

दैनिक इंडिया न्यूज़,नई दिल्ली। बसंत पंचमी के पावन अवसर पर राष्ट्रीय सनातन महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने समस्त देशवासियों को हार्दिक शुभकामनाएं दी हैं। उन्होंने इस महापर्व का महत्व बताते हुए कहा कि बसंत पंचमी केवल एक सांस्कृतिक और धार्मिक पर्व ही नहीं, बल्कि वैदिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण दिन है। यह ज्ञान, विद्या और संगीत की देवी माँ सरस्वती की आराधना का विशेष अवसर है, जिसे शिक्षा, कला और आध्यात्म से जुड़े लोग श्रद्धा के साथ मनाते हैं।

राष्ट्रीय अध्यक्ष ने कहा कि वैदिक परंपरा में माँ गायत्री के तीन स्वरूप माने गए हैं—गायत्री, सावित्री और सरस्वती। प्रातः काल की उपासना गायत्री के रूप में की जाती है, जो आध्यात्मिक चेतना को जाग्रत करती है। मध्याह्न में सावित्री की उपासना होती है, जो कर्म और ऊर्जा का प्रतीक है, जबकि संध्या काल, जिसे गोधूलि बेला कहा जाता है, उसमें सरस्वती की साधना की जाती है, जो ज्ञान, बुद्धि और संगीत का द्योतक है। चूँकि बसंत पंचमी माँ सरस्वती को समर्पित है, इसलिए यह दिन विशेष रूप से गायत्री उपासकों , विद्यार्थियों और संगीत कला के कलाकारों के लिए ही नहीं, बल्कि आध्यात्मिक चेतना के लिए भी बसंत पंचमी का पर्व सामान्य दिनों की अपेक्षा अधिक ऊर्जा प्रदान करता है। इस दिन ज्ञान, कला और भक्ति की विशेष वृद्धि होती है, जिससे संपूर्ण वातावरण अत्यंत महत्वपूर्ण होता है।
उन्होंने कहा कि बसंत पंचमी ऋतु परिवर्तन का भी संकेतक है। इस समय प्रकृति नवजीवन प्राप्त करती है, खेतों में सरसों के पीले फूल खिल उठते हैं और वातावरण उल्लासमय हो जाता है। इस दिन विद्यालयों, मंदिरों और सांस्कृतिक संस्थानों में विशेष पूजा-अर्चना, भजन-कीर्तन और हवन आयोजित किए जाते हैं।
राष्ट्रीय सनातन महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने इस अवसर पर सभी नागरिकों से अनुरोध किया कि वे इस पर्व को श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाएं तथा ज्ञान, संस्कृति और आध्यात्मिकता को अपने जीवन का आधार बनाएं। उन्होंने सभी के जीवन में सुख, शांति और समृद्धि की कामना करते हुए कहा कि यह पर्व समाज में नई चेतना और सकारात्मक ऊर्जा का संचार करे।