आस्था,पवित्रता व सूर्य उपासना के महापर्व पर समस्त देशवासियों को अंतर्मन पटल से अशेष शुभकामनाए – जे पी सिंह अध्यक्ष संस्कृत भारतीन्यास अवधप्रान्त व सदस्य उत्तर प्रदेश माध्यमिक संस्कृत शिक्षा परिषद ।।‼️सूर्योपासना का प्रतीक – छठ पर्व‼️

सनातन भारतीय संस्कृति में सूर्य को ऊर्जा का अक्षय स्रोत माना गया है।
अतः भारत में वैदिक काल से ही सूर्योपासना व्यापक रूप से प्रचलित रही है।
बिहार में सूर्योपासना छठ व्रत के रूप में की जाती है।
व्रत में संकल्प के साथ ही एक नियमावली होती है, जिसका पालन करना व्रती के लिए अनिवार्य है।
साधारणत: उपवास में अन्न का त्याग होता है तथा परमात्मा का चिन्तन होता है। इस दृष्टि से व्रत-उपवास एवं आस्था दोनों का समन्वित रूप है – छठ पर्व।

विश्व का प्राचीनतम ग्रंथ ऋग्वेद कहता है –
“सूर्य आत्मा जगतस्तस्थुषश्च”
“अर्थात् सूर्य आत्मा के कारक तत्व हैं।
सूर्य की रश्मियों में छ: अप्रतिम शक्तियां विद्यमान हैं – दहनी, पचनी, धूम्रा, कर्षिणी, वर्षिनी तथा रसा अर्थात् जलने वाली, पाचन क्रिया करने वाली, लोहित करने वाली, आकर्षण करने वाली, वर्षा करने वाली और रस प्रदान करने वाली। भगवान सूर्य की ये छ: शक्तियां ही “छठी मैया” कहलाती हैं।

यह लोक-पर्व स्वच्छता को पवित्रता तक ले जाने में सहायक होता है। स्नान से शरीर-शुद्धि और ध्यान से अंतःकरण की पवित्रता से व्रत का आरंभ होता है। “नहाय-खाय” यह संदेश देता है कि भोजन के पहले शरीर शुद्धि बहुत जरूरी है। दूसरे दिन खीर खाकर अपने उपवास को संबलता प्रदान करते हैं। इसे “खरना” कहा जाता है। तीसरे दिन षष्ठी तिथि को अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देकर सप्तमी के सूर्योदय की प्रतीक्षा करते हैं। एक तरह से यह पुनर्जन्म के गूढ़ सिद्धांत को बड़े ही सरल ढंग से प्रकट करते हैं।

विष्णु धर्मोत्तर में कहा गया है –
“उदिते दैवतं भानौ पित्र्यं चास्तमिते रवौ।”
अर्थात् देव-कार्यों में सूर्योदय की तिथि और पितृ-कार्यों में सूर्य के अस्त की तिथि उपयोगी होती है। छठ-पर्व एकमात्र ऐसा पर्व है जहां देव-कार्य एवं पितृ-कार्य दोनों श्रद्धा से संपन्न होते हैं।

छठ पर्व की पौराणिकता :–

१. शिव पुराण के रूद्र संहिता के अनुसार भगवान शिव के तेज से छ: मुख वाले बालक का जन्म हुआ, जिसका पालन-पोषण छ: कृतिकाओं (तपस्विनी नारियों) ने किया था, जिससे यह बालक कार्तिकेय नाम से विख्यात हुआ, ये छ: कृतिकायें ही षष्ठी माता या छठी मैया कहलाती हैं।

२. सूर्यपुत्र कर्ण घंटों तक कमर तक जल में खड़े होकर सूर्य देव को अर्घ्य देते थे। आज भी इसी विधि-विधान हम सभी छठ पर्व में मनाते हैं ।

३. इस व्रत को सर्वप्रथम च्वयन मुनि की पत्नी सुकन्या ने अपने जरा-जीर्ण अंधे पति की आरोग्यता के लिए किया था। इस व्रत से उनके पति युवा हुए तथा उन्हें नेत्र प्राप्त हुआ था।

४. भगवान राम का जन्म सूर्यवंश में हुआ था। ऋषि अगस्त्य ने लंकापति रावण को परास्त करने के लिए भगवान राम को “आदित्य हृदय स्तोत्र” का पाठ बताया था, जो सूर्य – उपासना का एक उच्चस्तरीय प्रयोग था।

५. भगवान राम एवं भगवती सीता ने राम राज्य की स्थापना के दिन अर्थात् कार्तिक शुक्ल षष्ठी को ही उपवास कर सूर्य देव की आराधना की थी।

६. भगवान श्री कृष्ण के पुत्र सांब के कुष्ठ रोग का उपचार सूर्य उपासना द्वारा हुआ था।

७. छांदोग्य उपनिषद में सूर्य के माध्यम से पुत्र-प्राप्ति की बात कही गई है। माता कुंती से कर्ण का जन्म सूर्य भगवान के मानवीकरण को दर्शाता है।

८. पांडवों के वनवास के दौरान अन्न की कमी से बचने के लिए धौम्य ऋषि ने युधिष्ठिर को “अष्टोत्तर-शतनाम सूर्य स्तोत्र” (सूर्य के १०८ नाम) दिया था तथा सूर्य की उपासना करने का परामर्श दिया था। इस उपासना से भगवान भास्कर ने प्रकट होकर एक ताम्र पात्र दिया और कहा कि जब तक रानी द्रोपदी इस पात्र में भोजन नहीं करेगी, तब तक इस में स्थित भोज्य-पदार्थों की कमी नहीं होगी। इसके पश्चात द्रौपदी षष्ठी-तिथि को उपवास करने लगी। फलस्वरूप पांडवों को उनका खोया हुआ राजपाट वापस मिल गया था।

छठ-पर्व एक ऐसा पर्व है, जो शास्त्र की जटिलताओं से मुक्त कर सर्वजन को यह अधिकार देता है कि वह अपने पुरोहित स्वयं बनें।
इसलिए इस पर्व का व्रती स्वयं साधक तथा स्वयं पुरोहित भी होता है ।

‼️ॐ श्री सवितृ सूर्य नारायणाय नमः‼️

🚩छठ महापर्व की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं🚩

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