
यूपी के 15 जिलों में तबाही, फतेहपुर-कासगंज में सर्वाधिक जानें गईं
दैनिक इंडिया न्यूज़ नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश के विभिन्न जिलों में बीते 24 घंटे के भीतर आंधी, बारिश, तेज हवाओं और आकाशीय बिजली ने भारी तबाही मचाई है। राज्य आपदा प्रबंधन विभाग और जिला प्रशासन से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार कुल 34 लोगों की मौत की पुष्टि हुई है। सबसे ज्यादा मौतें कासगंज और फतेहपुर जिलों में हुई हैं, जहां क्रमशः 5-5 लोगों की जान चली गई।
तारीखवार नुकसान का ब्यौरा
21 और 22 मई को आए अचानक तूफान और तेज बारिश ने राज्य के 15 जिलों को प्रभावित किया। बिजली गिरने, पेड़ गिरने, दीवार ढहने और उड़ती हुई छतों की चपेट में आने से लोगों की मौतें हुई हैं।
21 मई की तबाही –
गाजियाबाद: तेज आंधी और पेड़ गिरने से 2 लोगों की मौत।
मेरठ: तूफान की चपेट में आकर 4 लोगों की मौत हुई।
बुलंदशहर: आंधी से 3 लोगों की जान गई।
ओरैया: 2 नागरिकों की जान गई।
कासगंज: सबसे अधिक 5 लोगों की जान गई।
फिरोजाबाद: 1 व्यक्ति की मौत।
गौतमबुद्ध नगर: तूफान के चलते 2 लोगों की मौत।
कानपुर नगर: तेज हवाओं में मकान गिरने से 2 की मौत।
22 मई की तबाही –
फतेहपुर: तेज तूफान में 5 लोगों की मौत हुई।
इटावा: 2 लोगों की जान गई।
अलीगढ़: 1 व्यक्ति की जान चली गई।
कानपुर देहात: दो लोगों की मौत हुई।
हाथरस: तूफान की चपेट में 1 व्यक्ति की मृत्यु।
आकाशीय बिजली बनी काल
चित्रकूट: बिजली गिरने से 1 व्यक्ति की मौत।
अम्बेडकर नगर: आकाशीय बिजली की चपेट में आकर 1 व्यक्ति की मौत हुई।
प्रशासन की प्रतिक्रिया और राहत कार्य
राज्य सरकार की ओर से संबंधित जिलों के प्रशासन को अलर्ट पर रखा गया है और प्रभावित परिवारों को मुआवजा देने की प्रक्रिया शुरू की जा रही है। मुख्यमंत्री कार्यालय से प्राप्त जानकारी के अनुसार, मृतकों के परिजनों को 4-4 लाख रुपये की आर्थिक सहायता देने का निर्देश दिया गया है।
कृषि और संपत्ति को भी नुकसान
तूफान की वजह से सैकड़ों पेड़ गिर गए हैं, बिजली आपूर्ति बाधित हुई है और कई इलाकों में मकानों की दीवारें ढह गई हैं। कृषि फसलों को भी काफी नुकसान पहुंचा है।
हर साल लगते हैं पौधे, लेकिन बचते नहीं पेड़
यह अत्यंत निराशाजनक है कि हर वर्ष गर्मियों से पहले सरकार लाखों पौधे लगाने का दावा करती है, और अखबारों में इन पौधारोपण कार्यक्रमों की तस्वीरें भी छपती हैं। राजनेता इसे एक बड़ी उपलब्धि के रूप में प्रचारित करते हैं, लेकिन जैसे ही गर्मी का असली रूप सामने आता है, इन पेड़ों की कोई छाया कहीं नजर नहीं आती।
कई बार जानकारी मिलती है कि वन विभाग की निष्क्रियता और कुछ अधिकारियों की मिलीभगत से पहले से लगे हरे-भरे पेड़ भी काट दिए जाते हैं, जिससे प्राकृतिक सुरक्षा कवच और कमजोर हो जाता है।
भविष्य की चेतावनी
यदि सरकार और प्रशासन ने अब भी इन मुद्दों पर गंभीरता नहीं दिखाई, तो वह दिन दूर नहीं जब आम लोग घर से बाहर निकलने के दो घंटे बाद ही हीट स्ट्रोक का शिकार हो जाएंगे। बदलते पर्यावरण के मद्देनज़र हरित पट्टी का संरक्षण अब केवल पर्यावरणविदों की चिंता नहीं, बल्कि आम जनता की जान से जुड़ा हुआ प्रश्न बन चुका है।
यह प्राकृतिक आपदा एक बार फिर यह सवाल खड़ा करती है कि हम कितने तैयार हैं ऐसी आपात परिस्थितियों से निपटने के लिए। राहत और बचाव कार्य समय पर पहुंचे, इसके लिए प्रशासनिक मशीनरी को और अधिक सक्रिय बनाने की आवश्यकता है। जनहानि कम करने के लिए समय से चेतावनी तंत्र, ठोस पेड़ संरक्षण नीति और पर्यावरणीय ईमानदारी अनिवार्य है।