
दैनिक इंडिया न्यूज़ लखनऊ । सदर कैंट के संस्कृत विद्यालय का सभागार उस दिन असामान्य रूप से जीवंत था। वहाँ केवल कुर्सियाँ और मंच नहीं थे, बल्कि वहां बैठी भीड़ के भीतर एक अदृश्य उफान था—विचारों का, विश्वास का और भविष्य की उस संभावनाशील लहर का, जिसने पूरे बिहार को नई दिशा दी और अब उत्तर प्रदेश को भी स्पर्श करने के लिए आतुर प्रतीत होती है। इसी वातावरण में केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह का आगमन हुआ—गंभीर, संयत, परंतु भीतर से उमड़ते आत्मविश्वास से भरा हुआ।

उन्होंने जनता, कार्यकर्ताओं और प्रबुद्ध वर्ग के बीच संवाद आरंभ करते ही स्पष्ट कर दिया कि बिहार की प्रचंड विजय मात्र एक चुनावी उपलब्धि नहीं, बल्कि यह उस विचारधारा की चमक है जो जाति-पंथ के टुकड़े-टुकड़े किए बिना, भारतीय समाज को एक सूत्र में पिरोने का स्वप्न देखती है। उनके शब्द सभा में उपस्थित लोगों के भीतर एक ऐसी ऊष्मा पैदा कर रहे थे, मानो हर व्यक्ति इस राजनीतिक परिवर्तन का साक्षी ही नहीं, बल्कि सहभागी भी हो।

उन्होंने कहा कि “यह विजय कार्यकर्ताओं के पसीने में रची उस आस्था का परिणाम है, जिसमें राष्ट्र सर्वोपरि है और सत्ता केवल सेवा का माध्यम।” उनकी वाणी में वह दृढ़ता थी, जो किसी सिद्धांत की नहीं, बल्कि अनुभव की संतान होती है। उन्होंने कहा कि भाजपा की राजनीति जाति या धर्म की दीवारें नहीं खड़ी करती, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा, सांस्कृतिक गौरव और विकास की अखंड धारा को केंद्र में रखकर आगे बढ़ती है।

फिर उन्होंने अपनी आवाज में प्रखर उत्साह भरते हुए कहा—
“बिहार की यह विजय एक संकेत है। यह परिवर्तन की लहर है, और 2027 में उत्तर प्रदेश में इस लहर की उंचाई और अधिक प्रखर दिखेगी।”
सभा ने इस घोषणा को केवल सुना नहीं, महसूस किया। और यही अनुभूति लोकतांत्रिक राजनीति का वास्तविक तापमान होती है।
भ्रष्टाचार पर प्रहार करते हुए उन्होंने कहा कि यह दोष केवल नीतियों से नहीं, बल्कि व्यवस्था से जड़ें जमाता है। उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि भ्रष्टाचार को मिटाने के लिए भाषण नहीं, बल्कि साहसिक प्रशासनिक निर्णयों की आवश्यकता होती है—और यही साहस प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिखाया।
उन्होंने याद दिलाया कि पहले योजनाओं का 40–45 प्रतिशत धन रास्ते में ही नष्ट हो जाता था, लेकिन जनधन खाते की पहल ने उस पूरे ढांचे को ध्वस्त कर दिया। अब लाभ सीधे जनता तक पहुँच रहा है—बिना बिचौलियों के, बिना भ्रष्टाचार के, बिना किसी अपवंचना के। यह केवल आर्थिक सुधार नहीं, बल्कि विश्वास की पुनर्स्थापना है।
उन्होंने यूपीआई जैसे भारतीय नवाचार का उल्लेख करते हुए कहा कि आज विश्व का नेतृत्व भारत कर रहा है—दृष्टि से भी, तकनीक से भी और ईमानदारी से भी।
लखनऊ के विकास पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि “परिवर्तन कोई चमत्कार नहीं, बल्कि सतत ईमानदार प्रयासों से उपजा प्राकृतिक परिणाम है।” उनके शब्दों में वह सहज विश्वास था, जिसे केवल वही नेता व्यक्त कर सकता है जिसकी कार्यशैली और नीतियाँ उसी सिद्धांत पर आधारित हों।
सभा तब और गौरवान्वित हुई जब उन्होंने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि भारत अब हथियारों का आयातक देश नहीं, बल्कि विश्व समुदाय के सामने अपनी श्रेष्ठ क्षमता का गर्वित प्रदर्शन करने वाला राष्ट्र है।
और जब उन्होंने बताया कि ब्रह्मोस मिसाइल—जिसने ऑपरेशन सिंदूर में अपने कौशल से विश्व को स्तब्ध कर दिया—लखनऊ की धरती पर निर्मित होती है, तो सभागार में न केवल गर्व, बल्कि आत्मसम्मान की बहती ध्वनि सुनाई दी।
सभा में उपस्थित समाज, व्यापार जगत और विभिन्न समुदायों के प्रतिनिधियों ने भी अपनी बातें कहीं। व्यापार जगत ने जीएसटी सरलीकरण का स्वागत किया, सामाजिक प्रतिनिधियों ने सांसद निधि से हुए कार्यों के लिए धन्यवाद व्यक्त किया, और नागरिकों ने जन औषधि केंद्र व योग केंद्र जैसे प्रयासों को जीवन-परिवर्तनकारी बताया।
उनके वक्तव्यों में एक ही भाव था—विश्वास। यह विश्वास किसी व्यक्ति पर नहीं, बल्कि उस व्यवस्था पर, जो जनहित को सर्वोपरि रखती है।
उपमुख्यमंत्री बृजेश पाठक ने कैंट क्षेत्र में हुए विकास कार्यों की जानकारी देते हुए रक्षा मंत्री के प्रति आभार व्यक्त किया। सभा में महानगर अध्यक्ष आनंद द्विवेदी, एमएलसी मुकेश शर्मा, महापौर सुषमा खर्कवाल, विधायक ओ.पी. श्रीवास्तव, डॉक्टर राघवेंद्र शुक्ला, प्रमोद शर्मा, विनायक पांडे और रूपा देवी सहित अनेक विशिष्ट जन उपस्थित रहे।
मीडिया प्रभारी प्रवीण गर्ग ने बैठक के आयोजन और विषय-विस्तार का सार प्रस्तुत किया।
इस संवाद की समाप्ति किसी विराम की तरह नहीं, बल्कि एक नई शुरुआत की तरह प्रतीत हुई। बिहार में उठी लोकतांत्रिक आस्था की यह लहर उत्तर प्रदेश की ओर बढ़ रही है। यह केवल राजनीति का प्रवाह नहीं, बल्कि राष्ट्र के भविष्य का संकेत है—एक ऐसा भविष्य जहाँ राष्ट्रवाद, विकास, सुशासन और सांस्कृतिक चेतना एक साथ खड़ी होंगी।
