

दैनिक इंडिया न्यूज़ ,लखनऊ ।आर्य समाज के आर्य वीर दल, मध्य उत्तर प्रदेश के तत्वावधान में आयोजित प्रांतीय आर्यावर्त दल आवासीय प्रशिक्षण शिविर का शुभारंभ आज उत्साहपूर्वक संपन्न हुआ। यह शिविर केवल एक प्रशिक्षण कार्यक्रम नहीं, बल्कि राष्ट्रनिर्माण, सांस्कृतिक चेतना और सामाजिक अनुशासन का समर्पित मंच बना, जहां 22 जनपदों से आए सैकड़ों आर्य वीरों को राष्ट्र सेवा और चरित्र निर्माण की शिक्षा दी जा रही है।

शिविर के भव्य उद्घाटन समारोह में राष्ट्रीय सनातन महासंघ के अखिल भारतीय अध्यक्ष एवं संस्कृत भारती न्यास, अवध प्रांत के अध्यक्ष जितेन्द्र प्रताप सिंह मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे। अतिविशिष्ट अतिथि के रूप में उत्तर प्रदेश विधान परिषद सदस्य अवनीश कुमार सिंह तथा संस्कृत भारती के क्षेत्र प्रचारक प्रमोद पंडित ने समारोह की गरिमा को विशेष रूप से बढ़ाया। कार्यक्रम का संयोजन एवं संचालन पंडित मनमोहन तिवारी के नेतृत्व में संपन्न हुआ।

मुख्य अतिथि जितेन्द्र प्रताप सिंह ने अपने ओजस्वी संबोधन में युवाओं को प्रेरित करते हुए कहा कि आप ही राष्ट्र की नींव हैं। आपके भीतर वही साहस और सामर्थ्य छिपा है, जो पवनपुत्र हनुमान में था। बाल्यकाल में जब हनुमान जी को भूख लगी, तो उन्होंने सूर्य को फल समझकर निगल लिया। यह केवल एक पौराणिक कथा नहीं, बल्कि यह बालमन की निर्भीकता और शक्ति का प्रतीक है।
आज जब संस्कृति, सुरक्षा और सामाजिक चेतना तीनों मोर्चों पर चुनौतियाँ हैं, तब ऐसे आर्य वीरों की आवश्यकता है जो आत्मबल, अनुशासन और संगठन के माध्यम से राष्ट्र को नई दिशा दे सकें। तीन शस्त्र पर्याप्त हैं—संस्कार, साहस और संगठन—और यदि इन्हें धार दी जाए, तो कोई विघ्न आपको रोक नहीं सकता।
इसी सन्दर्भ में उन्होंने हनुमान अष्टक की प्रेरणादायी पंक्तियाँ उद्धृत कीं—
बाल समय रघुपति सेवक भये।
तन मन वचन ध्यान धरि लये।।
दुष्ट दलन रघुनाथ सहाय।
कृत सुभाउ नाम सुहाय।।
उन्होंने कहा कि जब समस्त संसार संकट में डूबा था, तब हनुमान जी ने सेवा, साहस और समर्पण से संकटों को हराया। आज की पीढ़ी को भी उसी शक्ति, निष्ठा और सेवा भावना के साथ आगे बढ़ना होगा।
शिविर में विशेष प्रेरणादायी भूमिका निभाते हुए संस्कृत भारती के क्षेत्र प्रचारक प्रमोद पंडित ने मंच से संस्कृत भाषा में अपना व्याख्यान दिया, जिससे बच्चों और श्रोताओं में एक नई चेतना जागृत हुई। उन्होंने बताया कि संस्कृत केवल देववाणी नहीं, बल्कि हिंदी से भी अधिक सरल, वैज्ञानिक और जीवंत भाषा है। यह भाषा मन, वाणी और विचार को एक सूत्र में बांधती है।
उन्होंने ऋग्वेद के दशम मंडल से श्लोकों का पाठ करते हुए संगठन की भावना को इस प्रकार प्रकट किया—
संगच्छध्वं संवदध्वं सं वो मनांसि जानताम्।
देवा भागं यथा पूर्वे सञ्जानाना उपासते॥
समानो मन्त्रः समिति: समानी समानं मनः सहचित्तमेषाम्।
समानं मन्त्रम् अभिनिः समन्ये समानेन वो हविषा जुहोमि॥
समानी व आकूतिः समाना हृदयानि वः।
समाना मस्तु वो मनो यथा वः सुसहासति॥
उन्होंने बताया कि संगठन की वास्तविक शक्ति तब विकसित होती है जब हम एक लक्ष्य, एक विचार और एक संकल्प के साथ एकजुट हो जाएं। संगठन को मजबूत रखने के लिए नियमबद्धता, परस्पर सम्मान और आत्मनिष्ठा अनिवार्य है।
भाषा, संस्कृति और देश के लिए त्याग ही संगठन का प्राण है। संस्कारों से सुसज्जित योद्धा ही समाज की रक्षा कर सकता है।
प्रांतीय प्रशिक्षकों, आर्य वीरों, गणमान्य अभिभावकों और सांस्कृतिक कार्यकर्ताओं की सहभागिता ने शिविर को राष्ट्रप्रेरणा का केंद्र बना दिया। यह आयोजन न केवल शारीरिक और मानसिक प्रशिक्षण का माध्यम है, बल्कि भारत की सनातन परंपरा, भाषा और विचारधारा को सशक्त बनाने का जीवंत प्रयास भी है।
इस अवसर पर नन्हें नन्हें आर्यवीरों ने योग, तलवारबाजी तथा शारीरिक व्यायाम का उच्च स्तरीय प्रदर्शन कर सबको सम्मोहित कर दिया।