
दैनिक इंडिया न्यूज़, नई दिल्ली।कांग्रेस पार्टी के हालिया बयान और उसके 48 पन्नों वाले घोषणा पत्र ने देश की राजनीति में तूफ़ान खड़ा कर दिया है। एक तरफ़ पार्टी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर तीखे व्यक्तिगत हमले कर रही है, तो दूसरी ओर उसके घोषणा पत्र में ऐसे मुद्दे शामिल हैं जो देश की सुरक्षा, सामाजिक एकता और सांस्कृतिक संतुलन को चुनौती देते दिखाई दे रहे हैं।
राजनीतिक हलकों में सवाल उठ रहा है कि क्या कांग्रेस अब विचारों की राजनीति से भटककर पहचान-आधारित विभाजन की राजनीति की ओर बढ़ रही है? उसका यह घोषणा पत्र कई ऐसी नीतियों को आगे बढ़ाता है जिन पर पहले आतंक-समर्थी या राष्ट्रविरोधी संगठनों के एजेंडे के आरोप लगते रहे हैं।
घोषणा पत्र में कांग्रेस ने जहाँ एक ओर मुस्लिम पर्सनल लॉ को बहाल करने का वादा किया है, वहीं ट्रिपल तलाक कानून को समाप्त करने की बात कही है — जबकि यही कानून मोदी सरकार ने मुस्लिम महिलाओं को अधिकार और सम्मान दिलाने के लिए लाया था। इसी के साथ कांग्रेस ने सरकारी और निजी नौकरियों में मुसलमानों के लिए आरक्षण लागू करने की बात कही है, और सच्चर समिति की रिपोर्ट को पूरी तरह लागू करने का संकल्प जताया है।
यह वही रिपोर्ट है जिसके आधार पर भारत को धर्म के आधार पर विभाजित करने की आशंकाएँ पहले भी जताई गई थीं।
घोषणापत्र में एक और चौंकाने वाला बिंदु यह है कि कांग्रेस ने लव जिहाद के मामलों को “झूठा प्रचार” बताकर उसे अपराध की श्रेणी से हटाने का संकेत दिया है। इतना ही नहीं, उसने स्कूल-कॉलेजों में “बुर्का पहनने की स्वतंत्रता” का समर्थन करते हुए इसे पोशाक की स्वतंत्रता बताया है। आलोचकों का कहना है कि यह सीधे तौर पर शिक्षा में धार्मिक पहचान को बढ़ावा देने की दिशा में उठाया गया कदम है।
कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में “बहुलवाद” के नाम पर बुलडोज़र कार्रवाई पर रोक लगाने की बात कही है — यानी अपराधी अगर किसी विशेष वर्ग का हो, तो प्रशासनिक कार्रवाई नहीं की जाएगी। इसके अलावा पार्टी ने अंतरराष्ट्रीय नीति में गाज़ा और हमास के समर्थन जैसा रुख अपनाते हुए भारत की विदेश नीति को “संवेदनशील बदलाव” देने की बात की है।
विशेषज्ञों के अनुसार, यह नीति भारत की दीर्घकालीन रणनीतिक स्थिति को अस्थिर कर सकती है।
सबसे विवादास्पद वादा यह है कि कांग्रेस सत्ता में आने पर गोमांस पर लगे प्रतिबंध को हटाने की बात कह रही है। पार्टी ने खुले तौर पर कहा है कि वह गोमांस को वैध मानेगी और इसके व्यापार को बढ़ावा देने के लिए नीतियाँ बनाएगी। साथ ही, मुसलमानों के लिए अलग से ऋण योजना शुरू करने की बात कही गई है — जिसमें लगभग साढ़े आठ लाख रुपये तक का ऋण देने की योजना शामिल है। आलोचकों के अनुसार, यह स्पष्ट रूप से धार्मिक आधार पर आर्थिक विभाजन का प्रयास है।
घोषणापत्र के अनुसार, कांग्रेस कश्मीर को फिर से पूर्ण राज्य का दर्जा देने और अनुच्छेद 370 हटाने से पहले की स्थिति बहाल करने का इरादा रखती है। यह वही नीति है जिसका विरोध देश की बड़ी आबादी वर्षों से करती रही है और जिसके कारण आतंकवाद को बल मिला था।
इसी क्रम में पार्टी ने यह भी कहा है कि न्यायपालिका, चुनाव आयोग, मानवाधिकार आयोग जैसे संवैधानिक संस्थानों में मुस्लिम व्यक्तियों की नियुक्ति को प्राथमिकता दी जाएगी। यह न केवल योग्यता आधारित व्यवस्था पर प्रहार है, बल्कि धर्म आधारित संस्थागत ढांचे की शुरुआत जैसा कदम है।
सबसे चिंताजनक बिंदु कांग्रेस के घोषणा पत्र का 14वां प्रावधान है — जिसमें कहा गया है कि मुसलमानों के खिलाफ नफरत फैलाने वाले भाषणों पर रोक लगाने के लिए एक विशेष कानून बनाया जाएगा, कुछ उसी तरह जैसे “अत्याचार अधिनियम” है। सवाल यह उठता है कि अगर यह कानून लागू हुआ तो क्या कोई भी व्यक्ति जो आतंकवाद, धर्मांतरण या राष्ट्रविरोधी गतिविधियों पर सवाल उठाएगा, उसे ‘घृणास्पद भाषण’ कहकर सज़ा दी जाएगी?
विश्लेषकों का कहना है कि कांग्रेस का यह घोषणापत्र “पीएफआई के विजन 2047” से मिलता-जुलता है, जो भारत की धर्मनिरपेक्ष संरचना को चुनौती देता है। पार्टी द्वारा बुलडोज़र नीति का विरोध, लव जिहाद का समर्थन, गोमांस की वैधता, मुस्लिम जजों की नियुक्ति की प्राथमिकता और अनुच्छेद 370 की पुनर्स्थापना — ये सब संकेत हैं कि कांग्रेस एक ऐसे एजेंडे पर चल रही है जो राष्ट्रीय एकता के विरुद्ध है।
दूसरी ओर, कांग्रेस नेतृत्व का कहना है कि उनका घोषणापत्र “भारत की आवाज़” है और इसमें उन समस्याओं का समाधान है जो मोदी सरकार ने पिछले दस वर्षों में देश पर थोपी हैं। पार्टी का आरोप है कि प्रधानमंत्री मोदी के पास दस साल की सत्ता के बाद दिखाने को कोई ठोस उपलब्धि नहीं है और वे केवल जुमलों के सहारे जनता को बहका रहे हैं।
हालाँकि, राजनीतिक जानकारों का कहना है कि कांग्रेस का यह रुख आत्मघाती साबित हो सकता है। जिस प्रकार के बयान और घोषणाएँ पार्टी लगातार दे रही है, वह उसकी राजनीतिक दिशा को और धूमिल कर रहे हैं। देश की जनता अब नारे नहीं, नीति चाहती है; विरोध नहीं, विकल्प चाहती है।
कांग्रेस का यह घोषणापत्र और उसके तीखे बयान दोनों मिलकर इस बात का संकेत देते हैं कि पार्टी अब अपने वैचारिक आधार को खो चुकी है और केवल टकराव की राजनीति से खुद को प्रासंगिक बनाए रखना चाहती है। सवाल यह नहीं कि कांग्रेस क्या कह रही है, बल्कि यह है कि वह किस दिशा में देश को ले जाना चाहती है।
लोकतंत्र में असहमति जरूरी है, परंतु जब असहमति विद्वेष में बदल जाती है, तो राजनीति का अर्थ खो जाता है। कांग्रेस को यह समझना होगा कि विचारों की लड़ाई केवल शब्दों से नहीं, दृष्टि और निष्ठा से जीती जाती है। आज का मतदाता सिर्फ़ सुनने वाला नहीं, सोचने वाला है — और जो राजनीति केवल कटुता बोती है, वह कभी जनमानस में विश्वास नहीं उगा पाती।
