छोटे-मोटे अपराधों पर जेल नहीं, जुर्माना लागू करेगी — 300-400 कानूनों में बड़े बदलाव की तैयारी

दैनिक इंडिया न्यूज़, नई दिल्ली। भारत सरकार छोटे अपराधों के लिए जेल की सजा समाप्त कर जुर्माने को प्राथमिक दंड स्वरूप लागू करने की तैयारी में है। इसके तहत लगभग 300 से 400 पुराने कानूनों में संशोधन करने की योजना तैयार की जा रही है, जिससे छोटी गलतियों या कम गंभीर अपराधों के मामलों में जनता को कड़ाके की जेल सजा से राहत मिलेगी और उन पर मतदान, व्यवसाय या रोजमर्रा की गतिविधियों पर बोझ नहीं पड़ेगा।

सरकार का मानना है कि आज के समय में कई ऐसे कानून हैं जो पुराने हैं या बदलती सामाजिक परिस्थिति के अनुरूप नहीं हैं, जिसके कारण छोटी भांति की गलतियों पर भी जेल की सजा का प्रावधान होता है। इसे दुरुस्त करने के उद्देश्य से ऐसे प्रावधानों की पहचान कर उन पर संशोधन करने की प्रक्रिया चल रही है, ताकि आरोपी को मौके पर ही अपनी गलती सुधारने का अवसर मिले, अदालतों के लंबे चक्कर से निजात मिले और न्याय प्रक्रिया और अधिक सुलभ, त्वरित और नागरिक-मित्र बने।

इस पहल का लक्ष्य यह भी है कि आगामी समय में व्यापारियों, युवा पेशेवरों और छोटे कारोबार से जुड़े लोगों को उन मामूली कानूनी त्रुटियों के लिए सालों तक कोर्ट-कचहरी तथा जेल की चिंता से मुक्त किया जा सके, जिससे वे बिना डर के अपना व्यवसाय और जीवन सृजनात्मक रूप से चला सकें। वर्तमान में सरकार की टीम उन कानूनों की पड़ताल कर रही है जिनमें जेल सजा के स्थान पर भारी जुर्माने, सामुदायिक सेवा या प्रशासनिक दंड जैसे विकल्प को लागू किया जा सके।

न्यायिक सुधारों का यह प्रस्ताव बीते कुछ वर्षों में लागू किए गए आपराधिक कानूनों और न्याय संहिताओं के व्यापक सुधारों से भी जुड़ा हुआ है। गृह मंत्रालय ने पहले ही संकेत दिए हैं कि नए आपराधिक कानून, विशेषकर भारतीय न्याय संहिता (Bharatiya Nyaya Sanhita) 2023 और अन्य संबद्ध कोडों में बदलाव के साथ छोटे-से-छोटे मामलों का त्वरित समाधान, सामुदायिक सेवा सहित वैकल्पिक दंड प्रावधान आदि को शामिल करने की दिशा में काम हो रहा है। उदाहरण के तौर पर, सामुदायिक सेवा को भी सजाओं में एक विकल्प के रूप में शामिल किया गया है ताकि पहली बार अपराध करने वाले छोटे अपराधियों को सुधार-आधारित सजा मिल सके और उन्हें कारावास से बचाया जा सके।

विकासवादी विचारधारा के समर्थकों का मानना है कि यह कदम भारतीय न्याय व्यवस्था को न केवल आधुनिक और नागरिक-अनुकूल बनायेगा, बल्कि अदालतों पर आने वाले बोझ को भी कम करेगा। इससे न्याय तक पहुंच सुगम होगी और समाज में विश्वास की भावना मजबूत होगी।

सरकार के इस संभावित बड़े सुधार से अब छोटे-मोटे मामलों में कैद की सजा जैसे प्रावधानों का क्रमशः उन्मूलन संभव हो सकता है, जिससे दंड प्रक्रिया अधिक न्यायपूर्ण और सामाजिक सुधारोन्मुख होगी।

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