
Dainik India news new Delhi. हाल ही में अमेरिकी संस्था U.S. Food and Drug Administration (USFDA) ने भारतीय कंपनी सारस्वती स्ट्रिप्स प्राइवेट लिमिटेड द्वारा बनाए जा रहे एल्युमिनियम बर्तनों पर बड़ा अलर्ट जारी किया है। ये बर्तन बाजार में “Pure Aluminium Utensils” और “Tiger White” नाम से बेचे जाते हैं। USFDA की रिपोर्ट में पाया गया कि इन बर्तनों से खाना पकाने के दौरान खतरनाक मात्रा में सीसा (Lead) भोजन में घुल सकता है, जो इंसान की किडनी, हृदय, दिमाग और बच्चों की वृद्धि पर गंभीर असर डालता है। यह चेतावनी किसी मामूली समस्या की ओर नहीं बल्कि एक गहरे स्वास्थ्य संकट की ओर इशारा करती है।
रसोई में इस्तेमाल होने वाले बर्तनों की सामग्री हमारे भोजन की पोषकता और सुरक्षा का आधार है। यदि बर्तन ही सुरक्षित न हों, तो उनमें पकाया गया भोजन हमारे शरीर को धीरे-धीरे जहर की तरह प्रभावित कर सकता है। सीसा एक विषैला धातु है जो शरीर में जमा होकर वर्षों तक बना रहता है और इसकी विषाक्तता कई गंभीर बीमारियों का कारण बनती है।
अंतरराष्ट्रीय जर्नल्स और USFDA की रिपोर्ट्स बताती हैं कि कई एल्युमिनियम और पीतल से बने बर्तनों में सीसा की मात्रा 100 ppm से लेकर हजारों ppm तक पाई गई। सामान्य परिस्थितियों में पकाए गए भोजन में भी यह सीसा रिसकर चला गया और कई मामलों में यह मात्रा FDA द्वारा बच्चों के लिए तय की गई सुरक्षा सीमा से 650 गुना अधिक पाई गई।
भारत में भी इस विषय पर अध्ययन हुए हैं। Pure Earth संस्था द्वारा तमिलनाडु के स्कूलों में किए गए एक पायलट अध्ययन में 58 बर्तनों की जांच की गई। इनमें से 98% बर्तनों में सीसा की मात्रा 500 ppm से ज्यादा पाई गई, जबकि औसत स्तर 1604 ppm रहा। मुंबई में एक केस स्टडी में पाया गया कि एक व्यक्ति को पुराने एल्युमिनियम प्रेशर कुकर के लगातार उपयोग से सीसा विषाक्तता हो गई थी।
Bureau of Indian Standards (BIS) ने इस खतरे को ध्यान में रखते हुए हाल ही में एल्युमिनियम बर्तनों की अधिकतम उपयोग अवधि 12 से 24 महीने तय की है। साथ ही, उन्होंने निर्देश दिया है कि बर्तन बनाने में इस्तेमाल धातुओं में Lead, Cadmium और Mercury की मात्रा 0.05% से कम होनी चाहिए। जुलाई 2025 से यह नियम छोटे उद्यमों पर और अक्टूबर 2025 से माइक्रो उद्यमों पर लागू होंगे।
स्वास्थ्य की दृष्टि से यह खतरा बेहद गंभीर है। बच्चों पर सीसा का प्रभाव सबसे ज्यादा पड़ता है। यह उनके दिमागी विकास, सीखने की क्षमता और IQ को स्थायी रूप से प्रभावित कर सकता है। वयस्कों में यह किडनी की कार्यक्षमता, हाई ब्लड प्रेशर, एनीमिया और हृदय रोग का कारण बन सकता है। गर्भवती महिलाओं के लिए यह और भी खतरनाक है क्योंकि यह भ्रूण के विकास को भी प्रभावित करता है।
विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि पुराने, खुरदरे या स्क्रैप से बने एल्युमिनियम बर्तनों का उपयोग तुरंत बंद कर देना चाहिए। जहां तक संभव हो, SS304 ग्रेड स्टेनलेस स्टील के बर्तनों का उपयोग सबसे सुरक्षित विकल्प है। यदि एल्युमिनियम बर्तनों का उपयोग करना ही है तो उन्हें हर 12 से 24 महीने में बदलना आवश्यक है।
USFDA की चेतावनी के बाद कई देशों में दुकानदारों को इन बर्तनों की बिक्री रोकने की सलाह दी गई है। भारत में भी उपभोक्ताओं को चाहिए कि वे ऐसे उत्पाद खरीदते समय कंपनी और BIS प्रमाणन की जांच जरूर करें।
सीसा विषाक्तता का यह मुद्दा दिखाता है कि रसोई का चुनाव केवल स्वाद और सुविधा का नहीं, बल्कि स्वास्थ्य सुरक्षा का प्रश्न है। जागरूकता ही इसका सबसे बड़ा समाधान है। यदि उपभोक्ता सतर्क हो जाएं, सरकार नियमों को लागू करे और कंपनियां मानकों का पालन करें, तो इस खतरे को काफी हद तक रोका जा सकता है। यह केवल व्यक्तिगत स्वास्थ्य ही नहीं, बल्कि सार्वजनिक स्वास्थ्य सुरक्षा का मामला है।