
आचार्य विष्णु शंकर तिवारी बोले—यह केवल संस्कार नहीं, पूर्वजों के आशीर्वाद का माध्यम है
रामचरितमानस में भी दर्ज है राजा दशरथ द्वारा कराया गया नंदीमुख श्राद्ध
दैनिक इंडिया न्यूज़, लखनऊ। विवाह से पहले और संतान जन्म के उपरांत किया जाने वाला नंदीमुख श्राद्ध हिंदू संस्कृति की एक ऐसी पवित्र परंपरा है, जो केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं बल्कि पूर्वजों की तृप्ति और परिवार की मंगल कामना से गहराई से जुड़ा हुआ है। आचार्य विष्णु शंकर तिवारी ने दैनिक इंडिया न्यूज़ से बातचीत में बताया कि नंदीमुख श्राद्ध जीवन के दो सबसे महत्वपूर्ण पड़ाव—विवाह और संतान जन्म—के अवसर पर अवश्य किया जाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि विवाह से पूर्व यह श्राद्ध करने से दांपत्य जीवन में आने वाली सभी बाधाएं समाप्त होती हैं, वहीं संतान जन्म के बाद यह संस्कार परिवार को सुख, शांति और समृद्धि प्रदान करता है। शास्त्रों के अनुसार जब हमारे पूर्वज प्रसन्न होते हैं तो उनका आशीर्वाद संतान के उज्ज्वल भविष्य का मार्ग प्रशस्त करता है।
रामचरितमानस का उल्लेख
रामचरितमानस में भी इस परंपरा का सुंदर उल्लेख मिलता है। जब भगवान श्रीराम का जन्म हुआ, तब अयोध्या नरेश दशरथ ने नंदीमुख श्राद्ध कराया। तुलसीदास जी लिखते हैं—
चौपाई
“करि नंदिमुख बिप्रन्ह बोलावा ।
होम आदि बिधि बेदन्ह करावा ॥
पूजा बिस्व बिधातन्ह कीन्ही ।
सबहि नचाइ बहोरि बैठारीं ॥”
(बालकाण्ड)
इस प्रसंग का भाव यह है राजा दशरथ ने ब्राह्मणों को बुलाकर नंदीमुख श्राद्ध सम्पन्न कराया, वैदिक विधियों से हवन कराया और पितृ-देवताओं की पूजा कर दान का आयोजन किया। इसी अवसर पर उन्होंने अपनी रानियों को आदेश दिया—“दोनों हाथ खोलकर जितना दान दे सको, उतना दान दो।”
यह उल्लेख दर्शाता है कि नंदीमुख श्राद्ध केवल पितरों को तृप्त करने का ही माध्यम नहीं, बल्कि संतान और परिवार के मंगल भविष्य को सुनिश्चित करने वाला संस्कार भी है।
नंदीमुख श्राद्ध के लाभ
आचार्य विष्णु शंकर तिवारी ने बताया कि इस श्राद्ध के अनेक लाभ हैं—
- पूर्वजों की प्रसन्नता: पितरों की आत्मा को शांति और संतोष मिलता है।
- विवाह जीवन का मंगल: विवाह पूर्व यह संस्कार दांपत्य जीवन को सौभाग्यशाली बनाता है।
- संतान सुख और दीर्घायु: संतान के जन्म के बाद यह संस्कार बच्चों की दीर्घायु और सुख-समृद्धि सुनिश्चित करता है।
- धन और शांति: पूर्वजों के आशीर्वाद से परिवार में समृद्धि और सौहार्द बढ़ता है।
शास्त्रीय प्रमाण
आचार्य तिवारी ने शास्त्रों का उल्लेख करते हुए कहा—
“पितृणाम् तृप्तिम् आप्नोति श्रद्धया दीयते यत्।
दानैः तर्पणकर्मभ्यः सर्वं भवति शाश्वतम्॥”
अर्थात, श्रद्धा भाव से किया गया तर्पण और दान पितरों को प्रसन्न करता है और परिवार को शाश्वत कल्याण की ओर ले जाता है।
साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि—
“सत्यमेव जयते नानृतम्” — अर्थात सत्य और श्रद्धा से किया गया कर्म ही स्थायी फल देता है।
आज भी उतनी ही प्रासंगिक परंपरा
नंदीमुख श्राद्ध आज भी ग्रामीण और शहरी समाज दोनों में प्रचलित है। लोग विवाह से पूर्व और संतान जन्म के बाद इस संस्कार को अवश्य करते हैं। आचार्य विष्णु शंकर तिवारी का कहना है कि यह केवल धार्मिक कर्मकांड नहीं, बल्कि पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता और आने वाली पीढ़ियों के लिए मंगल वातावरण तैयार करने की अनूठी परंपरा है।