लखनऊ में अवैध निर्माण ,घर उजड़ने की पीड़ा , क्या है सरकार की जवाबदेही?

दैनिक इंडिया न्यूज़, लखनऊ। लखनऊ की रिवरफ्रंट परियोजना के तहत अवैध निर्माणों को गिराने की कार्रवाई ने शहर के निवासियों के दिलों में दर्द और आक्रोश भर दिया है। जिन घरों को लोग अपने खून-पसीने से बना चुके थे, अब उन्हें अवैध बताकर तोड़ा जा रहा है। एक महिला के मन में घर की कोमल भावना को समझना कोई आसान बात नहीं है। यह दर्द वही समझ सकते हैं जिन्होंने अपनी माँ, बहन, बेटी या जीवन साथी के साथ घर बनाया और बसाया है।

रातों-रात अपने सपनों का घर खोने का दर्द, उस पीड़ा को केवल वही लोग समझ सकते हैं जो इस भयानक त्रासदी से गुजर रहे हैं। हर एक ईंट जो जोड़कर उन्होंने अपना आशियाना बनाया था, उसमें उनके सपनों और भावनाओं की गहरी छाप है। एक घर सिर्फ चार दीवारों से नहीं बनता, उसमें एक परिवार की उम्मीदें, सपने, और उनकी मेहनत भी जुड़ी होती हैं।

यह सब तब हो रहा है जब देश ने हाल ही में कोविड-19 महामारी के भयावह दौर से उभरना शुरू किया है। कितने परिवार अब भी बेरोजगारी और आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं। महामारी ने न जाने कितने लोगों की रोजी-रोटी छीन ली, उनके जीवन की स्थिरता को हिला दिया। ऐसे में सरकार द्वारा इस तरह की हिटलरशाही से लोगों के मन में डर का मातम छाया हुआ है। यह समय सरकार के लिए मानवता दिखाने का है, न कि लोगों को और ज्यादा तकलीफ देने का।

इन घरों को अवैध करार देकर तोड़ने से पहले, यह सवाल उठता है कि जब ये घर बन रहे थे, तब प्रशासनिक अधिकारी और संबंधित मंत्रालय कहाँ थे? क्या वे अपनी जिम्मेदारी से सोते रहे? यदि ये घर अवैध हैं, तो पहले उन अधिकारियों और मंत्रालय के लोगों के घर तोड़े जाने चाहिए जिन्होंने इन निर्माणों की अनुमति दी। इसके अलावा, सरकार ने सालों से बिजली, पानी, और टैक्स के नाम पर जो पैसे वसूले हैं, उन्हें ब्याज सहित इन निवासियों को वापस किया जाना चाहिए।

इस घटना के पीछे भाजपा सरकार की प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री आवास योजना की वास्तविकता पर भी सवाल उठ रहे हैं। क्या यह सब रिवरफ्रंट बनानेवाली कंपनियों से चुनावी चंदा वसूलने के लिए किया जा रहा है? इस मुद्दे की गहन जाँच होनी चाहिए।

सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव ने इस मुद्दे पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। उन्होंने पंतनगर और अबरार नगर के निवासियों के साथ खड़े होते हुए कहा कि जिन लोगों ने अपनी मेहनत और परिश्रम से अपने आशियाने बनाए हैं, उनके घरों को तोड़ा जा रहा है, जबकि रजिस्ट्री करने वालों और अनुमति देने वालों को कोई सजा नहीं मिल रही है। उन्होंने पीड़ित परिवारों को आश्वासन दिया कि वे उनके दुख में साथ हैं और उनकी संवेदना उनके साथ है।

जब ये अवैध निर्माण हो रहे थे, तब सिंचाई विभाग कहाँ सो रहा था? उनके अधिकारी कहां थे? जिन लोगों ने रजिस्ट्री की, क्या उन्होंने घूस नहीं दी होगी? क्या उन पर सरकार कार्रवाई करेगी? ये बहुत सारे मुद्दे हैं जो उठाने वाले हैं। जब बिजली का कनेक्शन हुआ था, तब क्या पेपर देखे गए थे? जब बैंक ने लोन दिया था, तब क्या पेपर देखे गए थे? अगर उस समय सब कुछ ठीक था, तो आज यह गलत क्यों है? ये सवाल तो उठेंगे सरकार की मंशा और उसकी कार्यप्रणाली पर। जो व्यवस्था को देखने और सुधारने वाले हैं, वे कहाँ थे?

