
दैनिक इंडिया न्यूज़ 16 NOV 2025नई दिल्ली। लाल किले की सुरक्षा पर हाल ही में दर्ज की गई असामान्य गतिविधियों ने पूरे राष्ट्र की सुरक्षा-व्यवस्था को एका-एक झकझोर दिया है। जांच एजेंसियों द्वारा जुटाए गए प्रारम्भिक तकनीकी साक्ष्य बताते हैं कि यह कोई सामान्य सुरक्षा उल्लंघन नहीं, बल्कि भारत की संप्रभुता पर एक संगठित, उच्च-तकनीकी और बहुस्तरीय हमले की गहरी साज़िश का हिस्सा था।
विशेष जांच इकाइयों को प्राप्त डिजिटल फुटप्रिंट, विदेशी सर्वरों से जुड़े एन्क्रिप्टेड संदेश, और संदिग्धों के पास से पकड़े गए “सैन्य-स्तर” के उपकरण इस ओर इशारा कर रहे हैं कि हमलावर लाल किले सहित दिल्ली के अन्य संवेदनशील इलाकों पर सटीक-मारक क्षमता वाले रॉकेट और रिमोट-कंट्रोल्ड ड्रोन से हमला करने की तैयारी में थे।
सूत्रों के मुताबिक, यह मॉड्यूल किसी लोकल गिरोह का काम नहीं, बल्कि उन अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क से जुड़ा प्रतीत होता है जो आधुनिक युद्ध तकनीकों—जैसे माइक्रो-प्रोपल्शन ड्रोन, साइलेंट-लॉन्च रॉकेट, और AI-निर्देशित नेविगेशन सिस्टम—का इस्तेमाल कर विश्वभर में अस्थिरता फैलाने के लिए कुख्यात हैं।
जांच टीम ने यह भी पाया कि इस्तेमाल किए गए उपकरणों में ऐसी तकनीकी विशेषताएँ हैं जो आमतौर पर सीमापार स्थित आतंकी संगठनों या निजी मिलिट्री कॉन्ट्रैक्टर्स के पास ही उपलब्ध होती हैं। इस खुलासे ने सुरक्षा एजेंसियों को इस दिशा में सोचने पर मजबूर कर दिया है कि कहीं भारत के भीतर किसी “स्लीपर सपोर्ट सिस्टम” का पुनर्सक्रियन तो नहीं हो चुका।
राष्ट्रीय राजधानी की सुरक्षा में लगी कई एजेंसियों को अब हाई-अलर्ट पर रखा गया है। महत्वपूर्ण प्रतिष्ठानों की निगरानी के लिए एरो-सर्विलांस, एंटी-ड्रोन टेक्नोलॉजी और साइबर-इंटेलिजेंस यूनिटों को और अधिक सशक्त किया जा रहा है।
खुफिया विशेषज्ञों का मत है कि यदि यह हमला सफल हो जाता, तो इसका असर केवल किसी प्रतिष्ठान पर नहीं, बल्कि भारत की अन्तर्राष्ट्रीय छवि, सामरिक मनोबल और राजनीतिक स्थिरता पर भी असाधारण रूप से गंभीर पड़ता।
इस पूरी साज़िश के उजागर होने के बाद समाज के चिंतनशील और बुद्धिजीवी वर्ग में एक तीखी बहस छिड़ गई है। उनका कहना है कि इस प्रकार की संगठित और तकनीकी रूप से उन्नत आतंकी गतिविधियों से निपटने के लिए अब मौजूदा कानूनी ढांचे में “निर्णायक, दंड़नीय और त्वरित” सुधार की आवश्यकता है।
बुद्धिजीवियों का स्पष्ट मत है कि कई बार अपराधी साक्ष्यों में तकनीकी खामियाँ निकालकर, गवाहों को प्रभावित कर या लंबी न्यायिक प्रक्रिया का लाभ उठाकर दंड से बच निकलते हैं—और यही ढील उन्हें और साहस देती है।
उनकी मांग है कि संसद को ऐसे कठोर और प्रभावी कानून लाने चाहिए जिनके तहत ऐसे घातक षड्यंत्रों में शामिल किसी भी व्यक्ति को, चाहे वह देश में हो या विदेशी नेटवर्क का हिस्सा, किसी भी परिस्थिति में बख्शा न जा सके।
यदि कानून का ढांचा समयानुकूल नहीं बदला गया, तो भविष्य में इस प्रकार की घटनाएँ और भी सुनियोजित रूप से सामने आ सकती हैं—यह चिंता अब पूरे बौद्धिक समाज में गहरी जड़ें जमा रही है।
