राष्ट्रीय सनातन महासंघ के तत्वाधान में श्री अपरिमेय दास के श्रीमुख से गीता ज्ञान पर व्याख्यान

श्री श्यामदास को सुनने के लिए उमडी युवकों की भीड़

राजनेताओं ने गीता ज्ञान को किया शिरोधार्य

दैनिक इंडिया न्यूज़ लखनऊ, 26 जनवरी: राष्ट्रीय सनातन महासंघ और डिफेंस वॉरियर अकादमी के संयुक्त तत्वावधान में राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री जितेंद्र प्रताप सिंह के घर के सामने आई पार्क में 26 जनवरी के अवसर पर एक भव्य आयोजन किया गया। कार्यक्रम का केंद्र बिंदु भगवद गीता के उपदेश, सनातन धर्म के मूल सिद्धांत, और भगवद भक्ति का प्रचार-प्रसार था।

इस दिव्य आयोजन में मुख्य अतिथि के रूप में इस्कॉन मंदिर लखनऊ के प्रमुख श्री अपरिमेय श्याम दास उपस्थित रहे। विशिष्ट अतिथि के रूप में राज्यसभा सांसद श्री अशोक बाजपेई, एमएलसी एवं सभापति विधान परिषद पवन सिंह चौहान, और मिडलैंड हॉस्पिटल के संचालक डॉ. वी.पी. सिंह सहित अन्य गणमान्य अतिथियों ने कार्यक्रम की गरिमा बढ़ाई।

कार्यक्रम का शुभारंभ और गीता के उपदेशों पर चर्चा

कार्यक्रम की शुरुआत राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री जितेंद्र प्रताप सिंह द्वारा ध्वजारोहण के साथ हुई। इसके पश्चात दीप प्रज्वलन का कार्य मुख्य अतिथि श्री अपरिमेय श्याम दास और विशिष्ट अतिथि गणों द्वारा किया गया। दीप प्रज्वलन के साथ ही भक्तिमय कीर्तन और श्रीकृष्ण के नाम का आवाहन हुआ, जिससे पूरा वातावरण आध्यात्मिक ऊर्जा से भर गया।

अपने प्रेरणादायक व्याख्यान में श्री अपरिमेय श्याम दास ने भगवद गीता के प्रमुख उपदेशों को सरल और प्रभावी ढंग से प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा, “भगवद गीता जीवन जीने का सबसे बड़ा मार्गदर्शक ग्रंथ है। यह हमें कर्म, ज्ञान और भक्ति का समुचित संतुलन सिखाती है।”

गीता के दूसरे अध्याय का श्लोक उद्धृत करते हुए उन्होंने कहा:
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि॥”

(अध्याय 2, श्लोक 47)

उन्होंने समझाया कि “यह श्लोक हमें निष्काम कर्म का महत्व सिखाता है। जीवन में हमें केवल अपने कर्तव्यों पर ध्यान देना चाहिए और उनके फल की चिंता नहीं करनी चाहिए। यही सनातन धर्म का संदेश है।”

शरणागति का मार्ग और गीता के गूढ़ उपदेश

कार्यक्रम के दौरान उन्होंने गीता के 18वें अध्याय के शरणागति श्लोक पर विशेष जोर दिया।
सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।
अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः॥”

(अध्याय 18, श्लोक 66)

उन्होंने कहा, “भगवान श्रीकृष्ण का यह श्लोक हमें पूर्ण समर्पण का महत्व समझाता है। जब मनुष्य उनकी शरण में आता है, तो वह अपने पापों से मुक्त होकर मोक्ष की ओर अग्रसर होता है।”

श्री दास ने यह भी कहा कि “गीता का हर श्लोक एक संदेश है, जो हमें जीवन के हर कठिन मोड़ पर सही मार्ग दिखाता है।”

कार्यक्रम में राज्यसभा सांसद श्री अशोक बाजपेई ने गीता और सनातन धर्म के प्रति अपनी आस्था व्यक्त करते हुए कहा, “गीता न केवल एक धार्मिक ग्रंथ है, बल्कि यह समाज और राष्ट्र निर्माण का भी आधार है।”

एमएलसी पवन सिंह चौहान ने कहा, “हमें गीता के उपदेशों को जीवन में आत्मसात कर अपनी आने वाली पीढ़ियों को भी इस महान ग्रंथ के बारे में शिक्षित करना चाहिए।”

डॉ. वी.पी. सिंह ने सनातन संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए इस प्रकार के आयोजनों की सराहना की और गीता को चिकित्सा और मानसिक स्वास्थ्य के संदर्भ में भी उपयोगी बताया।

कर्मयोग और निष्काम भाव का महत्व

कार्यक्रम में गीता के कर्मयोग पर भी चर्चा की गई। श्री दास ने गीता के इस श्लोक का उल्लेख किया:
योग: कर्मसु कौशलम्।”
(अध्याय 2, श्लोक 50)

उन्होंने कहा, “कर्म योग जीवन का सार है। जब हम निष्काम भाव से कर्म करते हैं, तो हम अपने बंधनों से मुक्त हो सकते हैं और अपने जीवन को शांति और संतोष से भर सकते हैं।”

कार्यक्रम के अंत में भव्य कीर्तन का आयोजन किया गया, जिसमें सभी भक्तों ने भगवान श्रीकृष्ण के भजनों में भाग लिया। “हरे राम, हरे कृष्ण” के मंत्रों से पूरा वातावरण भक्तिमय हो गया।

राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री जितेंद्र प्रताप सिंह ने कार्यक्रम की सफलता पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा, “यह आयोजन केवल एक सांस्कृतिक कार्यक्रम नहीं था, बल्कि सनातन धर्म के प्रचार और गीता के उपदेशों को जन-जन तक पहुंचाने का एक प्रयास था।”

गीता को जीवन का मार्गदर्शक बनाएं- श्याम दास

कार्यक्रम के अंत में श्री अपरिमेय श्याम दास ने सभी सनातनियों को गीता के उपदेशों को पढ़ने, समझने और उन्हें जीवन में उतारने का आग्रह किया। उन्होंने कहा, “गीता के ज्ञान को अपनाकर हम न केवल अपने जीवन को सुधार सकते हैं, बल्कि समाज और राष्ट्र को भी नई दिशा दे सकते हैं।”

उपस्थित गणमान्य अतिथियों का योगदान

इस आयोजन में राज्यसभा सांसद अशोक बाजपेई, एमएलसी पवन सिंह चौहान, मिडलैंड हॉस्पिटल के संचालक डॉ. वी.पी. सिंह और अन्य गणमान्य व्यक्ति उपस्थित रहे। सभी ने गीता के उपदेशों और सनातन धर्म की शिक्षाओं को जन-जन तक पहुंचाने के लिए इस प्रकार के आयोजनों की सराहना की।

यह कार्यक्रम न केवल आध्यात्मिक प्रेरणा का स्रोत बना, बल्कि उपस्थित जनसमूह के लिए जीवन को सही दिशा देने का मार्गदर्शक भी सिद्ध हुआ।

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