
दैनिक इंडिया न्यूज़,लखनऊ। राष्ट्रीय सनातन महासंघ द्वारा आगामी जून माह के प्रथम सप्ताह में हो रही अपनी कार्यकारिणी बैठक के पूर्व एक विशेष आध्यात्मिक भेंट और संवाद श्रृंखला का आयोजन रखा गया। इस अवसर पर संघ के महासचिव हरेंद्र सिंह एवं राष्ट्रीय प्रवक्ता पूज्य कृष्णाचार्य महाराज ने आज वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी, आईएएस अजय दीप सिंह के आवास पर जाकर उनसे औपचारिक भेंट के साथ आध्यात्मिक संवाद का शुभारंभ किया। इस अवसर पर महासंघ प्रतिनिधियों ने उन्हें एकादशमुखी हनुमान जी की भव्य प्रतिमा भेंट कर उनके सुखद, आध्यात्मिक जीवन की मंगलकामनाएं व्यक्त कीं।
इसी क्रम में राष्ट्रीय सनातन महासंघ द्वारा चलाए जा रहे सामाजिक एवं सांस्कृतिक अभियानों की भी जानकारी अजय दीप सिंह जी को दी गयी, जिसमें उन्होंने भी गहरी रुचि ली। आईएएस अजय दीप सिंह ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा प्रशासनिक सेवा केवल दैहिक विकास का माध्यम नहीं, अपितु आत्मिक संवर्धन की दिशा में भी यह दायित्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। उन्होंने कहा आध्यात्मिक मूल्यों पर आधारित शासन ही दीर्घकालिक कल्याणकारी राज्य का निर्माण करता है।
गायत्री महाविज्ञान और एकादश रूद्र गायत्रियों पर भी हुई चर्चा:-
इस अवसर पर गायत्री महाविज्ञान के 24 मूल गायत्री स्वरूपों में से 11 विशेष गायत्रियों, जिन्हें ‘एकादश रूद्र’ कहा जाता है, पर भी विस्तृत चर्चा हुई। अजय दीप सिंह जी ने इन स्वरूपों के आध्यात्मिक प्रभाव और ऊर्जा विज्ञान पर प्रकाश डालते हुए कहा इन गायत्रियों का संबंध शिव तत्व, ब्रह्म तेज और रक्षक ऊर्जा से है।
संवाद के दौरान उभर कर आया कि गायत्री केवल एक मंत्र नहीं, अपितु ब्रह्म चेतना का द्वार है। ये एकादश रूद्र गायत्रियाँ, विशेषकर कर्मयोग, ज्ञानयोग और भक्ति योग के सम्मिलन का प्रतिनिधित्व करती हैं। ये गायत्रियाँ मानसिक शक्ति, विवेक, आत्मनियंत्रण और तेजस्विता को जाग्रत करने का माध्यम हैं।
संवाद के दूसरे चरण में तत्वबोध: आत्मज्ञान की प्रस्तावना का उभरा संकल्प
संवाद के दूसरे चरण में वेदांत दर्शन के एक अत्यंत महत्वपूर्ण ग्रंथ ‘तत्त्वबोध’ पर प्रकाश डाला गया। तत्वबोध, आदि शंकराचार्य द्वारा रचित एक अनुपम ग्रंथ है, जो आत्मा, जीव, ब्रह्म और माया की यथार्थ परिभाषा देता है। इसमें बताया गया है कि—
“तत्त्व विवेकस्य अधिकारिणः साधन चतुष्टय संपन्नोऽध्यकारी”
— अर्थात जो विवेक, वैराग्य, षट्संपत्ति और मुमुक्षुता से युक्त है, वही तत्वबोध का अधिकारी है।
अजय दीप सिंह जी ने इस प्रसंग में जिज्ञासा प्रकट की कि तत्वबोध न केवल एक दार्शनिक विषय है, बल्कि यह जीवन की दिशा और दृष्टि बदलने वाला उपदेश है। माया क्या है, ब्रह्म क्या है, जीव का स्वरूप क्या है — इन विषयों पर विवेकपूर्वक चिंतन किया गया।
गीता और वेदांत की समन्वयी दृष्टि पर हुआ विश्लेषण
पूज्य कृष्ण आचार्य महाराज ने इस अवसर पर भगवद गीता की दृष्टि से भी तत्वबोध को जोड़ते हुए बताया कि गीता में जो "स्थिरबुद्धिः", "त्रिगुणातीतः" की स्थिति है, वही तत्वबोध का चरम लक्ष्य है। गीता के अध्याय 2 से 6 तक ज्ञान और ध्यान योग का निरूपण, तत्वबोध की भावभूमि है।
वेदांत दर्शन यह बताता है कि ‘अहं ब्रह्मास्मि’ — अर्थात मैं ही ब्रह्म हूँ — यह बोध ही सभी बंधनों से मुक्त करता है। यही तत्वबोध है — कि जीव, ब्रह्म से अभिन्न है। माया के पर्दे को हटाकर जब आत्मा अपने स्वरूप को जानती है, तब मोक्ष का आरंभ होता है।
अध्यात्म और प्रशासन के बीच समन्वयका उभरा संकल्प
इस पूरी भेंट वार्ता में आध्यात्म और प्रशासन को एक साथ चलाने संबंधित कार्य योजना का सामूहिक संकल्प जगा, सभी ने एक स्वर में स्वीकार किया कि इससे न केवल नीति सशक्त होती है, अपितु समाज में सद्भाव, संस्कार और आध्यात्मिक चेतना का जागरण भी होता है।