि एक मार्गदर्शक और परामर्शदाता के रूप में भी अहम हो गई है। यही दृष्टिकोण इस कार्यशाला की आत्मा रहा।
डॉ. वर्मा ने अपने संबोधन में इस तथ्य पर बल दिया कि “मानसिक स्वास्थ्य को नज़रअंदाज़ करना भविष्य के लिए घातक हो सकता है। यदि शिक्षक स्वयं संतुलित और मानसिक रूप से स्वस्थ रहेंगे, तभी वे छात्रों में सकारात्मक ऊर्जा का संचार कर पाएंगे।” उनकी यह बात शिक्षा के हर स्तर पर लागू होती है। विद्यालय, कॉलेज या विश्वविद्यालय—हर जगह मानसिक स्वास्थ्य को उतनी ही गंभीरता से लिया जाना चाहिए, जितनी गणित या विज्ञान की पढ़ाई को।
कार्यशाला में तनाव प्रबंधन, भावनात्मक संतुलन और सकारात्मक सोच विकसित करने पर विशेष अभ्यास कराए गए। समूह गतिविधियाँ और विश्राम तकनीक ने प्रतिभागियों को यह अनुभव कराया कि मनोवैज्ञानिक कल्याण कोई अतिरिक्त विषय नहीं, बल्कि शिक्षण प्रक्रिया का आधार है। शिक्षकों की सक्रिय भागीदारी और अनुभव साझा करने की प्रवृत्ति इस बात का प्रमाण थी कि वे इसे केवल औपचारिक आयोजन नहीं, बल्कि वास्तविक बदलाव का माध्यम मान रहे थे।
इस कार्यक्रम का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि यह एक व्यापक राष्ट्रीय विमर्श का हिस्सा है। आज शिक्षा मंत्रालय से लेकर विद्यालय स्तर तक यह चर्चा जोर पकड़ रही है कि मानसिक स्वास्थ्य को पाठ्यचर्या और शिक्षक प्रशिक्षण का अभिन्न अंग बनाया जाए। लखनऊ का यह प्रयास उसी दिशा में एक मजबूत कदम है।
सच कहा जाए तो शिक्षा का वास्तविक उद्देश्य केवल परीक्षाओं में अंक प्राप्त करना नहीं, बल्कि जीवन के लिए तैयार करना है। और जीवन की सबसे बड़ी चुनौती है मानसिक संतुलन बनाए रखना। यही कारण है कि ऐसी कार्यशालाएँ केवल शिक्षकों के लिए नहीं, बल्कि संपूर्ण समाज के लिए प्रेरणास्रोत हैं।
पीएम श्री केन्द्रीय विद्यालय, गोमतीनगर की यह पहल शिक्षा जगत को एक नई राह दिखाती है। यदि देशभर के विद्यालय इस मॉडल को अपनाएँ, तो न केवल छात्रों की शैक्षणिक उपलब्धियाँ बढ़ेंगी बल्कि उनका जीवन भी मानसिक रूप से अधिक स्वस्थ और संतुलित होगा। यही शिक्षा का अंतिम उद्देश्य है—समग्र विकास।