दैनिक इंडिया न्यूज लखनऊ।
यह रावन का प्रतीक है।जिसे अहंकार ने विद्वान होते हुए भी आज सिंहासन व सम्मान से वंचित रखा है। प्रभु श्रीराम की कृपा, चरित्र,मूल्यों व आदर्शो से सम्पूर्ण समाजिक ताना बाना हर काल ,युग मे प्रासंगिक है। आज भी रामराज्य की अपेक्षा समाज मे संस्कारित किए जाने अवश्यकता है।असुर भावों को परास्त कर देव भावों की विजय वंदनीय हैं।समस्त सनातन भावों पर पुष्पार्चन,चंदन,सुगंध अर्पित कर देव भावों को जन जन प्रेषण इस उत्सव की विशेषता है। असुर आचरण के कारण रावण पर कद्दू,तुरई के पुष्प आदि व प्रतीक आकृति गोबर से निर्मित कर समाज मे भावों के प्रति नकारात्मक प्रतिक्रिया व्यक्त होती है। उसकी विद्वता को मात्र धूप-दीप दिखा कर प्रतीकात्मक वध होता है। हमने भी अपने निवास पर इसी प्रकार का व्यहवार रावण के साथ किया। श्री राम की विजय लंका पर नही अपितु असुर शक्तियों पर थी। सत्य की असत्य पर विजय, धर्म की अधर्म पर विजय और सकारात्मक भावों की नकारात्मक भावों पर विजय ही दशहरा का पर्व है।राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा मनाए जाने वाले छः प्रमुख उत्सवों मे विजयादशमी सबसे प्रमुख उत्सव है। समस्त प्रदेशवासियो को विजयादशमी की अशेष शुभकामनाए -जेपी सिंह अध्यक्ष संस्कृत भारती न्यास अवध प्रान्त