सरकार को अपनी नीतियों और योजनाओं का पुनर्मूल्यांकन करना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि विकास की दौड़ में किसी का घर और जीवन बर्बाद न हो।

यह अन्याय तुरंत रुकना चाहिए। भाजपा को अपनी राजनीतिक हार का बदला परिवारवालों से नहीं लेना चाहिए। हम हर परिवारवाले के साथ खड़े हैं और उनके दर्द को समझते हैं।

यह समय है कि हम मानवता को प्राथमिकता दें। जिन लोगों ने मेहनत से अपने घर बनाए हैं, उन्हें उजाड़ने से पहले उनकी पीड़ा को समझा जाए। सरकार को अपनी नीतियों और कार्यप्रणाली का पुनर्मूल्यांकन करना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि विकास की दौड़ में किसी का घर और जीवन बर्बाद न हो।

रातों-रात बेघर होने का खौफ, उन परिवारों के बच्चों की आँखों में देखा जा सकता है। वे जो घर लौटने की उम्मीद लिए थे, अब अपनी आँखों के सामने अपने सपनों का महल टूटता देख रहे हैं। ये वही लोग हैं जिन्होंने भाजपा की जीत पर जश्न मनाया और मिठाइयाँ बाँटी थीं। आज उन्हीं के घर उजड़ रहे हैं।

सरकार को यह समझना होगा कि घर सिर्फ चार दीवारों से नहीं बनते, उसमें लोगों की मेहनत, प्यार, और भावनाएँ भी शामिल होती हैं। एक घर को उजाड़ने से पहले उसके भीतर बसने वाली ज़िन्दगियों की पीड़ा को महसूस करना चाहिए।

लखनऊ के इन निवासियों की आवाज़ को सुना जाना चाहिए। उनका दर्द, उनकी पीड़ा, और उनकी उम्मीदें सरकार तक पहुँचनी चाहिए। यह आवश्यक है कि इस मुद्दे पर राजनीति से ऊपर उठकर मानवता को प्राथमिकता दी जाए।

सरकार को अपनी नीतियों और योजनाओं का पुनर्मूल्यांकन करना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि विकास की दौड़ में किसी का घर और जीवन बर्बाद न हो। इस त्रासदी को रोकने का समय अब है, और सरकार को यह समझना होगा कि गलतियाँ कहाँ हुईं और उन गलतियों की सजा सही लोगों को मिलनी चाहिए।

स्थानीय निवासियों का कहना है कि हम लोग 40-50 साल से यहाँ रह रहे हैं जबकि हमारे सभी दस्तावेज़ जैसे दाखिल खारिज और एलडीए से पास नक्शे उपलब्ध हैं। कई घरों के पास NOC भी है। कोविड के दौरान कई परिवारों ने अपना एकमात्र कमाने वाला खो दिया था और अब किराए पर घर देकर अपनी जीविका चला रहे हैं। ऐसे में घर टूटने से उनकी जीवन स्थितियाँ और भी कठिन हो जाएंगी।

कुछ स्थानीय लोग बता रहे हैं कि उन्होंने लोन लेकर घर खरीदा था और अब उसका भुगतान कर चुके हैं। अगर उनके मकान तोड़ दिए गए, तो वे पूरी तरह से बेघर हो जाएंगे। स्थानीय नागरिकों की मांग है कि मुख्यमंत्री बिना मुआवजा दिए किसी का घर न उजाड़ें।

भाजपा कार्यकर्ताओं के दुख का विश्लेषण:

हाल ही में लोकसभा चुनाव के दौरान विधानसभा का उपचुनाव हुआ था जिसमें पंतनगर में भाजपा के बहुत से कार्यकर्ता थे। इन लोगों ने अपना कामधंधा बंद करके दो महीने पहले से चुनाव की तैयारी में लग गए थे। कार्यकर्ताओं में इतना ज्यादा दुख है कि वे कह रहे हैं, “हमारा आज घर टूट रहा है और हम बेबस हैं। अपनी ही पार्टी की सरकार से हम अपना दुख व्यतीत नहीं कर पा रहे हैं।” कार्यकर्ताओं ने कहा, “हम जनता के बीच में जाने लायक नहीं हैं। क्या हमको चुनाव प्रचार में जी-जान लगाने के बाद इनाम स्वरूप आज सरकार हमारा घर तोड़ रही है, हमारा आशियाना उजाड़ रही है? क्या इसी दिन को देखने के लिए हम भाजपा के पीछे-पीछे भागते थे? हमने किताबों में अंग्रेजी तानाशाह के बारे में पढ़ा था, लेकिन आज की तानाशाही कहीं अंग्रेजों से ज्यादा खतरनाक है।”

सरकार को यह समझना होगा कि जो लोग अपने मेहनत से अपने घर बनाए हैं, उनके सपनों को उजाड़ना मानवता के खिलाफ है। इस मुद्दे पर जागरूकता फैलाना और लोगों की भावनाओं को समझना आवश्यक है।

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