
रेलवे ट्रैक पर मिले शव किसके थे? नोएडा केस की रहस्यमयी गुत्थी
नेहा रोज़ या अंजू देवी? आधार OTP ने किया चौंकाने वाला खुलासा
जोधपुर से बरामद हुईं लापता मां-बेटी, पुलिस की लापरवाही बेनकाब
दैनिक इंडिया न्यूज़ नई दिल्ली।बरौला, नोएडा की गलियों में जुलाई 2020 की उस शाम का जिक्र आज भी लोग करते हैं, जब अंजू देवी और उनकी नौ साल की बेटी मानसी अचानक लापता हो गई थीं। पति अवधेश शर्मा ने रिश्तेदारों, पड़ोसियों, थानों और यहां तक कि दूर-दराज के गांवों तक खोजबीन की, लेकिन मां-बेटी का कोई सुराग नहीं मिला। दिन महीने में बदले और महीने सालों में, लेकिन इंतजार ने सिर्फ दर्द और सवाल छोड़े।
फिर नवंबर 2022 में शाहदरा रेलवे ट्रैक पर दो जले-झुलसे शव बरामद हुए। पुलिस ने जल्दबाजी में उन्हें अंजू और मानसी मान लिया। परिजनों ने भी कपड़ों और शक्ल-सूरत के आधार पर यही पहचान कर दी। शवों को दफना दिया गया, फाइल बंद हो गई, और पुलिस ने केस में न सिर्फ एक बार बल्कि दो बार फाइनल रिपोर्ट लगा दी। दुनिया मान बैठी कि मां-बेटी अब इस संसार में नहीं।
लेकिन अवधेश शर्मा का दिल यह स्वीकार करने को तैयार नहीं था। वह हर रोज़ यही सोचता कि शायद पत्नी और बेटी कहीं जिंदा हैं, शायद किसी मजबूरी में कहीं छिपकर जीवन बिता रही हैं। वह पुलिस से भिड़ा, बड़े अफसरों तक पहुंचा, यहां तक कि मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट तक ले गया। उसने बार-बार कहा—“मेरी पत्नी और बेटी अभी जिंदा हैं।” मगर उसके शब्द खाली हवा में गूंजते रह गए।
फिर अप्रैल 2025 का वह दिन आया, जब तकदीर ने करवट बदली। अचानक अवधेश के मोबाइल पर एक SMS आया—“आधार अपडेट का OTP।” यह OTP उसकी बेटी के आधार कार्ड से जुड़ा हुआ था। एक झटके में उसकी उम्मीद जाग उठी। पांच साल बाद यह छोटा सा नंबर उसके लिए उम्मीद का सबसे बड़ा सबूत बन गया।
पुलिस ने सर्विलांस टीम लगाई। लोकेशन ट्रेस हुआ—राजस्थान का जोधपुर। फौरन एक विशेष टीम बनाई गई और गुपचुप तरीके से वहां दबिश दी गई। और वहां जो दृश्य सामने आया, उसने सबको हिला दिया।
अंजू देवी बिल्कुल जिंदा थीं। लेकिन अब वह “नेहा रोज़” नाम से पहचान बनाकर जोधपुर में रह रही थीं। उन्होंने वहां एक छोटा-सा ब्यूटी पार्लर खोल लिया था और अपनी बेटी मानसी को वहीं पढ़ा रही थीं। पुलिस के पहुंचते ही मां-बेटी का रहस्य पांच साल बाद खुला।
अब सबसे बड़ा सवाल यह खड़ा हो गया—तो फिर शाहदरा के रेलवे ट्रैक पर मिले शव किसके थे?
क्या यह महज एक संयोग था या किसी गहरे षड्यंत्र की कड़ी?
क्या किसी ने उन शवों को अंजू और मानसी के नाम पर पेश कर, केस को खत्म करने की कोशिश की?
या फिर अंजू ने खुद अपनी नई जिंदगी शुरू करने के लिए इस खेल की पटकथा लिखी?
इन सवालों ने पूरी जांच को नई दिशा दे दी। पुलिस अफसरों की लापरवाही उजागर हो चुकी थी। बिना DNA टेस्ट किए केस बंद कर देना, शवों की पहचान सिर्फ शक्ल-सूरत और कपड़ों से कर लेना—यह सब गंभीर चूक साबित हुआ। नतीजा यह निकला कि लापरवाही बरतने वाले अधिकारियों के खिलाफ विभागीय कार्रवाई शुरू हो गई।
लेकिन इस केस की गुत्थी यहीं खत्म नहीं होती।
अगर अंजू ने अपनी नई पहचान बनाकर जीवन शुरू किया, तो उसने घर क्यों छोड़ा?
क्या वह किसी घरेलू विवाद से तंग आकर गई थी?
या फिर कोई और बड़ा रहस्य उसके पीछे छिपा है?
रेलवे ट्रैक पर मिले शव अब भी रहस्य बने हुए हैं। यह केस महज एक लापता महिला-बच्ची की बरामदगी नहीं, बल्कि अपराध, धोखे, लापरवाही और इंसानी रिश्तों के जटिल जाल की कहानी बन चुका है।
आज यह घटना पूरे NCR और राजस्थान तक चर्चा का विषय है। एक तरफ लोग तकनीक की ताकत को सलाम कर रहे हैं—एक साधारण सा OTP जिसने पांच साल पुराना रहस्य खोल दिया। दूसरी तरफ सवाल खड़ा है—अगर OTP न आया होता, तो क्या अंजू और मानसी हमेशा के लिए “मृत घोषित” रह जातीं?
कहानी यहां खत्म नहीं होती, बल्कि और भी रहस्यों की परतें खोलने का वादा करती है। क्योंकि सच यह है कि मां-बेटी तो मिल गईं, लेकिन असली रहस्य अभी भी परछाइयों में छिपा है—रेलवे ट्रैक पर पड़े उन शवों की पहचान कौन करेगा?