बिचारों का प्रभाव:वाचस्पति त्रिपाठी


एक गांव में एक बुढ़िया अपने खेत में कपास उगाती थी और रूई को बैलगाड़ी में भरकर शहर में एक सेठ के यहां बेच आती थी। एक दिन बुढ़िया के मन में विचार आया इतने दिनों से रूई बेच रही हूं पर कोई खास आमदनी नहीं हो रही। आज गाड़ी में भरी रूई के बीच के हिस्से में एक किलो पानी डाल देती हूं, वजन बढ़ जाएगा और कुछ पैसा ज्यादा मिलेगा।

बुढ़िया ने वैसा ही किया और रूई से भरी गाड़ी लेकर सेठ की दुकान के सामने पहुंची। उसे देखते ही सेठ के मन में विचार आया इतने दिनों से इससे रूई खरीद रहा हूं, कुछ खास बचत नहीं होती। आज तराजू की डोरी थोड़ी चढ़ा लेता हूं। उसने ऐसा ही किया, जिससे रूई वाला पलड़ा हल्का हो गया और वजन उतना ही निकला जितना हमेशा निकलता था। परिणाम स्वरूप बुढ़िया को पैसे भी उतने ही मिले जितने हमेशा मिलते थे।

सोचने की बात है कि सेठ जी के मन में अचानक डोरी चढ़ाने का विचार कहां से आया? कहा जाता है, थॉट्स ट्रैवल। हम किसी के प्रति जैसा सोचते हैं, हमारे भाव उस तक पहुंच जाते हैं और उसके विचारों को उसी अनुसार प्रभावित करते हैं। बुढ़िया ने सोचा कि मैं सेठ के साथ ऐसा करूंगी और उसकी सोच के सूक्ष्म प्रकंपनों ने सेठ को भी उसके प्रति उसी प्रकार के भावों से भावित कर दिया।

अतः विचार रूप में भी ठगी, बेईमानी, धोखा, विकृतियां बोएंगे तो वही उगेगा और हमारे ना चाहते हुए भी हमें वह उगा हुआ फल स्वीकार करना ही पड़ेगा ।

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