
डीसीपी की सख्ती ने खोली पास वितरण प्रणाली की पोल, फर्जी ‘विशेषाधिकार’ पर उठे सवाल
विधानसभा बना वीआईपी पास का अड्डा? असली पात्र दरकिनार, फर्जी वाहन अंदर!
दैनिक इंडिया न्यूज़ 26 जून 2025 ,वाराणसी के लोहता क्षेत्र में मंगलवार को उस समय हड़कंप मच गया जब पैदल गश्त के दौरान वरुणा जोन के डीसीपी प्रमोद कुमार ने एक काली स्कॉर्पियो को रोका, जिसकी न नंबर प्लेट थी और न ही कोई वैध पहचान। गाड़ी के शीशों पर अवैध ब्लैक फिल्म लगी थी और आगे की ओर ‘विधायक’ लिखा हुआ था। वाहन को तत्काल प्रभाव से सीज कर लिया गया। इस घटना ने न केवल कानून व्यवस्था पर सवाल खड़े किए हैं, बल्कि उत्तर प्रदेश विधानसभा में जारी वाहन पास वितरण प्रणाली की पारदर्शिता पर भी गंभीर संदेह पैदा कर दिया है।
यह कोई पहली घटना नहीं है। आए दिन विधानसभा परिसर में ऐसे वाहन प्रवेश करते देखे जाते हैं जिनमें या तो नंबर प्लेट गायब होती है या फिर फर्जी पहचान के साथ ‘विशिष्ट’ पास चस्पा होता है। वास्तविक पात्र—जैसे जनप्रतिनिधियों के सहयोगी, मीडिया प्रतिनिधि और आवश्यक सेवा से जुड़े लोग—जब पास के लिए संघर्ष कर रहे होते हैं, तब कुछ ‘खास’ गाड़ियाँ नियमों को धत्ता बताते हुए परिसर में आसानी से प्रवेश कर जाती हैं। यह न केवल प्रशासनिक व्यवस्था की विफलता है, बल्कि सुरक्षा के दृष्टिकोण से भी घोर लापरवाही है।
सूत्रों के अनुसार, कुछ खास गलियारे ऐसे हैं जहां बिना जांच के गाड़ियों को प्रवेश मिल जाता है। यह विशेष व्यवस्था किसके आदेश से संचालित होती है, इसका उत्तर अब तक अनुत्तरित है। यदि पास जारी करने वाली विधानसभा प्रशासनिक इकाई को इन अनियमितताओं की जानकारी नहीं है, तो यह सुरक्षा में भारी चूक है। और यदि जानकारी होते हुए भी यह सब हो रहा है, तो यह व्यवस्था के भीतर पनप रहे अपारदर्शी और पक्षपातपूर्ण तंत्र का प्रमाण है।
सबसे बड़ी विडंबना यह है कि जिन वाहनों पर ‘विधायक’ जैसा संवैधानिक विशेषण लिखा है, वे न केवल ट्रैफिक नियमों का उल्लंघन कर रहे हैं, बल्कि जनप्रतिनिधियों की गरिमा को भी ठेस पहुंचा रहे हैं। बिना नंबर प्लेट के वाहन पर ‘विधायक’ लिख देना क्या किसी को विशेषाधिकार दे देता है? अगर नहीं, तो फिर ऐसे वाहनों को पास कैसे जारी हो रहे हैं? विधानसभा जैसे संवेदनशील संस्थान में बिना वैध पहचान और जांच के किसी भी वाहन का प्रवेश अपने आप में सुरक्षा के साथ समझौता है।
यह मामला अब सिर्फ एक काली स्कॉर्पियो का नहीं, बल्कि एक संपूर्ण व्यवस्था की अनदेखी, उदासीनता और भ्रष्ट होती प्रक्रिया का प्रतीक बन चुका है। यदि अभी भी विधानसभा प्रशासन इस पर मौन साधे बैठा रहता है तो आने वाले समय में यह चुप्पी किसी बड़े खतरे का कारण बन सकती है।
विधानसभा परिसर और इसके आसपास की सुरक्षा व्यवस्था को मजाक बनाकर छोड़ा नहीं जा सकता। पास वितरण प्रणाली की पूरी तरह से समीक्षा, पारदर्शिता और डिजिटलीकरण समय की मांग है। हर पास की वैधता की डिजिटल ट्रैकिंग अनिवार्य की जानी चाहिए ताकि कोई भी व्यक्ति फर्जी पहचान, विशेषण या प्रभाव का उपयोग कर लोकतांत्रिक व्यवस्था का दुरुपयोग न कर सके।
विधानसभा देश की लोकतांत्रिक परंपराओं का मंदिर है, न कि बिना नंबर प्लेट वाली गाड़ियों का शो-रूम। व्यवस्था की विश्वसनीयता तभी बचेगी जब व्यवस्था सबके लिए समान रूप से लागू होगी। वरना ‘विशेष पास’ की आड़ में लोकतंत्र को ठेंगे पर रखने वालों की संख्या बढ़ती ही जाएगी।