Holi 2025: भद्रा के साए में आज होगा होलिका दहन, जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और सनातन नव वर्ष का महत्व

दैनिक इंडिया न्यूज़ ,नई दिल्ली, 13 मार्च 2025 – फाल्गुन पूर्णिमा के दिन होने वाला होलिका दहन बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक माना जाता है। यह पर्व भक्त प्रह्लाद की अटूट भक्ति और भगवान विष्णु की कृपा का प्रमाण है। इस वर्ष, होलिका दहन 13 मार्च को किया जाएगा, लेकिन भद्रा की उपस्थिति के कारण दहन के शुभ मुहूर्त को लेकर विशेष सतर्कता बरतनी होगी।

होलिका दहन का शुभ मुहूर्त

ज्योतिषाचार्य पंडित नंदकिशोर मुद्गल के अनुसार, इस वर्ष 13 मार्च को सुबह 10:04 बजे से रात 10:30 बजे तक भद्रा का प्रभाव रहेगा। शास्त्रों में भद्रा काल में होलिका दहन वर्जित माना गया है, क्योंकि इस अवधि में किया गया दहन अशुभ फलदायी हो सकता है। अतः होलिका दहन का शुभ मुहूर्त 13 मार्च की रात 10:54 बजे से मध्यरात्रि 12:45 बजे तक रहेगा

भद्रा का धार्मिक महत्व

सनातन धर्म में भद्रा को शनि देव की बहन और सूर्यदेव की पुत्री माना जाता है। उनका स्वभाव उग्र होने के कारण शुभ और मांगलिक कार्यों में भद्रा की उपस्थिति वर्जित होती है। ऐसी मान्यता है कि भद्रा काल में शुभ कार्य करने से अनिष्ट फल प्राप्त हो सकता है, अतः होलिका दहन भी भद्रा समाप्त होने के बाद ही किया जाता है

होलिका दहन की पूजा विधि

  1. होलिका के चारों ओर पांच, सात या 11 बार सूत (कच्चा धागा) लपेटें
  2. दक्षिण दिशा की ओर मुख करके जल से भरा कलश रखें और “ॐ होलिकाय नमः” मंत्र का जाप करें।
  3. होलिका और भक्त प्रह्लाद की पंचोपचार विधि से पूजा करें, जिसमें रोली, अक्षत, चंदन, फूल और मिष्ठान अर्पित करें।
  4. परिवार के सभी सदस्य होलिका की परिक्रमा करें और अर्घ्य अर्पित करें
  5. गेंहूं की बालियां, नारियल, सप्तधान्य, सिक्का और भोग होलिका में अर्पित करें।
  6. होलिका दहन के बाद उसकी अग्नि को घर में सुख-समृद्धि के लिए लाना शुभ माना जाता है

सनातन नव वर्ष का महत्व

होलिका दहन के अगले दिन धुलंडी (रंगों की होली) के साथ हिंदू नव वर्ष का आगमन होता है। इसे विक्रम संवत का आरंभ भी कहा जाता है, जो इस बार विक्रम संवत 2082 होगा।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार:

  • विक्रम संवत की शुरुआत महान सम्राट विक्रमादित्य ने की थी, और इसे सनातन धर्म का मूल संवत माना जाता है।
  • इसी दिन सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना प्रारंभ की थी, इसलिए इसे सृष्टि का प्रारंभ दिवस भी कहा जाता है।
  • यह समय नव ऊर्जा, सकारात्मकता और नए संकल्पों का प्रतीक होता है।

सनातन धर्म में होली और नव वर्ष सिर्फ उत्सव ही नहीं, बल्कि आत्मशुद्धि और नकारात्मकता के विनाश का प्रतीक भी हैं। भक्त प्रह्लाद की भक्ति हमें यह सिखाती है कि सत्य की विजय अवश्य होती है, चाहे परिस्थितियाँ कितनी भी कठिन क्यों न हों। इस पावन अवसर पर शांति, समृद्धि और सकारात्मक ऊर्जा की मंगलकामनाएं!

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