अल-फलाह विश्वविद्यालय में आतंक मॉड्यूल का पर्दाफाश: प्रोफेसरों की गिरफ्तारी ने शिक्षा संस्थानों की सुरक्षा पर बड़े सवाल खड़े किए

दैनिक इंडिया न्यूज़ नई दिल्ली। फरीदाबाद के अल-फलाह विश्वविद्यालय में पिछले दिनों जो घटनाएँ सामने आईं, उन्होंने पूरे देश में सनसनी फैला दी है। लाल किले के पास 10 नवंबर को हुए कार ब्लास्ट की जांच के दौरान सुरक्षा एजेंसियों के हाथ जो सुराग लगे, वे सीधे-सीधे विश्वविद्यालय से जुड़े तीन प्रोफेसरों तक पहुँचे। यही कारण रहा कि जांचकर्ताओं ने विश्वविद्यालय परिसर में दबिश दी और असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. उमर उन नबी, डॉ. मुज़म्मिल शकील और डॉ. शाहीन शाहिद को आतंकवादी गतिविधियों के संदेह में गिरफ्तार कर लिया।

जांच सूत्रों का कहना है कि डॉ. उमर उन नबी का नाम लाल किला ब्लास्ट से जुड़े कुछ इलेक्ट्रॉनिक एविडेंस में आया था। इसके बाद डॉ. मुज़म्मिल शकील के आवास से जब्त विस्फोटक सामग्री ने संदेह को और गहरा कर दिया। तीसरे आरोपी डॉ. शाहीन शाहिद की कार को भी एजेंसियों ने कब्जे में लिया है, क्योंकि माना जा रहा है कि उसका इस्तेमाल नेटवर्क के भीतर आवाजाही और सामग्री परिवहन के लिए किया गया था। एजेंसियों का स्पष्ट कहना है कि वे इन आरोपियों को एक “व्हाइट कॉलर मॉड्यूल” का हिस्सा मानकर जांच आगे बढ़ा रही हैं—एक ऐसा मॉड्यूल जिसमें प्रशिक्षित और पढ़े-लिखे लोगों को आतंक नेटवर्क की रीढ़ बनाया गया हो।

इन गिरफ्तारियों के बाद विश्वविद्यालय परिसर और धौज गाँव में गहन तलाशी अभियान चलाया गया। लगभग 800 पुलिसकर्मियों और अधिकारियों के साथ कई टीमों ने प्रयोगशालाओं और उन कमरों की जांच की, जिन्हें संदिग्ध गतिविधियों का केन्द्र माना गया। इसी दौरान एजेंसियों को बड़ी मात्रा में रसायन, बारूद जैसे मिश्रण और उन्नत विस्फोटक तैयार किए जाने के संकेत मिलते रहे। कुछ स्थानों से बरामद 2,900 किलोग्राम रसायन-मिश्रण और करीब 20 लाख रुपये नकद ने जांच को और तीखा रूप दे दिया।

जांच एजेंसियों का कहना है कि इन सामग्रियों का इस्तेमाल या तो किसी बड़े विस्फोट की तैयारी में था, या फिर एक व्यापक नेटवर्क को सप्लाई करने के लिए जुटाया गया था। शुरुआती रिपोर्टों में यह भी दावा किया गया है कि यह मॉड्यूल विदेशी फंडिंग और पाकिस्तान-आधारित संगठनों से जुड़े तत्वों के संपर्क में था। हालांकि एजेंसियां इस संबंध में आधिकारिक पुष्टि केवल जांच पूरी होने के बाद ही करने की बात कह रही हैं।

दूसरी ओर, अल-फलाह विश्वविद्यालय प्रशासन ने तीनों आरोपियों से अपने संस्थान की दूरी तय करते हुए साफ कहा है कि विश्वविद्यालय का इन गतिविधियों से कोई लेना-देना नहीं है। उपकुलपति डॉ. भूपिंदर कौर का बयान है कि आरोपी केवल कर्मचारी के तौर पर जुड़े थे, और संस्था पूरी तरह से कानून-व्यवस्था एजेंसियों के साथ सहयोग में है। उनका कहना है कि विश्वविद्यालय की प्राथमिक चिंता छात्रों की सुरक्षा और शिक्षा व्यवस्था की पवित्रता है।

घटनाक्रम ने छात्रों, शिक्षकों और स्थानीय निवासियों में भारी तनाव पैदा किया है। कई छात्र भविष्य को लेकर चिंतित हैं और उन्हें डर है कि इस मामले की छाया उनके करियर पर न पड़ जाए। गाँव के लोग भी इस बात को लेकर परेशान हैं कि कहीं उनका इलाका एक गलत पहचान के साथ न चिह्नित हो जाए।

इस बीच, राष्ट्रीय मूल्यांकन एवं मान्यता परिषद (NAAC) ने भी विश्वविद्यालय को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। संदेह यह है कि विश्वविद्यालय ने अपनी आंतरिक सुरक्षा, स्टाफ सत्यापन और अन्य प्रक्रियाओं में गंभीर चूक की है, जिसकी वजह से ऐसे तत्वों को पनपने का मौका मिला।

जांच अब केवल तीन गिरफ्तारियों तक सीमित नहीं है। एजेंसियां इस बात की तह तक जाना चाहती हैं कि क्या यह एक व्यवस्थित नेटवर्क था, क्या इसके अन्य सदस्य अभी भी बाहर सक्रिय हैं, और क्या कई शैक्षणिक संस्थानों के भीतर बैठे लोग इस प्रकार के नेटवर्क का आधार बन रहे हैं। देश-हित, सुरक्षा व्यवस्था और शिक्षा-संस्थान की विश्वसनीयता—तीनों प्रश्न एक साथ खड़े हैं।

अंततः न्याय की दिशा दो ही हो सकती है—दोषियों को कठोर दंड और निर्दोषों को बिना किसी दाग-छाप के पूर्ण न्याय। जांच एजेंसियों का कहना है कि पूरी सच्चाई सामने आने में कुछ समय लगेगा, लेकिन वे इस मामले को देश की सुरक्षा से सीधे जुड़े एक गंभीर खतरे के रूप में देख रही हैं।

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