माँ के गर्भ में दम तोड़ती बेबस
बेटियां” का आयोजन
उदय राज ब्यूरो चीफ /डी डी इंडिया न्यूज
लखनऊ।दिनांक 18 नवंबर 2021 को शाम 5:00 बजे वीरांगना महारानी लक्ष्मी बाई जयंती की पूर्व संध्या पर विचार गोष्ठी आयोजित की गई जिसमें विषय था मां की कोख में दम तोड़ती बेबस बेटियां।
संगोष्ठी में पेज के संस्थापक और शकुंतला तोमर, वरिष्ठ समाजसेवी ,मार्गदर्शक व समाज की रूढ़ियों के विरुद्ध लड़ने वाली आदरणीय श्रीमती शाइस्ता अंबर, मिशन पिंक इंडिया की कोऑर्डिनेटर और गाइनेकोलॉजिस्ट डॉक्टर मिथिलेश सिंह, द टेंथ रिडील नामक पुस्तक जो कि कन्या भ्रूण हत्या की थीम पर आधारित है लिखने वाले इंजीनियर सपन सक्सेना, समाज में बच्चों की शिक्षा के लिए कार्य करने वाली रेखा शुक्ला, तथा भारतीय नागरिक परिषद की महामंत्री रीना त्रिपाठी उपस्थित रहीं।
कार्यक्रम का संचालन करते हुए रीना त्रिपाठी ने कहा कि भ्रूण हत्या जैसे जघन्य अपराध से अब समाज को निजात मिल ही जानी चाहिए क्योंकि हम 21वीं शताब्दी के उन्नत मानसिकता वाले समाज में रहे हैं जहां लड़के लड़की का भेद अब खत्म होना चाहिए। लड़कियों को निम्न दर्जे में रखने की प्रक्रिया यदि समाप्त ना की गई तो यूं ही मां की कोख में बेटियां दम तोड़ती रहेंगी।
शकुंतला तोमर ने बताया कि कन्या भ्रूण हत्या, लड़कों को प्राथमिकता देने तथा कन्या जन्म से जुड़े निम्न मूल्य के कारण जान बूझकर की जा रही है कन्या शिशु की हत्या । ये प्रथाएं उन क्षेत्रों में होती हैं जहां सांस्कृतिक मूल्य लड़के को कन्या की तुलना में अधिक महत्व देते हैं।
डा.मिथिलेश सिंह नेबताया की भारत में जन्म के समय लिंगानुपात में गिरावट आई है, जबकि पिछले 65 वर्षों में प्रति व्यक्ति आय लगभग 10 गुना बढ़ गई है।
इसका कारण लोगों की बढ़ती आय हो सकती है, जिसके परिणामस्वरूप साक्षरता बढ़ रही है और इससे परिवारों की सेक्स-सेलेक्टिव प्रक्रियाओं तक पहुँच आसान हो जाती है।खुद एक स्त्री रोग विशेषज्ञ होने के कारण उन्हें आए दिन ऐसे मामलों का सामना करना पड़ता है जो लड़की होने पर सफाई करवाना चाहते हैं जबकि उनके अस्पताल के बाहर साफ-साफ बोर्ड लगा है कन्या भ्रूण हत्या पाप है और भ्रूण का परीक्षण यहां नहीं किया जाता यह एक निंदनीय अपराध है।
प्रख्यात समाजसेवी शाइस्ता अंबर जी ने सभी लोगों को बताया कि किस प्रकार उन्होंने तीन तलाक जैसी कुप्रथा से समाज को निजात दिलाया। अब इस तरह का खिलवाड़ करने वाले लोगों को कड़ी सजा का प्रावधान है यह सब समाज को बताने के लिए काफी है कि बेटे और बेटी समान होते हैं ।हक और अधिकारों की बात सभी को पता होनी चाहिए गलत को गलत कहने की ताकत यह दिमाग के अंदर आ गई तो वह अपने बच्चे की रक्षा के लिए समाज से जरूर लड़ेगी और कोख में पल रही बेटी को बचाने का पूरा प्रयास करेगी। आज समाज में हम नवरात्रि में नव दुर्गा की पूजा करते हैं क्योंकि हमारा धार्मिक आधार बेटियां हैं कल हम महान क्रांतिकारी रानी लक्ष्मीबाई का जन्मदिन मनाएंगे और 1857 की क्रांति की महान वीरांगना जोकि एक हाथ में अपने बेटे को और एक हाथ से तलवार चला कर अंग्रेजों को लोहे के चने चबवा रही थी फिर भी अंग्रेज उच्च अधिकारी उसकी तारीफ आजादी के मर्द के रूप में करते हैं। शाइस्ता अंबर ने कहा कि वाकई मुझे दुख होता है यदि कोख में बेटियों को खत्म किया जाता रहेगा तो लोग अपने बेटे के लिए बहू और अपना परिवार चलाने के लिए संतति देने वाली मां कहां से लाएंगे।
