
दैनिक इंडिया न्यूज़ लखनऊ। सरस्वती विद्या मंदिर तकरोही में 10 नवम्बर 2025 के प्रवास के दौरान सेवा भारती लखनऊ पूर्व के महामंत्री सुधीर कुमार गुप्ता ने विद्यालय निरीक्षण के बीच उस गहरी पीड़ा को देखा, जो सीतू मिश्रा नामक संघर्षरत माता के जीवन में निरंतर प्रवाहित हो रही थी। पति की नशे की समस्या और परिवार के प्रति उपेक्षा ने उनके कंधों पर पूरा उत्तरदायित्व छोड़ दिया था। दूसरों के घरों में दैनिक परिश्रम कर वह किसी प्रकार अपने बच्चों का भरण-पोषण कर रही थीं, परंतु इस कठिन संघर्ष के बीच बेटी रीतू मिश्रा, कक्षा 6, की छह माह की लंबित फीस उनकी चिंता का सबसे बड़ा कारण बन चुकी थी। आर्थिक अभाव ने बेटी की शिक्षा को संकटपूर्ण मोड़ पर खड़ा कर दिया था।
सुधीर कुमार गुप्ता ने इस परिस्थिति को केवल एक घरेलू समस्या न मानकर सामाजिक दायित्व के स्वरूप में देखा। उनके संवेदनशील अंतर्मन ने तुरंत इस संकट को समाज के समक्ष रखने का निर्णय किया। उन्होंने एक भावपूर्ण आवाहन जारी किया—और यह आवाहन राजधानी लखनऊ के उदार, सुसंस्कृत और सेवा-भाव से परिपूर्ण नागरिकों के हृदय तक सीधे पहुँचा।
फिर जो घटनाक्रम चला, वह समाज के सहयोग, करुणा और कर्तव्यबोध का एक जीवंत उदाहरण बन गया।
सुधीर कुमार गुप्ता के एक ही आह्वान पर सहयोग के रूप में प्राप्त हुए—
मयूर श्रीवास्तव द्वारा 2000 रुपये,
एस. पी. शुक्ला द्वारा 1600 रुपये,
मनीश पोद्दार द्वारा 1100 रुपये,
अमित मोहन द्वारा 1000 रुपये,
सुरेंद्र पालीवाल द्वारा 1000 रुपये,
ऋतु सक्सेना द्वारा 1000 रुपये,
अंजली सिंह द्वारा 1000 रुपये,
अभिषेक गुप्ता द्वारा 1000 रुपये,
रीता शर्मा द्वारा 600 रुपये,
सन्ध्या शर्मा द्वारा 500 रुपये,
लालमनी सिंह द्वारा 500 रुपये,
डी. के. श्रीवास्तव द्वारा 500 रुपये,
शोभित सक्सेना द्वारा 500 रुपये—
इस प्रकार कुल 12,300 रुपये की राशि संतुलित और सुसंगठित रूप से संकलित हुई।
दिनांक 17 नवम्बर 2025 को सेवा भारती लखनऊ पूर्व द्वारा यह राशि चेक के माध्यम से विद्यालय को प्रदान की गई। विद्यालय प्रबंधन ने रीतू मिश्रा की पूरी फीस जमा कर रसीद सीतू मिश्रा को सौंप दी। उस क्षण उनकी आँखों में जो राहत, कृतज्ञता और विश्वास का मिश्रित भाव उभरा, वह समाज की संवेदना की सबसे उत्कृष्ट प्रतिमूर्तियों में से एक था।
इस समूचे मानवतावादी प्रयास की जानकारी दैनिक इंडिया न्यूज़ को विशेष वार्ता के दौरान प्राप्त हुई। सुधीर कुमार गुप्ता ने बताया कि जब समाज संवेदना को प्राथमिकता देता है, तब कोई भी परिवार अपनी परिस्थितियों से पराजित नहीं होता। उनका कहना था कि किसी बच्चे की शिक्षा बचाना किसी एक परिवार का नहीं, बल्कि पूरे समाज का सामूहिक उत्तरदायित्व है। उन्होंने सभी सहयोगकर्ताओं के प्रति हृदय से आभार व्यक्त किया और इसे मानवता की सच्ची विजय बताया।
रीतू मिश्रा की फीस का निस्तारण केवल आर्थिक सहायता भर नहीं था—यह वह संकल्प था जिसने सिद्ध कर दिया कि नर सेवा ही नारायण सेवा है। जब समाज एकजुट हो जाए तो एक मासूम भविष्य को अंधकार में गिरने से बचा सकता है। यह घटना बताती है कि मानवता आज भी जीवित है, और संवेदनाएँ समाज की वास्तविक शक्ति हैं।
