तबादलों पर ‘तूफान’! सत्ता की शह पर नियमों की धज्जियां, विभागों में सियासी भूकंप — भ्रष्टाचार और सिफारिशों के आगे लाचार सिस्टम

स्वास्थ्य, शिक्षा, बिजली, स्टांप, आयुष विभाग तबादला घोटाले के घेरे में | यूनियनों से लेकर मंत्रियों के पीए तक बनी ट्रांसफर इंडस्ट्री | आम कर्मचारी त्रस्त, रसूखदार मस्त

दैनिक इंडिया न्यूज़ डेस्क,लखनऊ, 24 जून 2025।उत्तर प्रदेश के सरकारी महकमे में तबादलों को लेकर मची अफरातफरी ने सत्ता के गलियारों में खलबली मचा दी है। नीति और नियम की किताबें धूल खा रही हैं, और ‘तबादला उद्योग’ फल-फूल रहा है। “रिश्वत दो, तबादला लो — रिश्वत दो, तबादला रुकवाओ”, यही नारा बन चुका है।

तबादलों की आड़ में खुला भ्रष्टाचार का बाजार

स्वास्थ्य, आयुष, स्टांप, शिक्षा और पावर सेक्टर सबसे बड़े केंद्र बने हुए हैं, जहां हर आदेश की कीमत तय है। तीन साल जिले, सात साल मंडल नीति का हवाला देने वाली सरकार के आदेश सिर्फ दिखावे भर रह गए। डॉक्टर हों या इंजीनियर, जो जेबें गर्म कर सके वो अपनी पसंदीदा पोस्टिंग पाता रहा।

आयुष और चिकित्सा विभाग में बेशर्मी की हद:

15-16 साल से जमे अफसर बचा लिए गए — जैसे डॉ. राजकुमार यादव और डॉ. तृप्ति सिंह।

सिर्फ दो साल पहले आए ईमानदार अफसर निशाने पर — डॉ. गुरुमीत का जबरन तबादला।

सूत्रों की मानें तो कई तबादला लिस्ट बिना मंत्रियों की मंजूरी के तैयार की गईं, और निजी स्वार्थों ने सिस्टम को पंगु बना दिया। चिकित्सा महानिदेशक प्रशासन भवानी सिंह खंगारीत को हटाया जाना इसी का उदाहरण है।

यूनियनें बनीं सत्ता-दलालों की ढाल

कर्मचारी यूनियनें अब कर्मचारियों की आवाज नहीं, दलालों की दुकानों में तब्दील हो चुकी हैं। स्वास्थ्य, शिक्षा, बिजली और स्टांप विभाग में यूनियन नेताओं पर तबादलों के नाम पर मोटी वसूली के आरोप हैं।

विद्युत विभाग में तो हद हो गई:
शैलेंद्र दुबे (विद्युत कर्मचारी संघर्ष समिति) का खुला आरोप — “पावर कॉरपोरेशन में तबादला फाइलें रुपये के वजन से चल रही हैं, नीति के दम से नहीं।”

राज्य कर्मचारी परिषद भी बोली:
जेएन तिवारी ने मुख्यमंत्री को ज्ञापन भेजकर उच्चस्तरीय जांच की मांग की — “सिस्टम को दलालों ने कैद कर लिया है। कार्रवाई जरूरी है।”

राजनीतिक संरक्षण वालों की मौज, ईमानदारों की सजा

सरकार का दावा था कि तबादला प्रदर्शन आधारित होगा। हकीकत यह है कि सिफारिश और पैसों से सूची तैयार हो रही है। जिन अफसरों ने घूस नहीं दी, वे रडार पर आ गए।

“जो सत्ता के नजदीक, वो लिस्ट से बाहर। जो ईमानदार, वो लिस्ट में अंदर!”

डॉक्टर दंपतियों को अलग-अलग जिलों में फेंक दिया गया, जबकि भ्रष्ट अफसर सालों से अपनी पसंदीदा कुर्सियों पर टिके हैं।

शिक्षा और स्टांप विभाग: तबादला या तमाशा?

स्टांप विभाग में 200 उप निबंधकों के तबादले अचानक निरस्त कर दिए गए। बेसिक शिक्षा में बीएसए तबादलों पर मुख्यमंत्री को रोक लगानी पड़ी। कहीं लिस्ट बनी, कहीं तबादला सत्र शून्य — और हर जगह लचर सिस्टम की पोल खुलती रही।

मुख्यमंत्री का हस्तक्षेप — मगर क्या इतना काफी है?

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जैसे ही तबादला भ्रष्टाचार की गंध पाई, तुरंत आदेश निरस्त कर कुछ कार्रवाई की। लेकिन सवाल कायम है —
👉 सिर्फ अधिकारियों को हटाना काफी है?
👉 दलालों और सिफारिशी ताकतों पर शिकंजा कब कसेगा?
👉 क्या ईमानदार अफसरों की हिफाजत होगी?

अब जनता की मांग — सिस्टम को बदलो!

✅ CBI या SIT से स्वतंत्र जांच — ट्रांसफर इंडस्ट्री की जड़ें उजागर हों।
✅ यूनियन-सत्ता गठजोड़ पर चोट — दलाली पर सख्त कार्रवाई।
✅ डिजिटल ट्रांसफर सिस्टम लागू हो — हर आदेश की ट्रैकिंग हो सके।
✅ ओपन ट्रांसफर पोर्टल बने — जनता देख सके कि किस आधार पर तबादले हुए।

👉 यह महज तबादला गड़बड़ी नहीं, पूरी व्यवस्था पर सवाल है। अगर अब भी कार्रवाई नहीं हुई, तो सिस्टम का भरोसा टूटेगा और ईमानदार अफसरों का मनोबल हमेशा के लिए गिर जाएगा।

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