पद्मश्री प्रकाश सिंह जी पूर्व पुलिस महानिदेशक उप्र से औपचारिक भेंट सम्पन्न-जेपी सिंह

दैनिक इंडिया न्यूज लखनऊ। संस्कृत भारतीन्यास अवधप्रान्त के अध्यक्ष जेपी सिंह ने पद्मश्री प्रकाश सिंह महानिदेशक उप्र पुलिस व सीमा सुरक्षा बल(सेवानिवृत्त) से एक अत्यंत आत्मीय स्नेहपूर्ण भेंट लक्ष्मणपुर प्रवास के मध्य सम्पन्न हुई। इस अवसर पर जे पी सिंह ने संस्कृत भारतीन्यास अवधप्रान्त की मुखपृष्ठ पत्रिका अवधसम्पदा के महृर्षि वेदव्यास विशेषांक की प्रति अंतर्मन पटल से धन्यवाद सहित भेंट की। आपनों के साथ अपनेपन का अह्सास हृदय को अह्लादित कर गया।

संस्कृत भाषा प्राचीनतम व देव भाषा होने के कारण समृद्ध एवं वैज्ञानिक भाषा-जेपी सिंह ,

102 अरब 78 करोड़ 50 लाख शब्दों की सबसे बड़ी शब्दावली है संस्कृत

संसार की उपलब्ध भाषाओं में संस्कृत प्राचीनतम है। इस भाषा में प्राचीन भारतीय सभ्यता और संस्कृति का बहुत बड़ा भण्डार है। वैदिक काल से लेकर आधुनिक काल तक इस भाषा में रचनाएँ होती रही हैं, साहित्य लिखा जाता रहा है। जिन दिनों लिखने के साधन विकसित नहीं थे, उन दिनों भी इस भाषा की रचनाएँ मौखिक परम्परा से चल रही थीं। उल्लेखनीय है कि भारत की समृद्ध संस्कृति की प्रतीक संस्कृत समस्त भारतीय भाषाओं की जननी मानी जाती है, जो भारत में बोली जाने वाली प्राचीन भाषाओं में पहली है। भारत की कुछ प्राचीन लोककथाएं संस्कृत भाषा में ही हैं। संस्कृत की विशेषता के बारे में जेपी सिंह ने कहा कि कोई व्यक्ति संस्कृत में केवल एक शब्द में ही स्वयं को व्यक्त कर सकता है। कुछ शोधकर्ताओं द्वारा संस्कृत को दो खण्डों (वैदिक संस्कृत तथा शास्त्रीय संस्कृत) में वर्गीकृत किया गया है। संगीत में संस्कृत का उपयोग अधिकाशतः हिन्दुस्तानी और कर्नाटकशास्त्रीय संगीत में ही किया जाता है। संस्कृत भाषा में करीब 102 अरब 78 करोड़ 50 लाख शब्दों की सबसे बड़ी शब्दावली है और इस भाषा की एक संगठित व्याकरणिक संरचना भी है, जिसमें स्वर और व्यंजन भी वैज्ञानिक पैटर्न में व्यवस्थित होते हैं। संस्कृत को भारत के संविधान की 8वीं अनुसूची में सम्मिलित किया गया है और उत्तराखण्ड में तो यह राज्य की दूसरी आधिकारिक भाषा के रूप में घोषित की गई है। कर्नाटक में शिमोगा जिले में मत्तूर नामक एक ऐसे गांव के बारे में भी जानकारी मिलती है, जहां प्रत्येक व्यक्ति संस्कृत में बात करता है।बहरहाल, यदि इन कुछेक अपवादों को छोड़ दें तो संस्कृत का उपयोग वर्तमान समय में केवल पूजा-पाठ, अनुष्ठानों तथा शैक्षणिक गतिविधियों तक ही सीमित होकर रह गया है और इसे पढ़ने, लिखने तथा समझने वाले लोगों की संख्या निरन्तर कम हो रही है। सही मायनों में संस्कृत केवल एक भाषा ही नहीं है बल्कि एक विचार, एक संस्कृति, एक संस्कार भी है, जिसमें विश्व का कल्याण, शांति, सहयोग और वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना निहित है। इसलिए अत्यंत जरूरी है कि अब देश में विदेशी भाषाओं और अंग्रेजी का महत्व अत्यधिक बढ़ जाने के कारण अपना अस्तित्व खोती इस देवभाषा को बढ़ावा देने के लिए समुचित कदम, जन जन को सुलभ कराने के लिए संस्कृत भारतीन्यास अवधप्रान्त के प्रयासों के लिए भूरी भूरी प्रशंसा करते हुए साधुवाद ज्ञापित किया।

Share it via Social Media

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *