जन्म-मरण के चक्रव्यूह से स्वतंत्रता का साधन है श्रीकृष्ण नाम-अपरिमेय श्याम दास
हरिंद्र सिंह दैनिक इंडिया न्यूज़,लखनऊ, 15 अगस्त 2024— स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर राजधानी लखनऊ के महानगर E पार्क में आयोजित विशेष प्रभात फेरी में राष्ट्रीय और सामाजिक हस्तियों की उपस्थिति रही। इस अवसर पर कार्यक्रम की विशेष शोभा तब और बढ़ गई जब प्रभुपाद अपरिमेय श्याम दास, इस्कॉन के प्रमुख, को मुख्य अतिथि के रूप में मंच पर आमंत्रित किये गए। उन्होंने अपने गहन और विचारशील भाषण में भगवद गीता के शाश्वत ज्ञान और श्री कृष्ण नाम की महिमा को हमारे जीवन और राष्ट्र की सुरक्षा के लिए आवश्यक बताया।
प्रभुपाद अपरिमेय श्याम दास ने अपने संबोधन में गीता के महत्त्व को रेखांकित करते हुए कहा, “गीता केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं है; वल्कि हमारे जीवन और राष्ट्र की सुरक्षा के लिए एक गहन मार्गदर्शन है। यदि गीता, रामायण, और महाभारत जैसे महान ग्रंथों को हमारी शिक्षा प्रणाली में शामिल किया जाए, तो हमारी नई पीढ़ी अधिक नैतिक, कर्तव्यनिष्ठ और देशभक्त होगी। इससे हमारा बॉर्डर भी पहले की अपेक्षा और अधिक सुरक्षित रहेगा।”
उन्होंने गीता के दूसरे अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण द्वारा दिए गए कर्मयोग के उपदेश का उदाहरण दिया: “कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥” (गीता 2.47)। इस श्लोक का भावार्थ है कि व्यक्ति को केवल कर्म करने का अधिकार है, फल की चिंता नहीं करनी चाहिए। यह सिद्धांत हमारे व्यक्तिगत जीवन के साथ-साथ राष्ट्र के उत्थान में भी सहायक होता है।
प्रभुपाद अपरिमेय श्याम दास ने श्री कृष्ण नाम की महिमा का वर्णन करते हुए कहा, “श्री कृष्ण नाम का जप करना केवल धार्मिक कर्तव्य नहीं है, यह एक महान साधन है जो हमें जन्म और मरण के चक्रव्यूह से बाहर निकालने का मार्ग दिखाता है। श्री कृष्ण नाम का जप करने से हर तरह की स्वतंत्रता मिलती है, चाहे वह भौतिक बंधनों से हो या आध्यात्मिक बाधाओं से। यह महामंत्र इतना अद्भुत है कि इसके उच्चारण मात्र से हमारे सारे संकट दूर हो सकते हैं और जीवन में शांति और समृद्धि का प्रवेश होता है।”
उन्होंने बताया कि श्री कृष्ण नाम के महामंत्र की शक्ति अनंत है। यह महामंत्र व्यक्ति को आत्मा के वास्तविक स्वरूप का बोध कराता है और उसे ईश्वर की शरण में लाने का सामर्थ्य रखता है। प्रभुपाद ने कहा, “हरे कृष्णा, हरे कृष्णा” महामंत्र के नियमित जप से व्यक्ति न केवल आध्यात्मिक शांति प्राप्त करता है, बल्कि उसे जीवन के सभी संकटों से भी मुक्ति मिलती है। उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण के नाम का गुणगान करते हुए कहा, “श्री कृष्ण नाम के जप से जीवन में स्थायी स्वतंत्रता प्राप्त होती है। यह स्वतंत्रता केवल बाहरी बाधाओं से नहीं, बल्कि मन के अंदर की सभी अशांति और क्लेशों से होती है।”
अपने उद्बोधन के दौरान प्रभुपाद अपरिमेय श्याम दास ने बार-बार “हरे कृष्णा, हरे कृष्णा” का संगीतमय कीर्तन किया, जिससे माहौल भक्तिमय हो गया। उन्होंने कहा, “भगवान श्रीकृष्ण के नाम का स्मरण हमें हर परिस्थिति में साहस और धैर्य प्रदान करता है। यही कारण है कि गीता के अध्ययन के साथ-साथ हमें भगवान का नाम भी जपना चाहिए, ताकि हमें उनकी कृपा प्राप्त हो और हम सच्चे मार्ग पर चल सकें।”
प्रभुपाद अपरिमेय श्याम दास ने सभा को संबोधित करते हुए गीता के सिद्धांतों को समाज और राष्ट्र के उत्थान के लिए अत्यावश्यक बताया। उन्होंने कहा, “गीता हमें यह सिखाती है कि हमारे जीवन का मुख्य उद्देश्य केवल अपने लिए नहीं, बल्कि समाज और राष्ट्र के कल्याण के लिए होना चाहिए।” उन्होंने गीता के 18वें अध्याय से उद्धृत किया: “सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज। अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः॥” (गीता 18.66)। इसका अर्थ है कि सभी धर्मों को छोड़कर केवल मेरी शरण में आओ, मैं तुम्हें सभी पापों से मुक्त कर दूँगा, शोक मत करो। उन्होंने इस श्लोक के माध्यम से यह बताया कि यदि हम अपने सभी कार्यों को भगवान के चरणों में समर्पित कर दें, तो हमें किसी भी प्रकार का भय या चिंता नहीं होगी।
कार्यक्रम के दौरान प्रभुपाद अपरिमेय श्याम दास का स्वागत और अभिनंदन पूर्व जल शक्ति मंत्री और मध्य प्रदेश भाजपा प्रभारी डॉ. महेंद्र सिंह, वरिष्ठ भाजपा नेता और सामाजिक कार्यकर्ता नीरज सिंह, उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा निदेशक महेंद्र देव, उत्तर प्रदेश माध्यमिक संस्कृत शिक्षा परिषद के सचिव शिवलाल, मिडलैंड हेल्थकेयर एंड अनुसंधान संस्थान के अध्यक्ष डॉ. बी. पी. सिंह, वरिष्ठ यूरोलॉजिस्ट डॉ. दिवाकर दलेला, सेवानिवृत्त कर्नल आर. के. तिवारी, मेघदूत ग्रामोद्योग के प्रबंध निदेशक विमल शुक्ल, वारियर्स डिफेंस एकेडमी के अध्यक्ष गुलाब सिंह, राष्ट्रीय सनातन महासंघ के राष्ट्रीय महासचिव एच. एस. भार्गव, और प्रवक्ता कृष्ण कुमार तिवारी द्वारा पुष्प गुच्छ और श्री राधे कृष्ण की मूर्ति देकर किया गया।