
सरकार इस ज्ञान को वैश्विक मंच पर लाने के लिए कर रही प्रयास
दैनिक इंडिया न्यूज,नई दिल्ली (मेघना धूलिया): केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने रविवार को संस्कृत की मूलभूत भूमिका को रेखांकित करते हुए कहा, “हम किसी भी भाषा का विरोध नहीं करते, लेकिन कोई भी अपनी माँ से अलग होकर जीवित नहीं रह सकता। और संस्कृत लगभग हर भारतीय भाषा की जननी है। संस्कृत जितनी सशक्त होगी, उतनी ही सशक्त हर भारतीय भाषा और उसकी बोलियाँ होंगी।”
शाह दिल्ली विश्वविद्यालय के उत्तर परिसर के खेल परिसर में संस्कृत भारती द्वारा आयोजित संस्कृत संभाषण शिविर के समापन समारोह में बोल रहे थे।
संस्कृत में निहित विशाल ज्ञान-परंपरा को रेखांकित करते हुए शाह ने कहा, “योग, गणित, व्याकरण, काल-गणना, पर्यावरण और कई अन्य विषयों का ज्ञान संस्कृत में समाहित है। हमें इसे समझना और आत्मसात करना चाहिए। इस ज्ञान को वैश्विक स्तर पर ले जाने के लिए केंद्र सरकार 500 करोड़ रुपये की लागत से पांडुलिपियों को एकत्र करने और सरल बनाने का कार्य कर रही है।”
उन्होंने यह भी कहा कि संस्कृत औपनिवेशिक काल से पहले की भाषा है और हमें इसे गर्व के साथ पुनर्जीवित करना चाहिए।
शाह ने कहा, “जब आप संस्कृत में बोलना शुरू करते हैं, तो आप उसमें सोचने लगते हैं। अंततः यह केवल आपकी जुबान से नहीं, बल्कि आत्मा से निकलेगी।”
उन्होंने आगे कहा, “आज भारत में संस्कृत पुनरुत्थान के लिए अनुकूल वातावरण है – सरकार, जनमानस और राष्ट्रीय दृष्टिकोण, सभी इसके पक्ष में हैं। इस सामंजस्य के साथ, आपके कार्य की गति और प्रभाव दोनों ही बढ़ेंगे। भारत कभी ज्ञान पर पेटेंट कराने वाला देश नहीं रहा; हमारा ज्ञान पूरी दुनिया के लिए है।”
संस्कृत भारती के कार्यों की सराहना करते हुए शाह ने बताया कि 1981 से अब तक एक करोड़ लोगों को संस्कृत से परिचित कराया गया है और एक लाख शिक्षक प्रशिक्षित किए गए हैं। 52 लाख पांडुलिपियों को प्रलेखित किया गया है, जिनमें से 3.5 लाख का डिजिटलीकरण हो चुका है। “यह ज्ञान केवल भारत ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व को लाभान्वित करेगा। आइंस्टीन, मैक्समुलर, निकोला टेस्ला और योहान्स केपलर जैसे विदेशी चिंतकों ने भी संस्कृत को एक वैज्ञानिक भाषा के रूप में स्वीकार किया है।”
दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता (विशेष अतिथि) ने भी शाह की बातों का समर्थन करते हुए कहा, “संस्कृत वास्तव में हमारी मातृभाषा है। जब बच्चे अंग्रेज़ी, जर्मन या फ्रेंच सीखते हैं तो माता-पिता को गर्व होता है, लेकिन जब बात संस्कृत की आती है तो वैसा ही गर्व नहीं होता – यह सोच बदलनी चाहिए। यदि हमें ‘विश्वगुरु’ बनना है, तो संस्कृत में संचित ज्ञान को अपनाना होगा। इसे कठिन मानकर इससे दूरी बनाना एक भ्रांति है, जिसे फैलाया गया। नासा ने भी संस्कृत को एक वैज्ञानिक और कंप्यूटर-अनुकूल भाषा के रूप में मान्यता दी है।”
गुप्ता ने यह भी बताया कि दिल्ली सरकार संस्कृत को बढ़ावा देने के लिए हर साल 10 करोड़ रुपये खर्च करती है और सरकारी स्कूलों में 750 पीजीटी व 3,250 टीजीटी शिक्षक कार्यरत हैं।
संस्कृत भारती के जयप्रकाश ने कहा, “संस्कृत सरल और आनंददायक है। इसे दूर करने का एक नैरेटिव खड़ा किया गया, जबकि भारत की संस्कृति संस्कृत में ही सुरक्षित है।” कार्यक्रम में एक संस्कृत बैंड, क्षेत्रीय नृत्य प्रस्तुतियाँ और दिल्ली के 1,008 स्थानों पर शिविर आयोजित किए गए, जिनमें 25,000 प्रतिभागियों ने संस्कृत बोलना सीखा।