शिक्षा और सेवा का संगम: समर्पण न्यास की पहल और महापौर का संवेदनशील रुख

दैनिक इंडिया न्यूज़ लखनऊ, 11 सितंबर 2025।शिक्षा केवल कक्षाओं तक सीमित ज्ञान नहीं, बल्कि एक राष्ट्र की प्रगति का आधार है। जब समाज के वंचित तबके तक शिक्षा पहुँचती है, तभी लोकतंत्र की जड़ें गहरी होती हैं और विकास का मार्ग सशक्त होता है। बाबूखेड़ा, कल्ली पश्चिम स्थित सामुदायिक केंद्र में समर्पण न्यास व वृद्धाश्रम ट्रस्ट का प्रयास इसी दिशा का प्रतीक है, जहाँ बीते एक दशक से लगभग 200 बच्चों को निःशुल्क शिक्षा मिल रही है।

अब जबकि यह क्षेत्र नगर निगम की परिधि में आ चुका है, विद्यालय के संचालन हेतु अनापत्ति प्रमाण पत्र (NOC) की आवश्यकता है। इसी क्रम में ट्रस्ट पदाधिकारी — जितेंद्र प्रताप सिंह, मेजर वी.के. खरे और उमेश चंद्र वाजपेयी — ने महापौर सुषमा खर्कवाल से भेंट कर विद्यालय एवं सामाजिक गतिविधियों की अवधि अगले 25 वर्षों तक बढ़ाने का अनुरोध किया।

महापौर ने इस पहल का खुले मन से स्वागत किया और आश्वासन दिया कि निर्धन बच्चों की शिक्षा बाधित नहीं होने दी जाएगी। यह निर्णय केवल प्रशासनिक कदम भर नहीं, बल्कि उस सामाजिक संवेदनशीलता का प्रतीक है जिसकी जरूरत आज के समय में और भी अधिक है।

स्थानीय प्रयास से राष्ट्रीय विमर्श तक

यह पहल हमें शिक्षा का अधिकार अधिनियम (2009) की याद दिलाती है, जिसने हर बच्चे के लिए 6 से 14 वर्ष की आयु तक निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा सुनिश्चित की। वहीं नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP 2020) ने गुणवत्ता, समावेशिता और भविष्य के कौशल-आधारित शिक्षण को केंद्र में रखकर शिक्षा प्रणाली को पुनर्परिभाषित किया।

समर्पण न्यास जैसे स्थानीय प्रयास वास्तव में इन राष्ट्रीय नीतियों की जमीनी अभिव्यक्ति हैं। जब समाज, राजनीति और प्रशासन एक साथ आकर किसी विद्यालय को जीवित रखते हैं, तो यह शिक्षा के अधिकार को केवल कानूनी प्रावधान न रहकर, जीवन की वास्तविकता बना देता है।

विकसित भारत @2047 की ओर

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विकसित भारत @2047 का जो सपना रखा है, उसकी जड़ें शिक्षा और कौशल विकास में ही निहित हैं। यदि आज का हर बच्चा पढ़-लिखकर अपनी क्षमता को पहचान पाएगा, तभी 2047 तक भारत विश्व में ज्ञान और नवाचार की राजधानी के रूप में खड़ा होगा।

लखनऊ की इस पहल को उसी दृष्टि से देखा जाना चाहिए। यह केवल 200 बच्चों का प्रश्न नहीं है, बल्कि उन सैकड़ों परिवारों की उम्मीदों का सवाल है जो मानते हैं कि शिक्षा ही उनके बच्चों को गरीबी के चक्र से निकालकर आत्मनिर्भर भारत की राह दिखाएगी।

राजनीति और सामाजिक जिम्मेदारी का संतुलन

इस मामले में स्थानीय विधायक राजेश्वर सिंह और मुख्य विकास अधिकारी द्वारा भी सकारात्मक अनुशंसा दी गई। यह सहयोग बताता है कि राजनीति जब समाज की संवेदनाओं के साथ कदम मिलाती है, तो परिणाम कहीं अधिक व्यापक और स्थायी होते हैं।

समर्पण न्यास का यह विद्यालय केवल इमारत नहीं, बल्कि सपनों की वह पाठशाला है जहाँ से भविष्य के डॉक्टर, इंजीनियर, शिक्षक और नेता निकलेंगे। महापौर सुषमा खर्कवाल का निर्णय इस बात का प्रतीक है कि जब राजनीतिक शक्ति और सामाजिक उत्तरदायित्व साथ चलते हैं, तभी सच्चे अर्थों में शिक्षित, सक्षम और विकसित भारत की नींव रखी जा सकती है।

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