
दैनिक इंडिया न्यूज़ नई दिल्ली।राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) में अपने सपनों का आशियाना बनाने का ख्वाब देखने वाले हज़ारों मध्यमवर्गीय परिवारों के साथ हुई महा-धोखाधड़ी का पर्दाफाश अब सुप्रीम कोर्ट के सख्त रुख और केंद्रीय जाँच ब्यूरो (CBI) की ताबड़तोड़ कार्रवाई से हो रहा है। बिल्डर-बैंकों की शातिर साठगाँठ ने न केवल लाखों-करोड़ों की मेहनत की कमाई लील ली, बल्कि इन मासूम खरीदारों को दसियों साल तक बिना घर के EMI का बोझ ढोने पर मजबूर कर दिया। यह सिर्फ एक वित्तीय घोटाला नहीं, बल्कि हज़ारों परिवारों की मानसिक शांति, विश्वास और भविष्य पर किया गया एक क्रूर हमला है, जिसकी जितनी निंदा की जाए, कम है।
यह पूरा मामला तब सामने आया जब हज़ारों फ्लैट खरीदारों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया। उनकी शिकायत एक ही थी – बिल्डरों ने उनसे मोटी रकम लेकर फ्लैट बुक तो करवा लिए, लेकिन वर्षों बीत जाने के बाद भी न तो उन्हें फ्लैट का कब्ज़ा मिला और न ही कोई संतोषजनक जवाब। हद तो तब हो गई जब जिन बैंकों ने इन प्रोजेक्ट्स के लिए लोन दिया था, वे भी घर खरीदारों पर EMI चुकाने का दबाव बनाने लगे, जबकि फ्लैट का निर्माण कार्य ठप पड़ा था या बेहद धीमी गति से चल रहा था।
इस पूरे खेल के केंद्र में ‘सबवेंशन स्कीम’ नाम की एक बेहद कपटपूर्ण चाल थी। इस स्कीम के तहत बिल्डर, बैंक और घर खरीदार के बीच एक ऐसा समझौता होता है, जिसमें शुरुआती कुछ वर्षों तक EMI का भुगतान बिल्डर द्वारा किए जाने का वादा किया जाता है। यह स्कीम अक्सर खरीदारों को आकर्षित करने के लिए इस्तेमाल की जाती है कि उन्हें तुरंत EMI की चिंता नहीं करनी पड़ेगी। लेकिन, इस मामले में, यह स्कीम एक घातक हथियार बन गई। बिल्डरों ने शुरुआती EMI तो भरीं, लेकिन जैसे ही उनकी वित्तीय स्थिति बिगड़ी या उनका इरादा धोखाधड़ी का था, उन्होंने EMI देना बंद कर दिया। इसका सीधा बोझ मासूम घर खरीदारों पर आ पड़ा, जो एक तरफ अपने घर के लिए तरस रहे थे और दूसरी तरफ उन फ्लैट्स की EMI चुकाने को मजबूर थे जो अस्तित्व में ही नहीं थे। यह बिल्डरों और बैंकों की मिलीभगत से रची गई एक ऐसी चाल थी, जिसने आम आदमी की गाढ़ी कमाई को सीधे तौर पर लूटा।
सुप्रीम कोर्ट ने इस गंभीर मामले पर संज्ञान लेते हुए केंद्रीय जाँच ब्यूरो (CBI) को जाँच का आदेश दिया। इसके बाद जो सामने आया वह चौंकाने वाला था। CBI ने एनसीआर के अलग-अलग बिल्डरों और उनसे मिलीभगत करने वाले कुछ फाइनेंशियल संस्थानों के अधिकारियों के खिलाफ कुल 22 FIR दर्ज की हैं। इतना ही नहीं, CBI ने 47 ठिकानों पर ताबड़तोड़ छापेमारी की, जिसमें देश के कुछ सबसे बड़े सरकारी बैंक – स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) और पंजाब नेशनल बैंक (PNB) – के अधिकारियों के कार्यालय और आवास भी शामिल हैं। यह दर्शाता है कि यह घोटाला सिर्फ छोटे-मोटे बिल्डरों तक सीमित नहीं था, बल्कि इसमें बैंकिंग सेक्टर के बड़े और विश्वसनीय नाम भी शामिल थे, जिनकी मिलीभगत के बिना यह हज़ारों करोड़ का फ्रॉड संभव नहीं था। यह घटना बैंकिंग प्रणाली पर जनता के विश्वास को गंभीर रूप से ठेस पहुँचाती है।
बिल्डरों की आलोचना यहाँ इसलिए आवश्यक है क्योंकि वे सिर्फ मुनाफा कमाने के लिए नहीं, बल्कि समाज के एक मूलभूत आवश्यकता – ‘घर’ – को पूरा करने का वादा करते हैं। इस मामले में उन्होंने न केवल उस वादे को तोड़ा, बल्कि एक संगठित अपराध के तहत हज़ारों लोगों को वित्तीय और मानसिक रूप से अपंग कर दिया। उनकी नैतिकता और व्यावसायिक ईमानदारी पूरी तरह से सवालों के घेरे में है। वहीं, बैंकों की भूमिका और भी अधिक संदिग्ध है। यह कैसे संभव है कि इतने बड़े पैमाने पर बिना उचित ड्यू डिलिजेंस (due diligence) और प्रोजेक्ट की प्रगति की जाँच किए बिना ही लोन स्वीकृत किए जाते रहे? क्या बैंकों को यह जानकारी नहीं थी कि बिल्डर EMI नहीं चुका पा रहे हैं या प्रोजेक्ट में गंभीर देरी हो रही है? या उन्होंने जानबूझकर बिल्डरों के साथ साठगाँठ कर ली थी? ऐसा लगता है कि कुछ बैंक अधिकारियों ने अपने व्यक्तिगत लाभ के लिए नियमों और प्रक्रियाओं की अनदेखी की, जिससे बिल्डरों को यह धोखाधड़ी करने का प्रोत्साहन मिला। जब फ्लैट नहीं बने, तो बैंकों ने बिल्डरों के खिलाफ कार्रवाई करने के बजाय, सीधे घर खरीदारों पर EMI का बोझ डाल दिया, जो उनके साथ घोर अन्याय था। यह एक ‘जवान’ बैंक की नहीं, बल्कि एक ‘जुर्माने’ वाले बैंक की छवि को दर्शाता है।
सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने इस गंभीर स्थिति को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका (PIL) दायर की है, जिसमें घर खरीदारों की सुरक्षा हेतु कुछ कठोर कानून बनाने की अपील की गई है। यह PIL बिल्कुल सही समय पर आई है, क्योंकि RERA और Consumer Protection Act जैसे मौजूदा कानूनों के बावजूद, बिल्डर और बैंक मिलकर जिस तरह से आम जनता को धोखा दे रहे हैं, वह दर्शाता है कि इन कानूनों में अभी भी गंभीर खामियाँ हैं या उनका प्रवर्तन (enforcement) पर्याप्त रूप से सख्त नहीं है।
यह घोटाला एक कड़वी सच्चाई है कि किस तरह व्यवस्था में बैठे लोग आम आदमी के सपनों को रौंद सकते हैं। लेकिन, सुप्रीम कोर्ट की सक्रियता और CBI की कार्रवाई ने न्याय की एक नई उम्मीद जगाई है। यह मामला न केवल उन हज़ारों फ्लैट खरीदारों को न्याय दिलाने के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि भविष्य में ऐसी धोखाधड़ी को रोकने के लिए एक मिसाल कायम करने के लिए भी ज़रूरी है। सरकार और न्यायपालिका को मिलकर ऐसे तंत्र विकसित करने होंगे जो बिल्डर-बैंकों की मनमानी पर लगाम लगा सकें और यह सुनिश्चित कर सकें कि किसी भी घर खरीदार को फिर कभी ऐसी भयानक स्थिति का सामना न करना पड़े। यह समय है कि कानून सिर्फ किताबों तक सीमित न रहें, बल्कि वे पीड़ितों को वास्तविक न्याय और अपराधियों को उनके गुनाहों की सज़ा दिलवाएँ।