मृत्यु का बदलता पैटर्न ….पढ़ सको तो पढ़ लो, एक बेहतरीन पोस्ट..

ब्यूरो डेस्क

एक बेहतरीन गायक और शानदार शख्सियत कृष्णकुमार कुन्नाथ ‘केके’ मात्र 53 वर्ष की आयु में आज अचानक उस वक्त अपने फैंस को स्तब्ध छोड़कर हमेशा-हमेशा के लिए शांत हो गए, जब वे कोलकाता के एक लाइव कार्यक्रम में मंच पर परफॉर्म कर रहे थे।
अपना सबसे पसंदीदा काम करते हुए यानी गाने गाते हुए उन्होंने आखिरी साँसें ली,एक यही बात सोचकर उनके फैंस जरा सी तसल्ली महसूस कर सकते हैं। केके अपने पीछे परिवार में पत्नी व दो छोटे बच्चे छोड़ गए हैं।

सोचता हूँ अन्य सेलेब्रिटीज़ की तरह उन्होंने भी आज हैल्दी ब्रेकफास्ट लिया होगा,दैनिक व्यायाम, योगा या जिम वर्कआउट किया होगा। कुछेक लोगों के साथ व्यावसायिक मीटिंग्स की होंगीं। आज के कार्यक्रम के लिए टिपटॉप तैयार होकर मंच पर पहुंचे होंगे जहाँ उन्हें एक यादगार हाई एनर्जी परफॉर्मेंस देनी थी। उनके शेड्यूल में अगले कुछ महीनों के कार्यक्रम पूर्व निर्धारित रहे होंगे। एक तिरेपन वर्षीय हैंडसम सेलेब्रिटी की जिंदगी शायद इससे भी अधिक व्यस्त रही होगी जितनी मैं सोच पा रहा हूँ।

2 सितंबर,2021 को इसी तरह 40 वर्षीय परफैक्टली फिट नजर आनेवाले अभिनेता सिद्धार्थ शुक्ला की हार्ट अटैक से मौत ने भी दर्शकों को चौंका कर रख दिया था। उन्होंने आधी रात को अपनी माँ से सीने में हल्का दर्द होने की शिकायत की और अस्पताल ले जाए जाने पर उन्हें मृत घोषित कर दिया गया था।

कन्नड़ फिल्मों के सुपरस्टार और जानेमाने समाजसेवी 46 वर्षीय पुनीत राजकुमार की 26 अक्टूबर को बैंगलुरू में अचानक उस समय कार्डियक अरैस्ट के कारण मृत्यु हो गई जब वे प्रतिदिन की भाँति जिम में वर्कआउट कर रहे थे। वे कन्नड़ फैंस के दिलों में इस गहराई तक बसे हुए हैं कि आज उनकी मृत्यु के नौ महीने बाद भी हर गली,
हर चौराहे पर गोलगप्पे बेचनेवाले से लेकर बड़े बड़े शोरूम वालों ने भी उनकी श्रद्धांजलि में बड़े-2 पोस्टर लगा रखे हैं।

इन तीनों ही सेलेब्रिटीज़ ने अपने जीवन में हर मुमकिन वह कोशिश की होगी जिससे वे एक लंबा व स्वस्थ, सफल जीवन अपने परिवार के साथ बिता सकें।
निस्संदेह ये सभी खानपान के परहेज से लेकर कसरत आदि सभी प्रयासों के द्वारा एक अनुशासित जीवन का पालन करते रहे होंगे। फिर भी किसी को 53,किसी को 46 तो किसी को 40 वर्ष में बहुत भागदौड़ कर कमाई हुई सारी संपत्ति,इतना स्ट्रैस लेकर,तिकड़में भिड़ाकर अर्जित किया हुआ सारा वैभव अचानक ही छोड़कर जाना पड़ा।

ऐसा नहीं है कि जीवनभर भागदौड़ करके उन्होंने कोई गलती की। दुख मात्र यह होता है कि ये प्यारे-2 लोग अपनों से यह भी ना कह पाए कि अब चलता हूँ,अपना ख्याल रखना। जाते समय अपने बच्चों को सीने से नहीं लगा पाए,उन्हें आखिरी पप्पियाँ नहीं दे पाए। दो चार दिन बीमार भी नहीं पड़े रहे कि कुछ आभास हो जाता तो माँ,पिता, पत्नी,दोस्तों से आखिरी बार अपने मन की कुछ साध कह लेते।

कुछ वर्षों पहले तक जब मैनें अपने बुजुर्गों को अंतिम यात्रा पर जाते देखा था, मुझे याद है वे आराम से हमारे सर पर हाथ रखकर हमें असीसते हुए,गीता का सोलहवां अध्याय सुनते हुए शांतिपूर्वक अंतिम सांसें लेते थे।
कौन सी करधनी किस नातिन को तो कौन सा गुलूबंद किस बहू को देना है, बहुत संतोषपूर्वक मैनें अपनी दादी को मृत्युशैया पर बताते देखा। गौदान का संकल्प भी होश रहते ले लिया करते थे। आजकल मृत्यु का पैटर्न बदल गया है। अब मृत्यु गीता का सोलहवां अध्याय सुनने सुनाने का सुअवसर नहीं देती।
अब बेटे बहू,यार दोस्तों से हँसते बतियाते हुए जाने की साध पूरी होती नहीं देखी जा रही।
बहुत से लोग तो इतनी युवावस्था में जा रहे हैं कि
बहू,दामाद,नाती,पोतों जैसे सुख और कर्तव्यों का आनंद एक दिवास्वप्न ही रह गया है।

एक ही आग्रह है। किसी से रूठकर ना बिछड़ें।
किसी को रुलाकर ना सोएं। किसी को अपमानित करके बड़प्पन ना महसूस करें। किसी को दबाकर, किसी की स्थिति का फायदा उठाकर मूँछों पर ताव ना दें।
हो सकता है जब तक हमें अपनी गलती महसूस हो तब तक वह जिसके प्रति हमसे अपराध हुआ है,अगर इस संसार को अलविदा कह दे तो हम किससे अपने अपराध क्षमा करवाएंगे, किससे माफी मांगेंगे। हम अपना मन उदार रखें। छोटीछोटी बातों को दिल से ना लगाएं।
चोट और धोखा बेशक किसी से ना खाएं पर इतने तंगदिल भी ना हो जाएं कि प्रेम के दो बोल भी हमसे सुनने के लिए हमारे संपर्क में आनेवाले तरस जाएं।
तनी हुई भृकुटि में तो हमारी अंतिम तस्वींरें भी सुंदर नहीं आएंगीं।

Share it via Social Media

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *