काशी विश्वनाथ मंदिर 1669 में तोड़ कर ज्ञानवापी मस्जिद बनाई गई?

दैनिक इंडिया न्यूज,लखनऊ।ASI की सर्वे रिपोर्ट से सिद्ध हो गया है कि काशी विश्वनाथ मंदिर को तोड़कर सितंबर 1669 को ज्ञानवापी मस्जिद बनाई गई थी। सर्वे में तीन दर्जन से अधिक मंदिर के अकाट्या साक्ष्य मिले हाई जिसमें देवनागरी  तेलगू और कन्नड़ भाषा में शिलालेख भी हैं।औरंगज़ेब के आदेश 8-4-1669 पर बाबा विश्वनाथ का प्राचीन मंदिर तोड़ दिया गया था और उसके स्थान पर ज्ञानवापी मस्जिद बनाकर 2-9-1669 को उसे बता दिया गया था। औरंगज़ेब के आदेश और मंदिर तोड़ने का शिलालेख भी प्राप्त हुए है जो फ़ारसी में है। देवी देवतावों की खंडित विग्रह भी प्राप्त हुए है। शिलालेख में जनार्दन, रुद्र,और उमेश्वर देवतावों के नाम भी अंकित हैं। आर्कलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया की रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि ज्ञानवापी ढाँचे की पश्चिमी दीवार तो मंदिर की है जिस पर मस्जिद बनाई गई। तोड़े गये प्राचीन मंदिर के ध्वंस अवशेषों से ज्ञानवापी ढाँचा तैयार हुवा और विग्रहों को तोड़कर दबा दिया गया। एएसआई की रिपोर्ट से यह सिद्ध हो गया है कि बाबा विश्वनाथ मंदिर को तोड़कर ज्ञानवापी ढाँचा तैयार किया गया ।
       इस्लामी धर्म ग्रंथो में भी लिखा गया है कि किसी दूसरे धर्म के पूजा स्थल तोड़कर बनाई गई मस्जिद में नमाज पड़ना जायज नहीं है। अब देश के मुसलमानों को बड़ा दिल दिखाते हुए ज्ञानवापी ढांचे को हिंदुवों को सौंप देना चाहिए।इससे सामाजिक समरसता का भी संदेश जायेगा और हमारी आपसी सांप्रदायिक सद्भावना मज़बूत होगी।
   आक्रांता औरंगज़ेब कभी भारतीय मुसलमानों का पूर्वज नहीं हो सकता। इसी के कार्यकाल( 1658-1707) में भारत के हिंदुओं पर बर्बर अत्याचार हुये और उन्हें इस्लाम में परिवर्तित किया गया।हमारे कोरी समाज को तो औरंगज़ेब ने कहीं का नहीं छोड़ा। कोरी समाज बुनकर थे। औरगज़ेब ने उन्हें इस्लाम स्वीकार करने या अपना कपड़ा बुनने का पेशा छोड़ने का हुक्म सुनाया। कोरी समाज के पास ज़मीन थी नहीं, केवल कपड़ा बुनना ही जीविका थी। बहुत से लोग अपनी जीविका बचाने के लिए इस्लाम स्वीकार कर लिये और जुलाहा कहलाये जो अब अपने को अंसारी कहते हैं।गोरखपुर, मऊ, आज़मगढ़, टाँडा, अकबरपुर, वाराणसी, भदोही, मिर्ज़ापुर के अंसारी “कोरी” से ही कन्वर्ट हुए और उनका पेशा कपड़ा बुनने का काम आज भी बचा है ।जो अपने धर्म को बचाये, वह कोरी समाज आज सबसे ग़रीब है, न पेशा रहा और न ही ज़मीन।

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