
दैनिक इंडिया न्यूज़, नई दिल्ली। संसद का केंद्रीय कक्ष शुक्रवार को उस दुर्लभ क्षण का साक्षी बना जब राजनीतिक कोलाहल के बीच एक स्वर ऐसा उठा जिसने पूरे सदन को स्तब्ध कर दिया। यह स्वर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह का था, जो ‘वंदे मातरम्’ के 150 वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्य में बोल रहे थे। लेकिन यह महज़ एक भाषण नहीं था; यह राष्ट्र-चेतना को झकझोर देने वाला वह घोष था जिसने कुछ ही क्षणों में विपक्षी हँगामे को पूर्णत: शांत कर दिया।
राजनाथ सिंह जब भारतीय मुस्लिम समाज के ऐसे योगदान का उल्लेख कर रहे थे, जिसने ‘वंदे मातरम्’ की भावनात्मक शक्ति को और अधिक व्यापक बनाया, तभी विपक्षी खेमे से शोर उठने लगा। किंतु रक्षामंत्री ठहरने वाले नहीं थे। उन्होंने तीव्र स्वर में कहा, “कौन बैठाएगा मुझे? अध्यक्ष महोदय, इन्हें शांत करवाइए।” इस एक वाक्य ने जैसे हंगामे पर बिजली गिरा दी; पूरा सदन कुछ ही क्षण में शांत हो गया और सिंह ने अपने शब्दों की धार को और पैना कर दिया।
उन्होंने कहा, “सच्चाई यह है कि भारतीय मुस्लिम समाज ने बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय की भावना को कांग्रेस या मुस्लिम लीग की तुलना में कहीं अधिक गहराई से समझा और आत्मसात किया।” यह कथन केवल ऐतिहासिक संदर्भ नहीं था, बल्कि उन सभी धारणाओं को चुनौती देने वाला तर्क था जो इस गीत को संकीर्ण धार्मिक दायरे में बाँध देती हैं।
इसके बाद रक्षामंत्री ने जिस दृढ़ता से ‘वंदे मातरम्’ के राष्ट्रीय स्वरूप को परिभाषित किया, वह सदन की राजनीतिक सीमाओं को लाँघकर सीधे जन-मन में उतर गया। उन्होंने कहा कि ‘वंदे मातरम्’ केवल एक गीत नहीं, बल्कि यह राष्ट्र की आत्मा का वह अमिट मंत्र है जिसने स्वतंत्रता संग्राम के हर सेनानी के हृदय में ज्वाला जगाई थी। यह उस अखंड आस्था का प्रतीक है जहाँ माँ भूमि केवल भूगोल नहीं बल्कि भाव और संस्कार बनकर खड़ी होती है।
उन्होंने उन आलोचनाओं पर करारा प्रहार किया जो इस गीत को किसी विशेष धर्म से जोड़ने की भूल करते हैं। सिंह ने कहा, “यह गीत किसी पूजा-पद्धति का नहीं, बल्कि उस मातृभूमि का वंदन है जो सभी की समान जननी है। इसे धर्म की कसौटी पर कसकर देखा जाना स्वयं भारतीयता का अपमान है।” उनके इन शब्दों ने विपक्षी तर्कों की बुनियाद को ही ध्वस्त कर दिया। सदन में कुछ क्षणों के लिए ऐसा मौन छा गया मानो राष्ट्रभाव स्वयं हवा में थिरा हो।
राजनाथ सिंह ने आगे इस राष्ट्रमंत्र को देश की सेनाओं से जोड़ते हुए कहा कि जब हमारे जवान बर्फीली सीमाओं पर ‘भारत माता की जय’ का उद्घोष करते हैं, तो वह केवल नारा नहीं, बल्कि ‘वंदे मातरम्’ की उसी मूल प्रेरणा का प्रतिबिंब होता है जो उन्हें परिस्थितियाँ कितनी भी कठोर हों, अडिग बनाए रखती है। उन्होंने कहा कि यह वही भावना है जो एक सैनिक को अंतिम सांस तक राष्ट्ररक्षा का संकल्प देने का सामर्थ्य प्रदान करती है।
सत्र के समापन तक स्पष्ट हो गया कि यह भाषण राजनीतिक वक्तव्य नहीं, बल्कि राष्ट्रीय आत्मा का घोष था। राजनाथ सिंह ने आह्वान किया कि राष्ट्रीय प्रतीकों को दलगत राजनीति की खींचतान से परे रखा जाए, क्योंकि ‘वंदे मातरम्’ अब केवल इतिहास की विरासत नहीं, बल्कि भारत की अखंड अस्मिता का वह अभिन्न अंग है जिसे किसी भी प्रकार के विवाद से ऊपर रखे जाने की आवश्यकता है।
आज संसद में जो कुछ हुआ—वह महज़ संसद का दृश्य नहीं, बल्कि राष्ट्र-गौरव के पुनर्जागरण का एक ऐतिहासिक क्षण था, जिसने सिद्ध कर दिया कि जब राष्ट्रभाव उठ खड़ा होता है तो हर विरोध स्वतः शांत हो जाता है।
