संस्कृत भारती कार्यालय महानगर शिव मंदिर के पावन प्रांगण में आदि गुरु शंकराचार्य के चित्र पर माल्यार्पण व दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ
दैनिक इंडिया न्यूज़ लखनऊ । राजधानी लखनऊ स्थित महानगर के लखनपुरी में मंगलवार को आदि शंकराचार्य जयंती संस्कृतभारतीन्यास अवधप्रान्त के अध्यक्ष जेपी सिंह, की अध्यक्षता मे श्रद्धाभाव से सम्पन्न हुई। बड़ी संख्या मे संस्कृत भाषा सहित्य व वेद पुराण भगवत गीता अनुरागी गणमान्य अतिथियों ने उनके बताएं गए धर्मशास्त्र के उपदेशों को स्मरण कर और विचार किया ।
इसी कड़ी में महानगर स्थित अवध प्रांत के संस्कृत भारती कार्यालय में जयंती कार्यक्रम के साथ ही मार्च 2022 से चल रही अंतर्जाल अश्टाध्यायी व्याकरण कक्षा का समापन भी हुआ। संस्कृतभारतीन्यास अवधप्रांत के
अध्यक्ष जे पी सिंह जी व मुख्य वक्ता शोभन लाल उकील, संगठन मंत्री गौरव नायक व अन्य अतिथियों ने आदि शंकराचार्य के चित्र पर मालयार्पण व दीप प्रज्जवलित कर कार्यक्रम का शुभारम्भ किये।
संस्कृतभारती न्यास अवध प्रांत के अध्यक्ष जे पी सिंह ने गौष्ठी की अध्यक्षता करते हुए प्रारंभिक उद्बोधन मे आदि गुरू शंकराचार्य जी के जीवन पर प्रकाश डालते हुए विषम परिस्थितियों में वृहद भारत मे चारों दिशाओं मे चार धर्म मठों की स्थापना करते हुए विभिन्न धर्मविधाओं के श्रेष्ठतम संतो से शास्त्रार्थ द्वारा हिन्दु धर्म को उसके सर्वश्रेष्ठ स्थान पर स्थापित किया।उनका मार्ग दर्शन आज के वर्तमान परिदृश्य मे उतना ही प्रासंगिक है जितना कि उस काल खंड मे उपयोगी था।
शोभन लाल उकील संस्कृतभारती अवधप्रान्त संगठन ने आदि शंकराचार्य के जीवन पर प्रकाश डालते हुए
बताया कि उन्होंने 16 साल की उम्र में वेद, उपनिषद आदि ग्रंथों पर भाष्य लिख दिया था।एक बार वेद व्यास जी उनकी परीक्षा लेने आए तो उनकी विद्वता व संसार को उनकी अवश्यकता देख उम्र में 16 साल की वृद्धि कर दी। 32 साल की अल्पायु में वह बृह्मलीन
हो गए ।
आदि शंकराचार्य भारत के एक महान दार्शनिक एवं धर्मप्रवर्तक थे। उन्होने अद्वैत वेदान्त को ठोस आधार प्रदान किया। भगवद्वीता, उपनिषदों और वेदांतसूत्रों पर लिखी हुई इनकी टीकाएं बहुत प्रसिद्ध हैं। परम्परा के अनुसार उनका जन्म 788 ईस्वी और महासमाधि 820 ईस्वी में हुई थी। आदि शंकराचार्य ने देश के चारों कोनों में चार मठों की जो स्थापना की थी वह वर्तमान में भी बहुत प्रसिद्ध और पवित्र माने जाते है, जिन पर आसीन पूज्य संत”शंकराचार्य” कहे जाते हैं। ये चारों स्थान ज्योतिष्पीठ बदरिकाश्रम, श्रृंगेरी पीठ, द्वारिका शारदा पीठ और पुरी गोवर्धन पीठ है। उन्होंने अनेक विधर्मियों को भी अपने धर्म में दीक्षित किया था। आदि शंकराचार्य भगवान शिव के अवतार माने गए हैं। उन्होंने ने बड़ी ही विशद और रोचक व्याख्या की है।उन्होंने ईश, केन, कठ, प्रश्न, मुण्डक, मांडूक्य, ऐतरेय, तैत्तिरीय, बृहदारण्यक और
छान्दोग्योपनिषद् पर भाष्य लिखा। वेदों में लिखे ज्ञान को एकमात्र ईश्वर को संबोधन समझा और उसका प्रचार पूरे देश में किया।
श्री उकील जी ने बताया कि दो महीने बाद पुनः व्याकरण कक्षा शुरू की जाएगी , लेकिन इसमे पहले सत्र के आगे व्याकरण का दूसरे स्तर पर पढ़ाया जाएगा।
संस्कृति भारती अवध प्रांत के संगठन मंत्री गौरव नायक ने बताया कि अयोध्या में जून के प्रथम सप्ताह मे संस्कृत पठन-पाठन और सम्भाषण का वर्ग निःशुल्क आयोजित किया जाएगा। इसमें 16 साल की उम्र से अधिक
को कोई व्यक्ति भाग ले सकता है।
सभी उपस्थित गणमान्य सहभागियों ने शंकराचार्य जी को स्मरण कर उनके बताए मार्ग पर चलकर धर्मानुसार जीवन आचरण के लिए संकल्पित हुए।