
भक्ति, बल और करुणा की जीवित प्रतिमा हैं महावीर-विनोद अवस्थी

दैनिक इंडिया न्यूज़,लखनऊ। बड़े मंगल के अवसर पर राजधानी के मंगलम ग्रैंड परिसर में आयोजित संकटमोचन हनुमान जी की महिमा पर आधारित प्रवचन में श्रद्धालुओं की भावनाएं छलक पड़ीं। आयोजक विनोद अवस्थी ने भगवान हनुमान जी के एक ऐसे गुण का वर्णन किया, जिसने उपस्थित जनसमूह की आँखें नम कर दीं।

उन्होंने बताया कि जब लक्ष्मण मूर्छित हो गए थे, तब न हनुमान जी ने स्थान देखा, न समय—बस एक ही संकल्प था: “प्रभु के भ्राता को जीवन दान देना है।” हिमालय तक जाकर उन्होंने पूरा पर्वत ही उठा लिया, क्योंकि वे यह तय नहीं कर पाए कि कौन सी औषधि सही है। यह केवल शक्ति का नहीं, सेवा और प्रेम का चरम रूप है।

विनोद अवस्थी ने कहा, “हनुमान जी केवल वीर या शक्तिशाली देवता नहीं, वे समर्पण की पराकाष्ठा हैं। जब सीता जी ने उन्हें आशीर्वाद स्वरूप अमरता दी, तो उन्होंने विनम्रता से कहा— ‘जब तक श्रीराम का नाम इस संसार में गूंजेगा, तभी तक मेरा अस्तित्व हो।'”

यह बात सुनकर श्रद्धालुओं की आँखें भर आईं। सबने एक स्वर में जयकारा किया—
“जय जय जय हनुमान गोसाईं, कृपा करहु गुरुदेव की नाईं।”
कार्यक्रम का समापन हनुमान चालीसा के सामूहिक पाठ और दीप प्रज्वलन के साथ हुआ। भक्तों ने कहा कि आज की कथा ने उन्हें यह समझा दिया कि सच्ची भक्ति केवल शक्ति की नहीं, समर्पण और सेवा की भी होती है।