
दैनिक इंडिया न्यूज़ ,लखनऊ, 9 मार्च – राजधानी लखनऊ के श्रद्धानंद नगर ए पार्क, महानगर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के नेतृत्व में भव्य होली महोत्सव का आयोजन किया गया। इस अवसर पर फूलों से होली खेली गई और होलिका दहन के आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक महत्व पर चर्चा की गई। कार्यक्रम में सैकड़ों स्वयंसेवकों और श्रद्धालुओं ने भाग लिया।
होलिका दहन का धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व
मुख्य वक्ता लखनऊ पूर्व भाग के जिला प्रचारक कमलेश जी ने अपने संबोधन में होलिका दहन के ऐतिहासिक और धार्मिक संदर्भ को विस्तार से समझाया। उन्होंने कहा कि होलिका दहन केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि अधर्म पर धर्म की विजय, अहंकार पर भक्ति की शक्ति और अन्याय पर सत्य की जीत का प्रतीक है।
सिंहिका की कथा और प्रह्लाद का मंत्र
कमलेश जी ने पौराणिक संदर्भ देते हुए बताया कि हिरण्यकशिपु की बहन का असली नाम ‘सिंहिका’ था, जिसे वरदान प्राप्त था कि वह अग्नि में नहीं जलेगी। लेकिन जब उसने अपने भाई के आदेश पर भक्त प्रह्लाद को जलाने के लिए गोद में लेकर अग्नि में प्रवेश किया, तो ईश्वर की कृपा से स्वयं जलकर राख हो गई, जबकि प्रह्लाद सुरक्षित रहे।
उन्होंने बताया कि जब-जब हिरण्यकशिपु ने प्रह्लाद को मारने के लिए यातनाएँ दीं, तब प्रह्लाद भगवान विष्णु के इस मंत्र का जाप करते रहे:
“ॐ नमो भगवते वासुदेवाय”
इस मंत्र का अर्थ है: “मैं भगवान वासुदेव (श्री हरि विष्णु) को नमन करता हूँ।”
‘भारत को विश्वगुरु बनाने’ का संकल्प
कार्यक्रम के बाद स्वयंसेवकों ने स्वल्प आहार ग्रहण किया और होली के मूल संदेश को आत्मसात करने का संकल्प लिया।

इस अवसर पर राष्ट्रीय सनातन महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष जितेंद्र प्रताप सिंह ने कमलेश जी के व्याख्यान की सराहना करते हुए कहा, “जिस प्रकार हमारे स्वयंसेवक भारतीय संस्कृति और परंपराओं के संरक्षण के लिए समर्पित हैं, वह दिन दूर नहीं जब भारत पुनः विश्वगुरु के पद पर आसीन होगा।”
उन्होंने कहा कि आज के दौर में जब कुछ तत्व हमारी परंपराओं को विकृत करने का प्रयास कर रहे हैं, ऐसे आयोजनों के माध्यम से हमें अपने इतिहास और मूल्यों को समझना और नई पीढ़ी तक पहुँचाना आवश्यक है।
फूलों से खेली गई होली, भजन-कीर्तन से भक्तिमय हुआ वातावरण
कार्यक्रम के दौरान फूलों से होली खेली गई, जिससे पर्यावरण की शुद्धता बनी रही और धार्मिक उत्साह भी बढ़ा। भजन-कीर्तन और मंत्रोच्चार से पूरा वातावरण भक्तिमय हो गया, जिससे उपस्थित लोगों ने आध्यात्मिक शांति और उल्लास का अनुभव किया।
समरसता और संस्कृति का प्रतीक बना आयोजन
कार्यक्रम में स्थानीय नागरिक, स्वयंसेवक, सामाजिक कार्यकर्ता और धार्मिक विद्वान बड़ी संख्या में उपस्थित रहे। सभी ने यह संकल्प लिया कि होली का त्योहार केवल रंगों का उत्सव नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति, आध्यात्मिकता और सामाजिक समरसता का प्रतीक है।