नोबेल पुरस्कार विजेता प्रो अमर्त्य कुमार सेन ने अपने विश्व प्रसिद्ध लेख “मिसिंग वूमेन” में सांख्यिकीय रूप से यह साबित किया है कि पिछली शताब्दी के दौरान दक्षिण एशिया में 100 मिलियन महिलाएँ गायब हुई हैं। इस प्रकार के आंकड़े वाकई समाज के विद्वानों को सोचने के लिए विवश करते हैं।
शिक्षिका रेखा शुक्ला ने बताया कि आज गांव और शहर के स्तर पर गांव में फिर भी चार से पांच लड़कियां एक परिवार में मिल जाती हैं पर शहरों में आर्थिक दबाव के कारण सभी को दो बच्चे में एक बेटा और बेटी चाहिए क्या यह 100% संभव हो सकता है निश्चित रूप से नहीं आज पढ़ा-लिखा समाज बेटे और बेटी में भेद नहीं करता पर क्या समाज जिस प्रकार बेटा होने पर खुश होता है उसी प्रकार बेटी होने पर भी और एक से अधिक बेटी होने पर खुश हो सकता है निश्चित रूप से अब समाज की दशा और दिशा बदलनी चाहिए।
इंजीनियर सपन सक्सेना जिन्होंने कन्या भ्रूण हत्या जैसी जघन्य समस्या जो कि राजस्थान में आमतौर पर व्याप्त है पर एक पुस्तक लिखी है जिसमें उन्होंने एक रानी की कहानी बताई है जो सिर्फ एक वंश की पहली संतान होने के कारण संपत्ति न ले ले इसलिए उसकी हत्या कर दी जाती है। यह बात तो राजघराने की है आज भी राजस्थान के गांव में लड़कियों को जन्म लेते ही मार देना ज्यादा अच्छा समझा जाता है।
यदि कन्या भ्रूण हत्या का आधार समझा जाए तो कहीं न कहीं आज भी हम समाज की मानसिकता को नहीं बदल सकते हैं। आज भी समाज में समस्त क्रिया कर्म और संस्कारों का मालिक बेटे को भी समझा जाता है ।आज भी समाज में यह व्याप्त है कि आने वाली पीढ़ियों का पोषक उनका पुत्र होना है । दहेज जैसे सुरसा का मुंह खोले खड़े राक्षस बेटियों के साथ अक्सर खड़े पाए जाते हैं ।अक्सर माता-पिता को अच्छी शिक्षा बच्चियों को दिलाने के बावजूद दहेज रूपी राक्षस का मुंह भरना पड़ता है और इन सब से बचने के लिए उन्हें लगता है कि बेटी का जन्म हो ही ना।
आज सरकार ने विभिन्न कानून बना रखे हैं जो कि कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए काफी हैं। डॉक्टरों के ऊपर कठोर दंड निर्धारित है यदि वह भ्रूण की जांच करते हैं।पर क्या इतना कहने और करने से इतिश्री हो गई ।निश्चित रूप से नहीं। समाज में व्याप्त सभी लोगों को सभी परिवारों को यह सोचना होगा कि अहिल्याबाई,चांद बीबी, लक्ष्मीबाई , बेगम हजरत महल जैसी क्रांतिकारी महिलाएं यदि हमें आजादी की लड़ाई में रास्ता दिखा सकती हैं तो वहीं देश की सत्ता में काबिज सरोजनी नायडू इंदिरा गांधी, कल्पना चावला जयललिता, मेरी काम सहित स्वर्णिम युग रखने वाली महिलाएं हैं जिन्होंने न केवल अपनी योग्यता से समाज को राह दिखाई बल्कि बड़े-बड़े दुश्मनों को भी धूल चटा दी।
आज समाज को सोच बदलनी होगी ।बेटियां बेटों से कम नहीं होती और इस गर्व के साथ हमें नमन करना होगा। ब्रिटिश जनरल ह्यू रोज के अनुसार क्रांतिकारियों में एक अकेला मर्द महारानी लक्ष्मी बाई थीं। इसी संदेश के साथ संगोष्ठी का समापन किया गया।