रामपुर से आजम तो आजमगढ़ से परिवार की राजनीति पर योगी ने लगाया विराम
यूपी के सीएम ने किया विकास तो लोकसभा उपचुनावों में सपा के खास को भाजपा कार्यकर्ताओं ने दे दी शिकस्त
गुजरात के वांकानेर में भी 3 बार से मिल रही हार को यूपी के बाबा ने जीत में बदला
हरिंद्र सिंह दैनिक इंडिया न्यूज लखनऊ, 28 दिसंबर। सुशासन रूपी कर्म, भेदभाव रहित विकास का धर्म और भाजपा की जीत की बदौलत यूपी की जनता के दिल में ‘राज’ का मर्म। हम बात कर रहे हैं कर्मयोगी + धर्मयोगी + राजयोगी=यूपी के 25 करोड़ लोगों की शान योगी आदित्यनाथ की। राजनैतिक दृष्टिकोण से यह वर्ष (2022) योगी आदित्यनाथ के लिए सबसे समृद्धशाली रहा। एक तरफ जहां तीन दशक से अधिक समय के बाद योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश के ऐसे मुख्यमंत्री बने, जिन्हें दोबारा सत्ता पाने का गौरव मिला तो वहीं रामपुर विधानसभा क्षेत्र के इतिहास में आजादी के बाद पहली बार योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में कमल ‘आकाश’ पर पहुंच गया। आजमगढ़ और रामपुर लोकसभा क्षेत्र में भी योगी आदित्यनाथ ने परिवार व खास की राजनीति पर विराम लगा दिया। यहां सपा के खास हार गए और योगी ने भाजपा के ‘आम’ को ही चुनाव जिताकर खास बना दिया। यही नहीं, मोदी मैजिक के बावजूद गुजरात में भाजपा 3 बार से वांकानेर की सीट हार रही थी। यह सीट कांग्रेस का गढ़ बनी थी पर योगी आदित्यनाथ ने वहां इस बार प्रचार का श्रीगणेश कर हार की हैट्रिक को जीत में बदल दिया।
रामपुर में पहली बार ‘आकाश’ पर पहुंचा कमल
राजनीतिक विश्लेषकों को 8 दिसंबर 2022 कतई नहीं भूल सकता। जब योगी आदित्यनाथ के सुरक्षा, समृद्धि और सुशासन के बनाए संगम पर रामपुर ने भी अपनी मुहर लगा दी और आजाद भारत में पहली बार रामपुर विधानसभा सीट से कमल को ‘आकाश’ पर पहुंचा दिया। 8 दिसंबर को यहां पर माफिया के आतंक का समूल खात्मा हो गया और योगी आदित्यनाथ के कुशल नेतृत्व में पहली बार साइकिल को पंचर कर आकाश सक्सेना कमल खिलाने में सफल रहे। लगभग 10 बार के विधायक रहे आजम खान का किला योगी आदित्यनाथ ने ढहा दिया। भाजपा के प्रत्याशी 81432 वोट हासिल कर जीतने में सफल रहे। आकाश को यहां 62.06 फीसदी वोट मिला। वहीं सपा का गढ़ रही इस सीट पर उपचुनाव में उनका प्रत्य़ाशी महज 47296 वोट (36.05 फीसदी) पर ही सिमट गया।
लोकसभा उपचुनाव में भी ‘आजम का गढ़’ छीना
रामपुर व आजमगढ़ लोकसभा उपचुनाव भी योगी आदित्यनाथ के कुशल प्रशासनिक नेतृत्व का ही असर रहा कि 2022 में यहां खास की राजनीति पर विराम लग गया। रामपुर में जहां भारतीय जनता पार्टी के घनश्याम सिंह लोधी ने 367397 वोट (51.96 फीसदी) पाकर यह सीट सपा से छीन ली। वहीं सपा को 325205 वोट (46 फीसदी) ही मिले। पोस्टल बैलेट में भी भाजपा ने सपा को शिकस्त दी। भाजपा को पोस्टल से 293 और सपा को महज 149 वोट ही मिले। योगी ने पहले यहां विकास कराया, फिर जनता के पास गए। यही नहीं, जब घनश्याम सिंह लोधी चुनाव जीत गए, तब भी योगी आदित्यनाथ मुखिया का फर्ज निभाते हुए यहां के लोगों का आभार जताने पहुंचे। इस मौके पर भी उन्होंने विकास कार्यों की गंगा बहाई।
आजमगढ़ में भी सपा के परिवार पर योगी का कार्यकर्ता पड़ा भारी
जून 2022 में आजमगढ़ लोकसभा उपचुनाव में भी सपा की साइकिल को योगी आदित्यनाथ ने पंक्चर कर दिया। समाजवादी पार्टी ने उपचुनाव में यहां से परिवारिक सदस्य धर्मेंद्र यादव को मैदान में उतारा तो भारतीय जनता पार्टी ने कार्यकर्ता पर भरोसा जताया और भोजपुरी गायक/नायक दिनेश लाल यादव ‘निरहुआ’ पर दांव लगाया। सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव ने अपने भाई धर्मेंद्र यादव को रण की भूमि में छोड़ दिया तो योगी आदित्यनाथ ने भाजपा के ‘निरहुआ’ का हाथ थामे रखा और उन्हें जीत दिलाकर दिल्ली भेज दिया। यहां योगी के भेदभाव रहित कार्यों की बदौलत दिनेश लाल यादव 312768 वोट (34.39 फीसदी) पाए, जबकि धर्मेंद्र यादव 304089 वोट ( 33.44 फीसदी) ही पा सके। पोस्टल वोट का दंभ भरने वाली सपा को यहां 252 और भाजपा को 336 वोट मिले।
गुजरात में योगी ने जहां से किया था प्रचार का श्रीगणेश, वहां जीत में बदली तीन बार की हार
2022 में गुजरात विधानसभा चुनाव का प्रचार योगी आदित्यनाथ ने वांकानेर विधानसभा सीट से की थी। यह सीट कांग्रेस का गढ़ थी। 15 साल से अनवरत कांग्रेस के मोहम्मद जावेद पीरजादा यहां से जीत दर्ज कर रहे थे। भाजपा की प्रतिष्ठा बनी मोरबी जिले की इस सीट पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने चुनावी अभियान का श्रीगणेश कर जीतेंद्र भाई सोमानी के पक्ष में वोट डालने की अपील की। योगी का प्रभाव मतदाताओं पर इस कदर पड़ा कि तीन बार से जीत रही कांग्रेस ने 2022 चुनाव में यह सीट गंवा दी और भाजपा ने 19955 से जीत हासिल की। यूपी के सीएम के जादू से कांग्रेस का तिलिस्म भी टूट गया। वांकानेर सीट पर हर लहर में भी भाजपा के लिए विपरीत परिस्थिति बनती थी। 1962 से कांग्रेस यहां 8 चुनाव जीत चुकी है, जबकि भाजपा महज दो बार जीती थी। इस बार की जीत से यह आंकड़ा बढ़कर तीन हो गया।
यानी यह वर्ष राजनीतिक रूप से योगी आदित्यनाथ की समृद्धि में चार चांद लगा गया।